वर्तमान में धर्म के नाम पर राजनीति न करें, ऐसा होहल्ला करनेवाले राजनीतिज्ञों एवं विचारकों के गोदाम खुल गए हैं । राज्यकर्ता, राजनीतिज्ञ एवं नौकरशाहों का अभद्र गठबंधन होने पर धर्म की हानि किस प्रकार होती है, इसका सर्वोत्तम उदाहरण है पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति में इस अभद्र गठबंधन द्वारा किया गया हजारों कोटि रुपयों का घोटाला ।
इस अभद्र गठबंधन द्वारा अपेक्षित कर्तव्यों का निर्वहन न किए जाने के कारण हिन्दू धर्म तथा हिन्दू धर्मियों की जो असीमित आध्यात्मिक हानि हुई है, उस हानि से हिन्दू धर्म के प्रसार पर जो रोक लगी है, उस हानि का आंकडा भी निश्चित करना असंभव है । एक ओर मस्जिदों को स्थान बढाकर दिए जा रहे हैं, मदरसों को अनुदान मिल रहा है, चर्चप्रणित संस्थाआें को आर्थिक सहायता मिल रही है; परंतु पश्चिम महाराष्ट्र और कोकण क्षेत्र में ३ हजार ६७ प्राचीन मंदिर मृत्युपंथ की ओर बढ रहे हैं तथा हिन्दुआें का प्रबोधन एवं संगठन असफल सिद्ध हो रहा है । इसका एकमात्र कारण यह है कि इन मंदिरों का व्यवस्थापन देखनेवाली पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति पर कांग्रेसी राज्यकर्ता और नौकरशाहों द्वारा किया गया सामूहिक बलात्कार ।
१४ मई १९६७ को न्याय विभाग ने एक शासकीय आदेश राजपत्र में प्रकाशित कर पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति नियुक्त की । इस समिति को कोकण और पश्चिम महाराष्ट्र स्थित ३ हजार ६७ मंदिर सौंपे गए । तत्पश्चात ऊपरी तौर पर इसका यह उद्देश्य बताया गया कि इन मंदिरों का व्यवस्थापन राज्यशासन देखेगा जिससे मंदिरों की संपत्ति और राजस्व की रक्षा हो सकेगी । पश्चात ४५ वर्षों में राजनीतिज्ञ एवं नौकरशाह रूपी गिद्धों ने इन ३ हजार ६७ मंदिरों की संपत्तिके अक्षरशः टुकडे तोडकर खा लिए हैं ।
देवस्थान समिति की स्थापना के विषय में कानूनी रूप से अभिप्रेत हिन्दुआें की अपेक्षाएं
१. इन ३ हजार ६७ मंदिरों के स्वामित्व की भूमि २५ हजार एकड से अधिक थी । समिति इस सर्व भूमि की रक्षा करे तथा उनसे प्राप्त अधिकाधिक आय धर्मकार्य हेतु मिले ।
२. मंदिर में प्राप्त आय का हिसाब व्यवस्थित रखा जाए ।
३. मंदिर के कर्मचारी उत्कृष्ट एवं उचित गुणवत्ता के हों ।
४. एकत्रित निधि एवं संपत्ति का उपयोग धर्मकार्य के लिए किया जाए ।
५ कारोबार पारदर्शक हो तथा धर्मादाय आयुक्त को बजट, वार्षिक तलपट इत्यादि नियमित रूप से प्रस्तुत किया जाए ।
६. शासन तथा धर्मादाय आयुक्त उक्त बातों की पूर्ति की कठोरता से जांच करें ।
प्रत्यक्ष में इनमें से एक भी अपेक्षा पूर्ण नहीं हुई है ।
१. देवस्थान कांग्रेस के नियंत्रण में चला गया
देवस्थान समिति की भूमि २५ एकड से अधिक है । यह जानकारी मिलते ही यह भूमि हडपने के लिए यदि राजनीतिज्ञ आगे नहीं बढते, तो आश्चर्य ही है । श्री विजय अचलिया नामक एक अधिकारी ने अपनी टिप्पणी में इस भूमि का उल्लेख किया है । उसकी प्रति संलग्न है । (परिशिष्ट १ ) आगे जाकर इस विधि अधिकारी को मुंबई उच्च न्यायालय मेें न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया । इसलिए इनके द्वारा किए गए विधानों की सत्यता के विषय में आप संदेह नहीं करेंगे, ऐसी आशा है । ( यह भूमि किस प्रकार हडपी गई है, इस विषय के प्रमाण भी आगामी परिच्छेद में दिए गए हैं ।) गुलाब राव घोरपडे नामक कांग्रेसी राजनीतिज्ञ देवस्थान समिति के अध्यक्ष पद पर लगभग १० वर्ष से अधिक समय तक बैठा हुआ था । उसे अध्यक्ष पद से हटाने के लिए कांग्रसे पक्ष में ही रणक्रंदन हुआ । इस ओर न तो माध्यमों ने ध्यान दिया और न ही अन्य पक्षों के राजनीतिज्ञों ने । समिति में नियुक्त होने के लिए अनेक सांसदों, विधायकों, मंत्रियों तथा पक्ष पदाधिकारियों ने सिफारिश पत्र दिए । इच्छुकों ने स्वयं के आवेदन पत्र दिए । जिस व्यक्ति की सिफारिश की गई है, वह कांग्रेस से किस प्रकार एकनिष्ठ है, इस विषय में इस पत्र में लिखा गया है । एक शब्द में भी ईश्वर की भक्ति अथवा धर्मकार्य का उल्लेख नहीं किया गया है । देवस्थान कांग्रेस के अधीन किस प्रकार है तथा वहां की सत्ता राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ किस प्रकार बांटी ली गई है, इसका वर्णन भी इन पत्रों में है । इस विषय में कांग्रेस पक्ष के कार्यकर्ताआें, नेताआें, पदाधिकारियों, विधायकों, और सांसदोंके आवेदन पत्र और सिफारिश पत्र भी संलग्न हैं । कांग्रेस के कार्यकर्ता बाळासाहब खोत का दिनांक २५.४.२०११ का, पी.एन.पाटील, अध्यक्ष कोल्हापुर जनपद कांग्रेस कमिटी(आय) का दि. १३.९.२०११ का तथा इस प्रकार के अन्य पत्र भी संलग्न हैं ।(परिशिष्ट २) यह घिनौनी कार्यवाही केवल पदों के लिए नहीं थीं अपितु भूमि हडप करने के लिए थी, यह भी आगे सिद्ध हो गया ।
२. देवस्थान की भूमि पर हुआ खनन और कुछ सैकडों करोडों रुपयों घोटाला
पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति की भूमिपर कुछ खदान कंपनियों को खनन की अनुमति दी गई । यह अनुमति जनपदाधिकारी द्वारा दी गई । सैकडों करोड रुपयों के खनिज खोदकर इन खदानों के ठेकेदारों द्वारा मंदिरों की संपत्ति लूटी गई । एक नया पैसा भी मंदिर को नहीं दिया गया । जनपदाधिकारी ने समिति से अनुमति नहीं ली । जनपदाधिकारी अर्थात शासकीय अधिकारी और समिति भी शासकीय । इसलिए सभी ने एक दूसरे को संभाल लिया । पद्मावती मायनिंग कंपनी मुंबई, स्वाती मिनरल्स कोल्हापुर, यूनिवर्सल मायनिंग कंपनी इचलकरंजी इत्यादि के नाम श्री बी.एस शेवाळे नामक सनदी लेखा परीक्षक ने २००४–०५ से २००६–०७ के परीक्षण ब्यौरे में अंकित किए हैं । खदान रॉयल्टी की राशि न्यूनतम २–३ कोटि रुपए होनी चाहिए, ऐसा प्राथमिक अनुमान भी व्यक्त किया गया है । कुल कालावधि को देखते हुए गत ४५ वर्षों में यह राशि कुछ हजार करोड होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता । लेखा परीक्षकों ने इस विषय में अनेक बार संदेह व्यक्त किया है तथा फटकारा भी है; परंतु उस ओर ध्यान नहीं दिया गया ।
३. भूमि की प्रविष्टि ही न होना, अतिक्रमण होना, आय प्राप्त न होना
अनेक जनपदों में समिति की भूमि फैली हुई है; परंतु उसकी प्रविष्टिी नहीं है । अतिक्रमण की जानकारी होते हुए भी उन्हें हटाया नहीं जाता , पर्याप्त आय प्राप्त नहीं होती, यह दर्शानेवाले लेखा परीक्षण ब्यौरे के पृष्ठ भी संलग्न हैं । (परिशिष्ट ४) शेष गायब हुई भूमि ढूंढने का भी कष्ट नहीं किया गया है । पंढरपुर प्रकरण में हमने उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की थी तत्पश्चात लगभग ३०० एकड भूमि ढूंढकर उसपर नियंत्रण प्राप्त कर लिया गया था । कोल्हापुर क्षेत्र में कुछ गुंडे और प्रतिगामी संगठनों का प्रभाव है । यह भूमि हडपनेवाले गुंडे ऐसी संगठनाआें के होना स्वाभाविक है । इसलिए यह भूमि ढूंढकर अधीन करना अधिक कठिन हो गया है, यह स्पष्ट है ।
४. अचल संपत्ति किराये पर देना और दुकानों के किराया अनुबंध में अनुचित लेनदेन
भूमि के किराये का लेनदेन ३ वर्ष से अधिक समय के लिए करना हो, तो धर्मादाय आयुक्त की अनुमति लेनी पडती है । वह टालने के लिए २ वर्ष ११ माह का अनुबंध किया जाता था तत्पश्चात मानो वह संपत्ति दान कर दी गई है, इस रीति से उस ओर मुड कर भी न देखना, इस प्रकार का खाका समिति के व्यवस्थापन द्वारा अवलंबित किया गया था । इस प्रकार अनदेखी करनेके लिए प्रत्येक प्रकरण में प्रचंड अनुचित लेनदेन हुआ है, यह स्पष्ट है । (परिशिष्ट ५) खनन के लिए किया गया हजारों कोटि का अनुचित लेनदेन तथा किराया अनुबंध में हुए सैकडों कोटि रुपयों के अनुचित लेनदेन को देखते हुए भूमि की प्रविष्टि न होना तथा वैसी प्रविष्टि गत ४५ वर्षों में अद्यतन न करना यह बात साधारण नहीं है । प्रविष्टियां अद्यतन करने का कार्य प्रारंभ होने पर अनेक अनियमित प्रकरण उजागर होते गए तथा कुछ कोटि रुपयों की घूंस लेकर प्रकरण दबाए गए, यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है । इसी कारण से भूमि की प्रविष्टि अद्यतन नहीं हो रही है यह स्पष्ट है ।
५. आभूषणों का घोटाला
देवस्थान में बडी मात्रा में सोने, चांदी के आभूषण अर्पण किए जाते हैं; परंतु उनके हिसाब में प्रविष्टियों में घोटाला है । उदा. शेवाळे के लेखापरीक्षण ब्यौरे में चांदी के घोडे की प्रविष्टि है परंतु जांच करनेपर सोने के मोतियों की माला मिलना अंकित किया गया है और ३ हजार ६७ अलग अलग देवस्थान के आभूषण किसके अधीन हैं, इसकी प्रविष्टि ही नहीं है । भक्त द्वारा दान करते समय उसे दी गई पावती पर अंकित आभूषण का विवरण तथा प्रविष्टि पुस्तक में अंकित विवरण में अंतर है । यह सर्व संदेहास्पद है । आभूषणों की प्रविष्टि व्यवस्थित न करने के विषय में भी टिप्पणी की गई है । वही बात जनपदाधिकारी ने पुनः अपने ब्यौरे में भी संलग्न की है । (परिशिष्ट ६) शेवाळे द्वारा १९६९ से २००७ अर्थात अडतीस वर्षों की अवधि में एक ही लेखा परीक्षण किया गया है । इसका अर्थ यह है कि इतने वर्ष लेखापरीक्षण हुआ ही नहीं है । मंदिर समिति का ३ हजार ६७ मंदिरोंपर नियंत्रण नहीं है । पश्चिम महाराष्ट्र और कोकण क्षेत्र में फैले हुए इन मंदिरों में क्या होता है, इस ओर देवस्थान समिति ध्यान ही नहीं देती । इसे केवल अनदेखी अथवा अनास्था नहीं कहा जा सकता । जानबूझकर घोटालों को प्रोत्साहित करने के लिए ही यह किया जाता है । इन ३ हजार ६७ मंदिरों में भक्त जो दान करते हैं, वह दान कहां जाता है तथा गत ४५ वर्षों में वह कहां गया, इसकी जांच होनी चाहिए । महालक्ष्मी देवी को भक्त इतनी महंगी साडियां अर्पण करते हैं । वह साडियां बिना किसी टेंडर के एक व्यापारी को दिए जाने का उल्लेख है । (परिशिष्ट ७)
६. देवस्थान समिति के कारोबार का भ्रष्टाचार
फर्श बनाने के लिए अग्रिम १० लाख रुपए लिए गए, टेंडर भी नहीं मंगवाए गए, इसकी प्रविष्टिवाला ब्यौरा संलग्न है ।(परिशिष्ट ८) टेंडर मंगवाए नहीं गए, केवल यह अनियमितता हुई है, ऐसा मानना सादगी सिद्ध होगा । टेंडर मंगवाने से जनता को जानकारी मिलती है कि अमुक काम होना है तथा कोई जागरुक नागरिक काम की ओर ध्यान दे सकता है । फर्श के लिए दी गई अग्रिम राशि रु. १० लाख एक प्रकार का अनुचित लेनदेन ही है । यह स्पष्ट है कि केवल प्रपत्रों पर ही फर्श बने हैं । देवस्थान समिति के राज्यकर्ता न्यासी तथा उन्हें साथ देनेवाले भ्रष्ट नौकरशाह देवस्थान को अपने बाप का संस्थान मानते हैं । इसलिए किसी भी काम के लिए टेंडर इत्यादि नहीं मंगवाए जाते । अपनी मर्जी के लोगों को सेवा हेतु सीधे नियुक्त किया जाता है । इसलिए गैर कानूनी नौकर भरती हुई है । (परिशिष्ट ९)
७. राज्यकर्ताआें को भ्रष्ट धर्मादाय आयुक्त कार्यालय का साथ
मुंबई उच्च न्यायालय की एक सुनवाई में न्यायमूर्ति ने मत व्यक्त किया है कि सर्वाधिक अधर्म धर्मादाय आयुक्त के कार्यालय में होता है । देवस्थान समिति मुंबई न्यास कानूनन स्थापित होने के कारण उसपर धर्मादाय आयुक्त का नियंत्रण होना आवश्यक है; परंतु यह समिति कोई बजट प्रस्तुत नहीं करती अथवा तलपट प्रस्तुत नहीं करती, ऐसा धर्मादाय आयुक्त कार्यालय ने निर्लज्जता पूर्वक सूचित किया है । निजि न्यासियों के अधीन जो न्यास निधि होती है, उनके वाद–विवाद, उनकी संपत्ति के निस्तारण आदि में धर्मादाय आयुक्त कार्यालय के अधिकारी रुचि दिखाते हैं, यह भी आप जानते ही हैं । चरने हेतु पर्याप्त चारागाह होते हुए अपने जातबंधुआें के चारागाह में मुंह मारने की आवश्यकता धर्मादाय आयुक्त को नहीं पडी होगी ।
८. धर्म की असीमित हानि
गत ४५ वर्षों में इन अधर्मी राजनेताआें तथा नौकरशाहों के अभद्र गठबंधन के कारण हिन्दू धर्म की जो असीमित हानि हुई है, उसका लेखा जोखा प्रस्तुत करने में हम असमर्थ हैं । प्रत्येक मंदिर हिंदुआें का शक्तिस्थल है । हिन्दुआें के मंगलकार्य हेतु अनेक समृद्ध मंदिर सभागृह उपलब्ध करवाते हैं । इससे हिन्दुआें का संगठन होता है । धर्म के प्रति अभिमान बढता है । हिन्दू एकत्रित आने से संघभावना बढकर जातिभेद का भी निर्मूलन होता है । धर्माभिमान बढने से प्रलोभन देकर अथवा धर्म के विषय में अपभ्रंश फैलाकर होनेवाला धर्मपरिवर्तन रुकता है । कुछ हिन्दू देवस्थानोंने गरीब हिन्दू विद्यार्थियों को शिष्यवृत्तियां , गरीब हिन्दू विधवाआें को सहायता, हिन्दू परिवारों को चिकित्सकीय सहायता इत्यादि उपक्रम क्रियान्वित किए हैं । पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति ने इस प्रकार के कार्य किए होते तो हिन्दू धर्म को, हिन्दू धर्मावलम्बियों को लाभ मिलता । इन पापियों द्वारा की गई आर्थिक हानि की पूर्ति हो सकती है; परंतु धर्महानि की पूर्ति कैसे होगी ?
९. उपाय योजना
इस प्रकरण में हमने अनेक पृष्ठों के प्रमाण प्रस्तुत किए हैं । उस विषयमें आगामी जांच तत्परता से होनी चाहिए । संबंधितों पर दीवानी और फौजदारी अभियोग प्रविष्ट कर उन्हें दंड मिलना चाहिए । सर्व मंदिर राज्यकर्ताआें से मुक्त होने चाहिए । इस दृष्टि से कानून और व्यवस्था में भी परिवर्तन होना चाहिए । यह करने के लिए शासन को स्वच्छ चरित्र के व्यक्ति और संगठन की सहायता लेनी चाहिए