कार्तिक कृष्ण ३ , कलियुग वर्ष ५११५
इस्लामाबाद – पाकिस्तान की अदालतों से रिहा किए गए कैदियों को लेकर चौंका देने वाला खुलासा किया गया है। वहां २००७ के बाद से रिहा किए गए करीब २,००० संदिग्ध आतंकवादियों में से ज्यादातर लोग या तो आतंकी समूह में या फिर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए हैं।
पाकिस्तान के अखबार डॉन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने जिन १,९६४ आतंकियों को रिहा किया, उनमें से ७२२ लोग दोबारा आतंकी समूहों से जुड़ गए, जबकि १,१९७ लोग सक्रिय रूप से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए।
१२ को मारा जा चुका: रिपोर्ट में आधिकारिक दस्तावेज के हवाले से बताया गया है कि रिहा किए गए इन संदिग्ध आतंकियों में करीब १२ लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से चार लोग देश के अशांत कबायली इलाकों में किए गए अमेरिकी ड्रोन हमलों में जबकि बाकी के आठ सुरक्षा बलों के अभियान का शिकार बने। हालांकि माना जा रहा है कि यह दस्तावेज पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन इस रिपोर्ट में यह दर्शा दिया गया है कि जिन लोगों पर नजर रखी जा रही है, वे अब भी आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं।
हिरासत में लेने का कोई प्रावधान नहीं : रक्षा विश्लेषक एयर वाइस मार्शल (रिटायर) शहजाद चौधरी ने कहा कि कुछ बड़े मामलों में रिहा हुए संदिग्धों पर खुफिया एजेंसियां नजर रखती हैं। रिहा किए गए कुछ संदिग्ध राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, तो सुरक्षा एजेंसियां उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश करती हैं और पकड़ कर नजरबंदी केंद्र में डाल देती हैं। रिहाई के बाद इन संदिग्धों को हिरासत में लेने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है और ऐसे में ये लोग गुमशुदा लोगों की श्रेणी में डाल दिए जाते हैं। आपको बता दें कि यह कोई पहली रिपोर्ट नहीं है जो यह सच दर्शा रही है।
अभियोजन पक्ष कमजोर होने का मिलता फायदा : फेडरल रिव्यू बोर्ड को सौंपी गई सिक्युरिटी एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, सर्जन जनरल मुश्ताक बेग और मिलिट्री बस पर हमला करने वाले सभी लोग अदालत से बरी होकर बाहर निकले थे और फिर से आतंकी संगठन में शामिल हो गए थे। यह भी कहा जा रहा है कि आधे-अधूरे सबूत और अभियोजन पक्ष के कमजोर होने की वजह से आरोपी आसानी से छूट जाते हैं।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स