कार्तिक कृष्ण ५ , कलियुग वर्ष ५११५
सनातन संस्कृतिपर होनेवाले आघात रोकनेके लिए हिंदुओंमें धर्मजागृति करने एवं 'धर्माधिष्ठित राष्ट्र'की आवश्यकताका प्रतिपादन करने हेतु श्रीमद् शंकराचार्यजीका महाराष्ट्र एवं गोवामें आगमन हो रहा है । 'राष्ट्र एवं धर्मजागृति अभियान'के अंतर्गत 'हिंदू जनजागृति समिति'द्वारा आयोजित ‘विशाल धर्मसभा’ उपक्रमके लिए आर्थिक सहायताकी आवश्यकता है । निवेदन है कि आप इस धर्मकार्यमें दान करें ! इस मंगल समारोह हेतु आप वस्तु, अनाज, अन्न आदिके रूपमें दान कर सहायता कर सकते हैं !
इस धर्मकार्यमें दान करने हेतू आप आगे दिए गए माध्यमोंका उपयोग कर सकते है ।
Bank Name : IDBI Bank
Branch : New Panvel
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IFSC Code : IBKL0000023
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Mobile no. : 9404956071 / 8451006025
All donations are exempted from Tax U/S 80G of Income Tax Act
धर्मकार्य हेतु दान करना : एक साधनामार्ग
दानधर्म एक प्रकारसे त्यागकी उपासना ही है । शांडिल्योपनिषद् अनुसार दानका अर्थ है उचित मार्गसे प्राप्त किया धन अथवा वस्तु किसी उचित व्यक्तिको श्रद्धा तथा आदरसहित देना । सन्मार्गसे प्राप्त धनका दान करनेसे मोक्षप्राप्ति होती है । इसलिए सभी र्विणयोंके लिए दानधर्म एक साधना है ।
दान करनेका कालानुसार महत्त्व एवं दान किसे दें ?
दानद्वारा राष्ट्र एवं धर्मजागृतिके कार्यमें सहभाग धर्मपालन ही है ! महाभारतमें कहा है, कृतयुगमें तप, त्रेतायुगमें ज्ञान, द्वापरयुगमें यज्ञ तथा कलियुगमें दान श्रेष्ठ है । तप, ज्ञान, यज्ञसे दूर जा चुके कलियुगके मानवके लिए दान वरदान ही है ! धर्मशास्त्रानुसार दान ‘सत्पात्रे दानम्‘ होना चाहिए । निरपेक्ष भावसे राष्ट्र एवं धर्मकार्य करनेवाले धर्मगुरु, संत, संस्थाओं एवं संगठनोंको दान करना सत्पात्रे दान होता है ।
दानद्वारा राष्ट्र एवं धर्मजागृतिके कार्यमें सहभाग धर्मपालन ही है !
अनेकोंको इस बातका खेद होता है कि राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृतिके कार्यमें योगदान देनेकी इच्छा होते हुए भी वे उसके लिए समय नहीं दे पाते । यदि आप राष्ट्र और धर्मकार्यके लिए समय नहीं दे सकते अथवा शरीरसे कुछ करना आपके लिए संभव नहीं, तो धर्मगुरु एवं संत तथा राष्ट्र और धर्मकार्य करनेवाले विविध संस्थाओं एवं संगठनोंको धन/वस्तुओंके रूपमें दान करनेके माध्यमसे धर्मजागृतिके कार्यमें आप सहभागी हो सकते हैं और ईश्वरकृपाका लाभ ले सकते हैं !
पुरी गोवर्धन पीठके शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती पहली बार महाराष्ट्र तथा गोवा राज्योंके दौरेपर आएंगे !
अक्तूबर २४, २०१३
हिंदू जनजागृति समितिकी अगवानी !
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मुंबई : आद्यशंकराचार्य द्वारा स्थापित भारतके चार पीठोंमेंसे गोवर्धनमठ, पुरी (ओडिशा) आद्यपीठ है । इस पीठके विद्यमान शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती नवंबरके दूसरे सप्ताहमें महाराष्ट्र एवं गोवा राज्योंके दौरेपर आ रहे हैं । इस अवसरपर उनके राष्ट्र एवं धर्मके विषयमें स्पष्ट विचारों तथा चैतन्यमयमय वाणीका लाभ सबको हो, इस हेतु हिंदू जनजागृति समितिने नई मुंबई, गोवा तथा पुणेमें उनकी धर्मजागृति सभाओंका आयोजन करना निश्चित किया है । इस अवसरपर आद्य शंकराचार्यकी ‘पादुकाओं’के दर्शन महोत्सवका आयोजन किया जाएगा । शंकराचार्यके दौरेके अवसरपर होनेवाले कार्यक्रममें यथाशक्ति योगदान देने हेतु इच्छुक ८४५०९५०५०२ इस क्रमांकपर संपर्क करें, समितिके महाराष्ट्र राज्य समन्वयक श्री. सुनील घनवटने प्रसिद्धिपत्रकद्वारा ऐसा आवाहन किया है ।
शंकराचार्यका अल्पपरिचय देते हुए समितिने प्रसिद्धिपत्रकमें कहा है कि जगद्गुरु स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती लिखित ‘स्वस्तिक गणित’ नामक ग्रंथके सिद्धांतोंका उपयोग पूरे विश्वके २०० देशों द्वारा भ्रमणभाष, संगणकसे अंतरिक्ष क्षेत्रतक किया गया है । वैश्विक स्तरके वैज्ञानिकों हेतु विविध क्षेत्रोंमें नए आविष्कारोंके मानदंड प्रस्थापित करनेवाले ‘अंक पदियम’ एवं ‘गणित दर्शन’ ये ग्रंथ उन्होंने ही संकलित किए । वैदिक सिद्धांतोंसे भोजन विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, आवास विज्ञान, सुरक्षा विज्ञान, न्याय विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, विवाह विज्ञान, व्यावहारिक विज्ञान ऐसे अनेक सूत्रोंके पीछे होनेवाले वैज्ञानिक शास्त्र वे सुगम भाषामें समझाते हैं । खिस्ताब्द २००० में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा न्यूयॉर्कमें आयोजित विश्वशांति शिखर सम्मेलन हेतु तथा वैश्विक बैंक द्वारा वाशिंग्टनमें आयोजित किए गए ‘वर्ल्ड फेथ्स् डेव्हलपमेंट डायलॉग’ हेतु स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराजके मार्गदर्शनकी मांग की गई थी । इसी विषयपर ‘विश्वशांतिका सनातन सिद्धांत’ तथा ‘सुखमय जीवनका सनातन सिद्धांत’ ऐसे दो ग्रंथ प्रकाशित किए गए हैं ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात