सऊदी अरब में जिंदगी आसान नहीं है, खासकर महिलाओं के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। यहां के अजीबोगरीब कानून और पाबंदियां लोगों के लिए हमेशा मुश्किलें खड़ी करती रही हैं। यहां महिलाओं की ड्राइविंग पर रोक है और रेप जैसे अपराध में आरोपी को सजा तभी मिल सकती है, जब उसके चार चश्मदीद हों। इसी तरह शुक्रवार को ब्लॉगर रैफी को सार्वजनिक तौर पर कोड़े मारे गए और वो 10 साल जेल की सजा काट रहा है। रैफी को सिर्फ एक ऑनलाइन फोरम चलाने पर इस्लाम के अपमान का दोषी बता दिया गया। यहां हम सऊदी अरब के ऐसे ही कुछ अजीबोगरीब कानून के बारे में बता रहे हैं।
अकेले सफर करने पर पाबंदी
४० साल के ऊपर की फातिमा रियाद में रहती है। वह तब तक प्लेन में बैठ नहीं सकती, जब तक उसके पास अपने बेटे द्वारा लिखित अनुमति नहीं होगी। यहां कानूनी रूप से बालिग होने के बावजूद महिलाओं का कोई अस्तित्व नहीं है। सऊदी में हर महिला का पुरुष अभिभावक होना चाहिए। इसमें उसके पिता से लेकर अंकल, भाई, बेटे होते हैं। किसी भी सऊदी महिला को पढ़ाई, काम, यात्रा, शादी और यहां तक डॉक्टरी जांच के लिए भी घर के पुरुष से लिखित अनुमति लेनी पड़ती है। वहीं, न्याय की बात तो भूल जाइए, बिना किसी भी पुरुष अभिभावक वो केस तक फाइल नहीं कर सकती।
बाल-विवाह
सऊदी अरब में छोटी-सी उम्र में ही लड़कियों को बेच कर उनकी शादी 70-80 साल के पुरुषों से कराने का चलन है। रियाद स्थित इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामिक यूनिवर्सिटी के प्रो. ग्रांड मुफ्ती शेख अब्दुल अजीज अल शेख का मानना है कि लड़कियां 10 से 12 साल की उम्र में शादी के लिए तैयार हो जाती हैं। 25 साल की उम्र में शादी करने वाली लड़कियां सबसे बड़ी गलती करती हैं। हाल के सालों में मुल्क में शादी के लिए उम्र बढ़ाने को लेकर काफी दबाव बन रहा है।
शिक्षा
सऊदी अरब के हायर एजुकेशन कानून के मुताबिक, सरकारी स्कॉलरशिप पर विदेश में पढ़ाई करने के दौरान लड़की के साथ पुरुष अभिभावक का होना ज़रूरी है। नियमों के मुताबिक, मां का जाना गैरकानूनी था। सऊदी अरब में एजुकेशन सिस्टम लैंगिक भेदवाव पर आधारित है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं। सऊदी ऑफिशियल पॉलिसी के मुताबिक, वहां लड़कियों को केवल इसलिए पढ़ाया जाता है, ताकि वे पारंपरिक इस्लामिक ढंग से अपनी जिम्मेदारियां निभा सकें। बीमारी की हालत में भी लड़कियां संस्थान का कैंपस तब तक नहीं छोड़ सकती हैं, जब तक पुरुष अभिभावक की इजाजत न हो।
बलात्कार का कानून
सऊदी में लड़कियों के बालिग होने से पहले ही शादी करा दी जाती है और उन्हें हिजाब में रहना पड़ता है। बावजूद इसके यहां रेप की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके लिए बलात्कार के कानून को जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि, सऊदी में शरिया कानून में रेप के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन यहां पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने को रेप नहीं माना जाता है। वहीं, बलात्कार के लिए किसी आरोपी को तब तक सजा नहीं दी जा सकती, जब तक उसके चार चश्मदीद न हों।
विदेशी महिला कामगारों के लिए देश में कोई कानून नहीं है। इसलिए उनके साथ सबसे ज्यादा ज्यादती की जाती है। इसके अलावा, रेप की रिपोर्टिंग करना प्रतिबंधित है। महिला के पराए मर्द के साथ रिश्ते रखने पर मर्द को कुछ नहीं कहा जाता है। महिला को इसके लिए उचित सजा दिए जाने का प्रावधान है।
नौकरी
सऊदी सरकार महिलाओं की शिक्षा के लिए काफी पैसे खर्च करती है, लेकिन उनकी नौकरी की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। 57 फीसदी महिलाओं के पास यूनिवर्सिटी की डिग्री है। 78 फीसदी स्नातक और 60 फीसदी पीएचडी डिग्री वाली महिलाएं बेरोजगार हैं। दरअसल, सऊदी अरब में पुरुष साथी के साथ काम करने, साक्षात्कारों से बचने के लिए नौकरी नहीं दी जाती है। सऊदी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं। 2009 में महिला ग्रैजुएट्स की संख्या 59,948 थी, जबकि 55,842 पुरुष ग्रैजुएट थे।
कार चलाने पर पाबंदी
2008 में वाजेहा अल-हुवैदर का नाम दुनिया में मशहूर हो गया। वह सऊदी अरब की पहली महिला थी, जिसने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपनी कार चलाने का वीडियो यूट्यूब पर पोस्ट किया था। सऊदी अरब में महिलाओं के कार चलाने पर पाबंदी है। हालांकि, पांच साल बाद अब थोड़ा बदलाव जरूर आया है।
महिलाओं को प्राइवेट ड्राइवर और पुरुष रिश्तेदार की निगरानी में कार चलाने की इजाजत दी जा चुकी है। कई बार पुलिस महिलाओं को गाड़ी चलाते हुए रोक लेती है और उनसे शपथ पत्र लिखवाती है कि वह कभी गाड़ी नहीं चलाएंगी। कई बार उन्हें कोड़े मारने की सजा भी दी जाती है। गत वर्ष अप्रैल में सऊदी अरब ने महिलाओं के साइकिल और मोटरसाइकिल न चलाने के कानून पर पाबंदी हटा ली है।
खेलों और जिम पर पाबंदी
लंदन ओलिंपिक में दो सऊदी महिला एथलीट्स को अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के दबाव में भेजना पड़ा। इससे पहले सऊदी अरब पुरुष खिलाड़ियों को ही भेजता था। हालांकि, फीमेल एथलीट्स का प्रसारण सऊदी टीवी पर नहीं किया गया था। सऊदी लड़कियों को खेलने और जिम जाने देने की इजाजत नहीं है।
प्रिंसेस नोरा बिंत अब्दुल रहमान यूनिवर्सिटी महिलाओं की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है जिसमें स्विमिंग पूल, टेनिस कोर्ट और एक्सरसाइज एरिया की सुविधा है। इसके अलावा, कोई भी यूनिवर्सिटी ऐसी सुविधा नहीं देती। फीमेल एथलीट्स किसी भी स्पोर्ट्स क्लब में रजिस्टर नहीं करा सकती। नेशनल ट्रायल में उनके लिए पाबंदी है। मई 2013 में शरिया कानून और ड्रेसकोड के साथ प्राइवेट स्कूल में स्पोर्ट्स एक्टिविटीज की इजाजत दी गई है।
कुछ ऐसे कानून
अरब क्रांति के बाद किंग अब्दुल्ला ने कुछ कानूनों में सुधार किया है। इसमें महिलाओं के अधिकार ज्यादा हैं। उन्होंने 2015 के म्युनिसिपल चुनावों में फीमेल वोटिंग को इजाजत दी है। जनवरी में उन्होंने पहली महिला सदस्य को सलाहकार परिषद में जगह दी है। वहीं, 150 सदस्यों वाली एडवाइजरी बॉडी में 30 महिलाएं शामिल हैं। 2009 में पहला एकीकृत कोएड यूनिवर्सिटी और देश की पहली महिला मंत्री नियुक्त की गई थीं। महिलाएं अब अंत:वस्त्र और मेकअप शॉप, सुपर मार्केट और रेस्त्रां में काम कर सकती हैं।
स्त्रोत : भास्कर