कार्तिक कृष्ण ६, कलियुग वर्ष ५११५
१. भारतीय संस्कृतिके आदर्शोंकी ओर ध्यान न देनेके कारण तथा हमारी विभूतियोंकी शौर्यगाथाका विस्मरण होनेके कारण समाजमें अगणित समस्याओं एवं विकृतियोंका उत्पन्न होना
हमारे इतिहासके प्रत्येक पन्नेपर स्वाभिमानी, गौरवपूर्ण एवं उत्कृष्ट आदर्शवाले अनेक व्यक्तिओंके जीवनकार्यकी घटनाएं लिखी गई हैं । उनके आधारपर हम मानवता, सामाजिकता तथा राष्ट्रीयताकी दृष्टिसे अनेक विशेषताएं सहज ही आत्मसात कर सकते हैं; किंतु अत्यंत दुःखके साथ यह कहना पडता है कि हम केवल इन आदर्शोंको ही विस्मृतिकी गहरी खाईमें नहीं ढकेल रहे हैं, अपितु इन विभूतियोंकी श्रेष्ठताकी ओर अनदेखा कर रहे हैं । इन विभूतियोंका त्याग, बलिदान, देशभक्ति, स्वार्थत्याग, तपश्चर्या, साधना, सामाजिक प्रतिबद्धता, शौर्य,स्वाभिमान, मातृभूमिके लिए उनका सेवाव्रत, मानवता, इंद्रियोंपर विजय आदि गौरवपूर्ण गुणोंका स्मरण कर उन्हें आचरणमें लाकर हमें उज्ज्वल भविष्यका सृजन करना सहज संभव है; किंतु यह एक तरहका शाप ही है कि हमें अपनी इन महान विभूतियों एवं उनकी शौर्यगाथाओंका विस्मरण हो रहा है तथा उसके कारण ही आज समाजमें अगणित समस्याएं तथा विकृतियां उत्पन्न हो रही हैं । हम अपनी भारतीय संस्कृतिके आदर्शोंकी ओर अनदेखा कर रहे हैं, इसीलिए आजका समाज अधिकांश मात्रामें भौतिकवाद एवं पाश्चात्त्य संस्कृतिके प्रभाव तले दब गया है ।
२. अस्मितासे परिपूर्ण इस इतिहाससे शिक्षा ग्रहण कर आज नवसमाज एवं नवराष्ट्र उत्पन्न करनेकी अत्यंत आवश्यकता है !
स्वाभिमानी महापुरुषोंद्वारा उत्पन्न स्वाभिमानी इतिहास ही हमारे भविष्यको एक नया जाज्वल्य स्वरूप प्रदान कर सकता है । हमारा इतिहास ही हमें राष्ट्रीयता एवं बलिदानकी शिक्षा देता है । वह हमें सांस्कृतिक आदर्शोंकी ओर ले जा सकता है, साथ ही पाश्चात्त्य विकृतिके भंवरमें गिरे हमारे भविष्यको सुरक्षाकवच प्रदान कर सकता है । यह इतिहास ही हमें भौतिकवादके मायाजालमें (भूलभुलैयामें) फंसनेसे सुरक्षित रखता है । आज हम इतने स्वार्थी हो गए हैं कि हमें हमारे परमात्माके संदर्भमें ही भावका अभाव है, हमारे अंदर सामाजिक आदर्शों तथा राष्ट्रीयताके भावका सर्वथा अभाव है; इसलिए आज हमें अस्मितासे परिपूर्ण (स्वाभिमानी) इतिहाससे शिक्षा प्राप्त कर नवसमाज तथा नवराष्ट्रके सृजनकी अत्यंत आवश्यकता है । आज देशके लिए त्याग, प्राणाहुति, बलिदान, साथ ही समाज, संस्कृति एवं देशके लिए नवउत्साहकी आवश्यकता है । आज समाजको विचार, चरित्र, आत्मसंयम, नारीसम्मान, मर्यादा एवं सदाचरणकी अत्यंत आवश्यकता है तभी यह कार्य संभव है, जब स्वाभिमानी इतिहासके प्रसंगोंका अभ्यास कर उन आदर्शोंको आचरणमें लाया जाए। किंतु प्रत्यक्षमें आजकी युवा पीढी चरित्रहीनताकी दिशाकी ओर (चरित्रकी दृष्टिसे) बढ रही है; इसलिए आज विवेकानंदजीके वाङ्मयका अभ्यास करना चाहिए । रानी लक्ष्मीबाई, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रतापके समान बनना चाहिए । डॉ. राधाकृष्णन्ने बताया था कि किसी भी देशका इतिहास, यह उस देशकी स्मृति होती है । जिस प्रकार किसी भी व्यक्तिके विकास तथा उन्नतिके लिए सशक्त शक्तिकी आवश्यकता होती है, उसी प्रकार देश अथवा राज्यके विकासके लिए इतिहासका महत्त्व होता है ।
३. यदि स्वाभिमानी इतिहासका विस्मरण हुआ, तो आगामी काल तथा भावी पीढी हमें कभी भी क्षमा नहीं करेगी !
डॉ. ईश्वरीप्रसादके मतके अनुसार वर्तमान कालको भूतकालके प्रकाशमें देखना, अर्थात वर्तमान कालके प्रकाशमें भूतकाल (प्रतिबिंबित) देखना । इतिहासका तथा विशेषरूपसे स्वाभिमानी इतिहासका अभ्यास भविष्य उत्पन्न करनेके लिए निश्चित ही उपयुक्त सिद्ध होगा । राष्ट्रीय मूल्य, सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्य, शैक्षणिक मूल्य, व्यावसायिक आदर्श इन सभीकी दृष्टिसे स्वाभिमानी तथा गौरवशाली इतिहासकाअध्ययन निश्चित ही अत्यंत उपयुक्त है । हमें हमारे स्वाभिमानी इतिहासका विस्मरण कभी भी न हो, यही वास्तविकता होनी चाहिए । यदि हमें हमारे स्वाभिमानी इतिहासका विस्मरण हुआ, तो आगामी कालावधि तथा हमारी पीढियां हमें कभी भी क्षमा नहीं करेंगी; क्योंकि हमहमारा उज्ज्वल भविष्य सृजन करनेका अवसर ही खो बैठेंगे तथा कर्तव्यविमुख होनेके कारण अंधकारमय भविष्य उत्पन्न कर अपना सर्वस्वनष्ट करनेका अपराध कर बैठेंगे ।
– (नवोत्थान लेख सेवा) मासिक ठेंगे पर सब मार दिया, जुलाई २०१०