कार्तिक कृष्ण ८ , कलियुग वर्ष ५११५
सत्य इतिहास दबानेका प्रयास करनेवाले ये तथाकथित शिवप्रेमी संगठन अफजलखानके उदात्तीकरण के विषयमें चुप क्यों रहते है ?
(कहते हैं, ) ‘सहा सोनेरी पाने’ पुस्तकमें छत्रपति शिवराय, बौद्ध, जैन एवं सिक्खोंके विषयमें अपमानजनक लेख
पुणे – यहांके जिालाधिकारी कार्यालयके सामने छावा युवा संगठन, महाराष्ट्र प्रदेशके १५ से २० कार्यकर्ताओंने स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर द्वारा लिखित ‘सहा सोनेरी पाने’ पुस्तककी होली की । इस पुस्तकके माध्यमसे छत्रपति शिवाजी महाराज, तथा बौद्ध, जैन एवं सिक्ख धर्मकी अपकीर्ति करनेके कारण इस पुस्तककी अनेक प्रतियोंकी होली की गई । (जिलाधिकारी कार्यालयके सामने ऐसा कानूनद्रोही कृत्य हो रहा था, उस समय क्या प्रशासन सो रहा था ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
१. संगठनने इस पुस्तकके पृष्ठ क्रमांक ५२, ६८, १२९, १३०, १३२, १३४, १५८, १७० एवं ३४३ पर अपकीर्तिकारी लिखाई होनेका दावा किया है ।
२. प्रशासनसे हमने इस पुस्तकपर त्वरित बंदी लगानेकी मांग की है, संगठनके अध्यक्ष बाबासाहेब पाटिलने ऐसा कहा । वैसेमें यह पुस्तक हमारे कार्यकर्ताओंको जहां भी दिखेगी, वहींपर उसकी होली की जाएगी । ऐसी पुस्तकोंकी प्रेरणासे ही आजके युगमें आसाराम तथा दूसरे स्त्रीलंपट स्वयंघोषित गुरु स्त्री जातिका अपमान एवं शोषण करते हैं । ( जो मनमें आए वह अंटसंट बकनेवाले बाबासाहेब पाटिलने ‘सहा सोनेरी पाने’ यह पुस्तक ठीकसे पढा भी है अथवा नहीं, इसमें संदेह है । इस प्रकार चिंतन न कर, इतिहास न समझकर विरोध करनेवाले संगठनोंकी बातका कौन विश्वास करेगा ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
३. संगठन द्वारा दिए प्रसिद्धिपत्रकमें तथा फलकपर स्वा. सावरकरको ‘माफीवीर’, ऐसा संबोधन किया गया है । (इससे इस संगठनका सावरकरद्वेष ही उभरकर सामने आता है । सावरकर द्वारा माफी मांगनेके पीछे कारागृहमें रहकर मरनेसे बाहर रहकर राष्ट्रसेवा करनेका उदात्त उद्देश्य था, यह ध्यानमें न लेकर आलोचना करनेवाले छावा युवा संगठनकी अज्ञानता ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) तथा प्रशासनने इस पुस्तकपर त्वरित बंदी न लगाई तो आंदोलन और तीव्र किया जाएगा, कार्यकर्ताओंने ऐसी चेतावनी भी दी है ।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक जलानेके पीछे ब्राह्मणद्वेष तथा सस्ती लोकप्रियता यही कारण ! – हिमानीताई सावरकर
सावरकरद्वारा लिखित पुस्तक जलानेके कृत्यके विषयमें हिंदू महासभाकी श्रीमती हिमानीताई सावरकरने कहा कि कौनसे कारणोंसे यह पुस्तक जलानेका प्रयास किया, उस विषयमें ये लोग कुछ नहीं बोलते । असलमें उन्हें इस पुस्तकका अभ्यास ही नहीं है । उनके पीछे कार्यरत शक्ति कोई और ही है । ‘सहा सोनेरी पाने’ पुस्तक प्रकाशित हुए ५० वर्ष हो गए हैं । ब्राह्मणद्वेष एवं सस्ती लोकप्रियता पाने हेतु ही यह कायर कृत्य किया गया है पुस्तक जलानेसे उसमें व्यक्त विचार नष्ट नहीं होते । ऐसे कृत्योंके कारण सच्चा इतिहास लोगोंके सामने आनेसे कोई रोक नहीं सकता । शिवरायका नाम लेनेवाले संगठन प्रतापगढके सामने निर्माण हो रहे अफजलखानकी कब्रके उदात्तीकरणके विषयमें एक शब्द भी निकालने हेतु सिद्ध नहीं हैं । जिस स्वातंत्र्यवीर सावरकरने जीवनभर जातिभेद निर्मूलनका कार्य किया, उनकी लिखाईसे विभिन्न जातियोंमें शत्रुता उत्पन्न होती है, ऐसा कहना, वैचारिक निर्धनताका लक्षण है ।
आपत्ति किसपर, तो…
राष्ट्रदोह
इस भयावह राष्ट्रीय संकटमें बौद्ध क्या कर रहे थे ?
उस वीरगति प्राप्त ‘ऊ ’ का क्या हुआ ?
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात