धर्मजागृतिकी अभिनव संकल्पना : फलकद्वारा प्रचार और ‘जागो’ लघुसंदेश

(सूचना : यह विषय अधिवेशनमें भाषणके स्वरुपमे प्रस्तुत किया जाएगा |)

विषयकी प्रस्तावना

        आजकल समाचार-पत्र, दूरदर्शन चैनल जैसे प्रसारमाध्यमोंद्वारा, जालस्थान, व्याख्यान, सार्वजनिक कार्यक्रम, ‘फ्लेक्स’ फलक, भीतपत्र (पोस्टर्स) जैसे विविध माध्यमोंद्वारा, समाजतक कोई विचार पहुंचाया जाता है अथवा जागृति की जाती है । इन सर्व माध्यमोंका उपयोग करते समय कितनी बडी धनराशि एवं श्रम शक्तिकी आवश्यकता होती है, इसका अनुभव हममेंसे अनेकोको हुआ ही होगा । जब १०० लोगोंमें किसी कार्यक्रमका, विशेषरूपसे हिंदुत्ववादी कार्यक्रमका प्रसार होता है, तब उनमेंसे १० लोग ही कार्यक्रमके लिए आते हैं एवं उनमेंसे एकाध ही क्रियाशील बनता है, ऐसी आजकी स्थिति है । दूसरे पहलूसे विचार करें तो समाजके सामान्यजनोंकी भी कुछ मर्यादाएं हैं । अनेक हिंदुओंकी धर्मविषयक कार्यक्रमके लिए पैसा एवं समय खर्च करनेकी मानसिकता ही नहीं होती, तो कुछ लोग आर्थिक अडचनें एवं व्यस्त जीवनक्रम, इनके कारण इच्छा होते हुए भी हिंदुत्वविषयक उपक्रमोंको प्रतिसाद नहीं दे पाते हैं ।

        माध्यमोंकी मर्यादा एवं हिंदुओंकी वर्तमान स्थितिका विचार करते हुए हिंदुओंमें प्रतिदिन जागृति होनेके लिए क्या कर सकेंगे, ऐसा विचार वर्ष २००४ में हिंदू जनजागृति समितिके सदस्योंने आरंभ किया । इसीसे समाज, राष्ट्र एवं धर्मसंबंधी जागृति करनेके लिए कम खर्चीली एवं प्रभावी ‘फलकद्वारा प्रचार’ ओर ‘जागो’ लघुसंदेश इन दो अभिनव माध्यमोंका विकल्प समितिने ढूंढ निकाला था । आज आपके समक्ष इन्हीं माध्यमोंका लाभ आज प्रस्तुत कर रहे हैं । इन माध्यमोंका उपयोग सर्वत्रके हिंदुत्ववादी संगठनोंद्वारा भारतके कोने-कोनेमें हो एवं हिंदु राष्ट्रकी स्थापनाकी दृष्टिसे हिंदुओंकी मानसिक सिद्धताके लिए जगह-जगह व्यासपीठ निर्माण हों, यही भगवान श्रीकृष्णके चरणोंमें प्रार्थना है !

सारणी

१. फलकद्वारा प्रचार
२. जागो ‘एस्एम्एस्’!


 

१. फलकद्वारा प्रचार

१ अ. फलकद्वारा प्रचार क्या है ? :

         आपमेंसे अनेकोंके मनमें प्रश्न उभरा होगा कि ‘फलकद्वारा प्रचार क्या है’ । फलक अर्थात हमारा सदाका ‘काला फलक (बोर्ड)’ । इस प्रकारके फलक भीडभाडवाले स्थानपर तथा चौकमें लगाकर उनपर समाज, राष्ट्र एवं धर्म के विषयमें लेखन प्रतिदिन करना अर्थात फलकद्वारा जागृति !

 १ आ. फलकद्वारा प्रचारकी विशेषताएं

१ आ १. सहज उपलब्ध : अनेक देवालयोंके बाहर भक्तोंको सूचना देनेके लिए फलक लगाए जाते हैं अथवा दीवारको रंगकर फलक बनाए जाते हैं । अनेक स्थानोंपर चौकमें गणेशोत्सव मंडल एवं रिक्शा संगठनके फलक होते हैं । ऐसे फलकोंका उपयोग समाज, राष्ट्र एवं धर्म विषयक लेखनके लिए किया जा सकता है । इसके लिए हमें संबंधित व्यक्तियोंसे उनकी लिखित अनुमतिकी ही केवल आवश्यकता होती है । इस प्रकारकी अनुमति भी संबंधितोंसे निःसंकोच मिल जाती है, ऐसा हमारा अनुभव है; वह इसलिए कि उनके पास अनेक बार फलकपर लिखनेके लिए कुछ नहीं होता । वे केवल अपने कार्यक्रमोंके समय ही उस फलकका उपयोग करते हैं । इस कारण सप्ताहके ६ दिन तो हम उस फलकका उपयोग कर ही सकते हैं । महाराष्ट्रमें अनेक स्थानोंपर समितिद्वारा इस प्रकार उपलब्ध फलकोंका उपयोग हिंदुओंमें जागृति लानेके लिए किया गया है । कर्नाटकमें हासनमें श्री वीरूपाक्ष मंदिरके पुरोहितोंको इस फलकलेखनकी कल्पना एवं उसपर लेखनका स्वरूप इतना अच्छा लगा कि अनुमतिके साथ-साथ उसे लिखनेमें भी वे सहायता करते हैं ।

१ आ २. अत्यल्प खर्च : यदि किसीका उपलब्ध फलक हमें लिखनेके लिए न मिले अथवा किसी स्थानपर फलक ही न हो, तो हम स्वयं उसे बनवाकर गांवमें भीडभाडवाले स्थानपर लगा सकते हैं । ‘प्लायवूड’को काला रंग लगवाकर फलक बनानेके लिए लगभग ३०० रुपयोंतक एवं लोहेके ‘एंगल’द्वारा फलक बनाकर उसे रास्तेके किनारे लगानेके लिए लगभग १ सहस्र रुपए खर्चा आता है । वास्तवमें यह खर्च नहीं, अपितु वह एक प्रकारका पूंजी निवेश (इन्वेस्टमेंट) ही है । तदुपरांत उसका कोई खर्च नहीं । दो-चार वर्षोंमें एक बार फलक एवं उसे लगाए जानेवाले चौखटेकी (फ्रमेकी) रंगाई-पुताई कर दी जाए, तो फलककी आयु बढ जाती है ।  फलक लगानेके लिए जो खर्च आए, वह हम गांवके प्रतिष्ठित, हिदत्ववादी, शुभचिंतकोंसे प्रायोजित करवा सकते हैं । उसी प्रकार प्रायोजक होनेवालोंके हस्तों फलकका अनावरण भी कर सकते हैं ।

१ आ ३. प्रतिदिन जागृति : इस माध्यमद्वारा ताजे विषयपर प्रतिदिन, अर्थात वर्षके ३६५ दिन जागृति होती है ।

१ आ ४. सहस्रों लोगोंको एवं संगठनोंको भी लाभ : यह फलक रास्तेसे आने-जानेवाले लोग पढते हैं । ताजा विषय होनेके कारण सहज ही उसपर चर्चा होती है; अर्थात एकके फलक पढनेपर न्यूनतम ६ लोगोंतक तो उसके विचार पहुंचते हैं । इतना ही नहीं, अपितु शृंखलापद्धति अनुसार वह आगे भी फैलता जाता है । इसीके साथ जहां-जहां ऐसी चर्चा होती है, उसीमें फलक एवं उससे संबंधित संगठनकी भी चर्चा होती है ।

१ आ ५. ध्यान आकर्षित करनेवाला : लोगोंको चौकका फलक पढनेकी आदत होती है । काले फलकपर सफेद अक्षरोंसे लिखा गया लेख लोगोंका ध्यान आकर्षित करता है । इस कारण यह माध्यम प्रभावी सिद्ध होता है ।

१ इ. फलकद्वारा प्रचारका विषय

समाज, राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति जैसे महत्त्वपूर्ण विषयोंके संदर्भमें फलकद्वारा प्रचार किया जा सकता है । यह फलक लिखते समय उपरोक्त घटकोंपर हो रहे आघात एवं उन आघातोंका विरोध करनेके लिए किए जानेवाले प्रभावकारी कृत्य, यह विषय फलकद्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं । इस संदर्भमें कुछ उदाहरण नीचे दिए अनुसार हैं ….

१ इ १. कुछ उदाहरण

१ इ १ अ. पिछले माह ही भाग्यनगरमें श्रीरामनवमीकी शोभायात्राके आयोजक श्री. राजा सिंहजीको पुलिसने बंदी बनाया था । पुलिसने शोभायात्रापर भी प्रतिबंध लगाया था । यह समाचार अन्य राज्योंके किसी भी समाचार-पत्र अथवा समाचार चैनलने नहीं दिया । यह घटना १ सहस्रसे भी अधिक फलकोंद्वारा समितिने महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गोवा, इन राज्योंके सहस्रों हिंदुओंतक पहुंचाई । समितिकी ओरसे २१ मार्चको आगे दिए अनुसार फलक लिखकर हिंदुओंमें जागृति की गई ।

हिंदुओ, आपके अधिकारोंके लिए लडनेवाले हिंदुत्ववादियोंका समर्थन करें !

        भाग्यनगरमें श्रीरामनवमीके निमित्त निकाली जानेवाली शोभायात्रापर पुलिसने बंदी लगाई है । उन्होंने शोभायात्राके आयोजक श्री. राजा सिंह ठाकूरको बंदी बनाया है । इस पार्श्वभूमिपर भगतसिंह क्रांतिसेनाने पुलिसको ऐसी चुनौती दी है कि ‘शोभायात्रा निकाली ही जाएगी’ ।

१ इ १ आ. इसी प्रकार फरवरी माहमें बंगालमें ‘हिंदु संघति’ नामक संगठनके प्रमुख श्री. तपन घोषको हिंदुद्वेषी तृणमूल कांग्रेसकी पुलिसने बंदी बनाया । उस विषयमें १६ फरवरीको हमने विविध स्थानोंके फलकोंपर आगे दिए अनुसार लेखन किया ।

हिंदुओ, जिहादियोंकी चापलूसी करनेके लिए हिंदुओंपर अत्याचार करनेकी निधर्मी राजनेताओंकी वृत्तिको जान लें !

        बंगालमें ‘हिदु संघति’ इस संगठनके प्रमुख श्री. तपन घोषको हिदद्वषी तृणमूल कांग्रेसकी तानाशाह पुलिसने बंदी बनाया । हिदत्ववादी मुहिम दबानेके लिए उन्हें झूठे अपराधमें फसानेके सरकारके प्रयत्न चल रहे हैं ।

१ इ १ इ. केवल हिंदुत्व ही नहीं, अपितु राजनेताओंके अपराधोंके विषयमें इन फलकोंद्वारा प्रसिद्धी की जाती है । १४ जनवरीको ‘नैशनल इलेक्शन वॉच’के ब्यौरेको निम्नानुसार प्रसिद्धी दी गई ।

लोगो, निधर्मी राजनेताओंद्वारा हो रहे लोकराज्यके अपराधीकरणको जानें !

        ‘उत्तरप्रदेशके विधानसभाके चुनावोंके लिए नैशनल इलेक्शन वॉच’द्वारा किए गए सर्वेक्षणमें विविध पक्षोंद्वारा घोषित हुए ६१७ प्रत्याशियोमेंसे ७७ प्रत्याशियोंपर हत्या, हत्याका प्रयत्न करना, अपहरण, डकैती इस प्रकारके गंभीर अपराध दर्ज हैं ।

        ऐसे अनेक विषय फलकद्वारा प्रचारके माध्यमसे भी सर्वसामान्य हिंदुओंतक पहुंचाए जाते हैं ।

१ ई. फलकपर लिखा जानेवाला विषय कहां मिलेगा ?

        अब कुछ लोगोंको ‘फलकद्वारा प्रचार’का विषय मिलनेमें अडचन आ सकती है । इस संदर्भमें देखेंगे ।

१ ई १. संगठनके स्तरपर तैयार करना : इस प्रकारका विषय तैयार कर अपने संगठनके नियतकालिकोंद्वारा अथवा प्रसारमाध्यमोंद्वारा प्रतिदिन प्रकाशित किए जा सकते हैं ।

१ ई २. ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक अथवा जालस्थान (वेबसाईट)से ‘फलकद्वारा प्रचार’का विषय लेना : इस प्रकारके लेख तैयार करनेमें अडचन होगी, तो ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकोंका आधार ले सकते हैं । दैनिक एवं साप्ताहिक ‘सनातन प्रभात’के अंतिम पृष्ठपर ‘फलकप्रसिद्धी’ इस नामसे स्तंभ ही प्रकाशित किया जाता है । यह दैनिक ‘सनातन प्रभात’के जालस्थानपर उपलब्ध है । उसकी सहायतासे विश्वभरके हिंदु फलकद्वारा प्रचार कर सकते हैं । इस दैनिकमें फलकद्वारा प्रचारके स्तंभमें केवल ४० शब्दोंमें ताजी घटनाकी जानकारी दी हुई होती है । मराठी भाषामें उपलब्ध यह लेखन अन्य भाषाओंमें भाषांतरित कर लिया जा सकता है । भाषांतरके लिए स्थानीय स्तरपर प्रयत्न कर सकते हैं । जिन्हें स्थानीय स्तरपर भाषांतर करनेमें अडचन होगी, ऐसे जिज्ञासु यदि अपना संगणकीय पता देंगे, तो हम अंग्रेजी, हिंदी, कन्नड अथवा/एवं जिस भी भाषामें संभव होगा, लेखन भाषांतरित कर भेजनेकी व्यवस्था कर सकते हैं ।

१ उ. फलक कहां लगाएं ?

        व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक स्थल, ऐसे दोनों स्थानोंपर फलक लगा सकते हैं ।

१ उ १. व्यक्तिगत स्थल
अ. रास्तेके निकट अपने घरके बाहर अथवा गृहसंकुल (घर)के प्रवेशद्वारपर
आ. अपने कार्यालय अथवा दुकानके बाहर

१ उ २. सार्वजनिक स्थान
अ. मुख्य चौक
आ. गली, मार्गके प्रवेशस्थल
इ. बसस्थानक, रेल्वेस्थानक समान भीडवाले स्थानोंपर
ई. देवस्थान

१ उ ३. शासकीय औपचारिकता : व्यक्तिगत स्थलपर फलक लगानेवाले हों, तो अनुमतिकी आवश्यकता नहीं होती । यदि मंदिरमें लगानेवाले हों, तो मंदिर समितिकी अनुमति अवश्य लें । चौक इत्यादि सार्वजनिक स्थानोंपर फलक लगाना हो, तो शासकीय अनुमतिकी आवश्यकता होती है । धार्मिक तनाव निर्माण करनेवाला लेखन होगा, तो पुलिस फलक जप्त कर सकती है; मात्र प्रबोधनपर एवं जागृतिपर लेखनके विरुद्ध वह कार्यवाही नहीं कर सकती ।

१ ऊ. फलक लिखनेका समय क्या होना चाहिए ?

         फलक संभव हो, तो प्रात: से लेकर दोपहर १२ बजेतक लिखें; इसलिए कि उस समयतक लोगोंकी भीड भारी मात्रामें रास्तेपर होती है । दोपहरके समयमें रास्तेपर भीड नहीं होती एवं संध्याके उपरांत अंधेरा होनेसे फलककी ओर ध्यान नहीं जाता । इसलिए सवेरे शीघातिशीघ्र फलकपर लिखा गया समाचार अधिकाधिक लोगोंतक पहुंच सकता है । कुछ देवालयोंमें हमने फलक लिखना आरंभ किया है । तदुपरांत कभी कुछ कारणवश कार्यकर्ताओंको फलक लिखनेमें देर हो जाए, तो वहां लोगोंके दूरभाष आने आरंभ हो जाते कि ‘फलक लिखनेमें देर क्यों हुई ।

१ ए. फलक कैसे लिखना चाहिए ?

        ‘फलकद्वारा प्रचार’का लेखन प्रभावकारी होनेके लिए समितिने अभ्यास किया है । फलकपर योग्य रंगकी खडियाका उपयोग करनेसे फलकद्वारा प्रचारकी प्रभावकारिता बढा सकते हैं, उदा…
१. शीर्षक गुलाबी खडियासे लिखें ।
२. शीर्षकके नीचेका लेखन सफेद खडियासे करें ।
३. फलकपर दो से अधिक विषयोंपर लेखन करना हो, तो दूसरा विषय पीली खडियासे लिखें । उसका भी शीर्षक गुलाबी खडियासे लिखें ।
४. लेखन अल्प हो, तो प्रत्येक अक्षरका आकार २ इंच, तथा लेखन अधिक हो, तो प्रत्येक अक्षरका आकार डेढ इंच रखें । लेखनकी अपेक्षा शीर्षक बडे अक्षरोंमें लिखें ।

१ ऐ. फलकद्वारा प्रचारके लाभ

१ ऐ १. हिंदुत्वपर सर्व दिशाओंसे हो रहे आघात सर्वत्र पहुंचना : आजकल हिंदुओंपर सर्वत्र होनेवाले अत्याचारोंकी अधिकांश घटनाएं स्वयंको निधर्मी कहलानेवाले प्रसारमाध्यमोंद्वारा समाजके सामने नहीं आती हैं । ऐसी घटनाएं फलकोंके माध्यमसे हम समाजतक पहुंचा सकते हैं, उदा. कश्मीरमें मुसलमानप्रेमी राजनेताओंके कारण हिंदुओंपर होनेवाले अन्यायके विषयमें १२ मार्चको आगे दिए अनुसार फलकप्रसिद्धी की गई ।

हिंदुओ, निधर्मी राजनेताओंद्वारा कश्मीरी बंधुओंकी हुई दयनीय स्थिति जान लें !

        हिंदुद्वेषी नैशनल कॉन्फरन्स एवं कांग्रेसकी सत्तावाले जम्मू-कश्मीर राज्यमें राजौरीमें हिदओंके होली पर्वकी शोभायात्रापर उदंड मुसलमानोंने पत्थरबाजी की तथा शिवमांदरमें विष्ठा फेंककर उसकी तोडफोड की । 

१ ऐ २. हिंदुओंकी मानसिक सिद्धता होना : जो विषय हिंदुओंने किसी समाचार-पत्रमें पढे हों अथवा चैनलपर देखे हुए हों, उस विषयमें योग्य एवं क्रियाशील दृष्टिकोण देनेवाला फलक उन्हें पढनेके लिए मिले, तो हिंदुत्वकी दृष्टिसे उनकी मानसिकता तैयार होनेमें सहायता मिलती है । मलेशियामें हिंदुओंके श्रद्धास्थानपर हुए आक्रमणको ४ अप्रैलको दौनक ‘सनातन प्रभात’में निम्नानुसार फलकप्रसिद्धी दी गई थी ।

हिंदुओ, इस्लामी राष्ट्रोंमें हिंदुओंके श्रद्धास्थानोंपर होनेवाले आक्रमण रोकनेके लिए प्रभावकारी हिंदूसंगठन अपरिहार्य !

        मलोशयाके कुआलालंपुरमें एक मुसलमान निर्माणकार्य ठेकेदारने हिदओंके मांदरोंका विध्वंस किया । इस आक्रमणकी ओर वहांके शासन, पुलिस  महानिरीक्षक एवं अटर्नी जनरलने पूर्णत: अनदेखी की ।

        इस फलकद्वारा प्रचारसे प्रभावकारी हिंदू-संगठन निर्माण करनेका क्रियाशील दृष्टिकोण दिया गया, जो अन्य किसी भी समाचार-पत्रमें नहीं दिया जाता ।

१ ऐ ३. हिंदुओंमें आत्मविश्वास निर्माण होनेमें सहायता होना : हिंदुओंपर होनेवाले आघातोंको प्रतिदिन कोई उजागर कर रहा है, इस विचारसे हिंदुओंमें प्रतिकार करनेका आत्मविश्वास निर्माण होनेमें सहायता होती है ।

१ ऐ ४. समविचारी हिंदू एकत्र आना : जिन हिंदुओमें फलक पढकर हिंदुत्वके विषयमें कुछ करनेकी प्रेरणा निर्माण होगी, वे अपनेआप ही हिंदुत्ववादी संगठनोंके कार्यसे जुड जाएंगे । ऐसे फलक पढकर अनेक लोग भ्रमणभाषद्वारा पूछते हैं कि ‘हम इस कार्यमें किस प्रकार सहभागी हो सकते हैं ।’

१ ऐ ५. हिंदुओंकी संघभावनामें वृद्धि होना : एक ही विचार अधिकांश हिंदुओंमें जानेसे उनका हिंदुत्वविरोधी घटनाके विषयमें एकमत होनेकी संभावना बढ जाती है । इससे संघभावना बढनेमें सहायता मिलती है ।

१ ऐ ६. संगठनके विषयमें हिंदुओंका जनमत सिद्ध होना : कुल मिलाकर किसी भी आर्थिक प्राप्तिके बिना किसी संगठनद्वारा नित्यनियमसे जागृतिके लिए होनेवाले प्रयत्नोंके कारण उस संगठनसंबंधी हिंदुओंकी जनमत तैयार होनेमें सहायता होती है । यही जनमत संगठनके अन्य उपक्रमोंको सफलता दिलाती है । इस माध्यमसे संगठनका अपनेआप प्रसार होता है । इस संदर्भमें महाराष्ट्रके ‘शिवसेना’ इस पक्षका उदाहरण ले सकते हैं । इस पक्षकी स्थापनाके समय शिवसेनाने विविध स्थानोंपर लगे फलकोंके माध्यमसे आवाज उठाई । इस कारण पक्षके विषयमें बडा जनमत तैयार हो गया, परिणामस्वरूप पक्ष बननेमें सहायता हुई ।

        इस संदर्भमें मथुराका एक उदाहरण ले सकते हैं । मथुरा, उत्तरप्रदेशमें हिदु जनजागृति समिति एवं सनातन संस्थाके संयुक्त विद्यमानसे नियमितरूपसे विविध मांदरोंमें धर्मजागृतिके लिए लिखे जानेवाले १० ‘धर्मफलकों’में से एक धर्मफलक दौनक ‘जागरण’के कार्यालयके निकट ‘राधाकांत मांदर’में लगाया जाता है ।  यह धर्मफलक देखकर दौनक ‘जागरण’के पत्रकार श्री. राकेश चौधरीजीने ‘समिति एवं सनातन संस्था धर्मजागृतिके लिए कैसे प्रयत्न कर रही है’, इस विषयपर एक लेख उनके समाचार-पत्रमें प्रकाशित किया ।

१ ओ. फलकद्वारा प्रचार अभियान चलाते समय विरोधकी संभावना !

        फलकद्वारा प्रचारके इस उपक्रममें अनेक अडचनोंका भी हमें सामना करना पडता है । मुसलमान, हिंदूद्वेषी संगठन, हिंदूविरोधी पक्ष, पुलिस इन सभीपर दबावतंत्र लाकर उनका लेखन बंद करनेका प्रयत्न करते हैं । तब भी बिना घबराए इस विरोधका समितिने वैधानिक (कानूनन) मार्गसे उत्तर देकर यह उपक्रम जारी रखा । आप भी यह उपक्रम अपने भागमें आरंभ कर सकते हैं । उसे कार्यान्वित करते समय किसी भी प्रकारकी अडचनें आएं, तो उन्हें सुलझानेका हम अवश्य प्रयत्न करेंगे ।

२. जागो ‘एस्एम्एस्’!


        आज हर एकके हाथमें भ्रमणभाष अर्थात ‘मोबाईल’ है । इसका उपयोग राष्ट्र एवं धर्म के लिए हम करें, तो बहुत कुछ साध्य हो सकता है । किसी भी ‘मेसेजिंग कंपनी’का खर्चिक आधार न लेते हुए कार्यकर्ताओंकी श्रृंखलाद्वारा एवं इंटरनेटपर निःशुल्क ‘मेसेजिंग’ सुविधाओंका लाभ उठाते हुए लाखों हिंदुओंतक समाज, राष्ट्र एवं धर्म पर होनेवाले आघात इस माध्यमद्वारा पहुंचाए जा सकते हैं । ऐसे प्रभावी माध्यमोंकी जानकारी संक्षेपमें लेते हैं ।

२ अ. ‘एस्एम्एस्’की विशेषताएं

       फलकद्वारा प्रचारकी कुछ मर्यादाएं हैं । उसे हल करनेवाला तथा तुलनामें कम खर्चीला; परंतु अत्यंत प्रभावी माध्यम है ‘एस्एम्एस्’! इस माध्यमकी कुछ विशेषताएं आगे दिए अनुसार हैं ।
१. दिए हुए विचार हूबहू श्रृंखलाके अंतिम घटकतक पहुंचते हैं ।
२. प्रत्येक जन ‘एस्एम्एस्’ पढता ही है ।
३. ‘एस्एम्एस्’ में जिन्हें रुचि है, वे स्वयं ही उनके संपर्कमें आनेवाले अनेक लोगोंको भेजते हैं ।
४. ‘एस्एम्एस्’ भेजनेपर मित्रपरिवार जहां-जहां होगा, वहां सर्वत्र ही इसकी चर्चा होती है । अर्थात फलकद्वारा प्रचार यदि स्थानीय माध्यम है, तो ‘एस्एम्एस्’ को राज्यस्तरीय अथवा राष्ट्रस्तरीय माध्यम समझ सकते हैं ।
५. इस माध्यमका उपयोग करनेमें किसीका विरोध होनेकी संभावना अत्यंत अल्प अथवा व्यक्तिगत स्वरूपकी होती है; इसलिए कि प्रत्येक जन अपने संपर्कके लोगोंको ही वह ‘एस्एम्एस्’ भेजता है ।

२ आ. ‘एस्एम्एस्’ भेजनेके लिए ऐसी यंत्रणा कार्यान्वित करें !

       ‘एस्एम्एस्’ भेजनेके लिए एक यंत्रणा तैयार करनी होगी । उस दिनकी ताजी घटनापर एक लघुसंदेश तैयार कर, उसे संगठनकी रचनानुसार प्रत्येक जनपदके प्रमुखके पास भेजा जा सकता है । तदुपरांत अनुक्रमसे तालुका, विभाग एवं कार्यकर्ताके गुटोंतक भी यह श्रृंखला जारी रह सकती है । प्रत्येक व्यक्ति इस नियोजनके अतिरिक्त अपने संपर्कमें आनेवाले अनेक लोगोंको लघुसंदेश भेज सकता है । इस प्रकार प्रत्येकके व्यक्तिगत भ्रमणभाषसे दोपहर लगभग ११ बजेके आसपास तैयार कर भेजा गया लघुसंदेश दोपहर ४ बजेतक श्रृंखलाके अंतिम चरणतक पहुंचता है । (सवेरे लोग व्यक्तिगत कामोंमें व्यस्त रहते हैं, उसी प्रकार ताजा समाचार मिलनेमें भी कुछ समय लग जाता है । इस कारण दोपहर ११ के आसपास एस्एम्एस् भेजा जा सकता है ।) इसलिए ‘मेसेजिंग कंपनी’का शुल्क (दर) बहुत है । इस कारण केवल २५-३० रुपयोंका ‘एस्एम्एस् रिचार्ज कूपन’का लाभ लेकर पूरे माहमें १००-५०० लोगोंको लघुसंदेश भेजा जा सकता है ।

२ इ. लघुसंदेशोंके लिए संपर्क क्रमांक कैसे प्राप्त करेंगे ?

२ इ १. व्यक्तिगत संपर्क (सगे-संबंधी, मित्र, व्यवसायके निमित्त जिनसे परिचय हुआ है)
२ इ २. सार्वजनिक कार्यक्रमोंमें आवाहन कर : सार्वजनिक कार्यक्रमोंमें आवाहन कर लोगोंके भ्रमणभाष (मोबाईल) क्रमांक प्राप्त कर सकते हैं । यही क्रमांक संगठनके सदस्योंमें बांटकर, उन्हें प्रतिदिन लघुसंदेश भेज सकेंगे ।

२ ई. लघुसंदेशोंका उपयोग करते समय ध्यानमें रखें

         प्रथम लघुसंदेश भेजते समय एवं प्रत्येक माह ‘इस प्रकारके लघुसंदेश यदि आप पाना नहीं चाहते, तो कृपया हमें सूचित करें’, ऐसी सूचना अवश्य भेजें । उसी अनुसार जिनका ‘रिप्लाय’ आएगा, उनके नाम अपने भ्रमणभाषकी संपर्कसूचीसे हटा दें ।

२ उ. सहायता

         लघुसंदेशके माध्यमका उपयोग करनेके लिए हिंदुत्वका कार्य करनेवाले घरोंके युवाओंकी सहायता ले सकते हैं ।

२ ऊ. लघुसंदेशोंके लाभ

         यदि गांवके अधिकांश हिंदु इस प्रकारके लघुसंदेशोंकी श्रृंखलासे जुड गए, तो कठिन कालमें सभीको सावधान एवं संगठित करनेके लिए इस माध्यमके समान इतना प्रभावी माध्यम अन्य कोई भी नहीं होगा ।

        संक्षेपमें, माध्यम कोई भी हो ‘फलकद्वारा प्रचार’ अथवा ‘लघुसंदेश’, उसे पढनेवाला एक प्रकारसे हिंदू-संगठनका एक सदस्य बन जाता है । उसमें फलक एवं लघुसंदेशोंके माध्यमसे इस संगठनके विषयमें विश्वास निर्माण होता है । इसका वास्तविक परिणाम उस भागमें होनेवाले हिंदुत्वविषयक उपक्रम अथवा कार्यक्रमोंकी फलश्रुतिसे दिखाई देता है । हम सभी इन अभिनव प्रसारमाध्यमोंका उपायोग कर हिंदुओंको जाग्रत करेंगे, ऐसा आवाहन करते हुए मैं अपना विषय पूर्ण करता हूं ।

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