इंदिरा गांधीके प्रधानमंत्री रहते हुए हमारे देशमें तथाकथित ‘धर्मनिरपेक्षता’ का पौधा लगाकर उन्होंने अपने पिताका स्वप्न पूरा किया । उनकेद्वारा भारतीय संविधानमें ४२ वा सुधार करके, प्रजातंत्रकी स्वतंत्रताका तथा संविधानने दिए हमारे मूलभूत अधिकारोंका गला घोंट दिया । इस ‘धर्मनिरपेक्षता'की निरर्थकता और धर्मांधोंके अनुनयके लिए उसका बात-बातपर बिना सोचे-समझे किया जानेवाला (दुरु) उपयोग इस विषयसे संबंधीत कुछ ठोस उदाहरण इस लेखके माध्यमसे लेखकने देशवासीयोंके सामने प्रस्तूत करनेका प्रयास किया है । मासिक ‘धर्मभास्कर'में प्रसारित हुआ यह जनजागृतीपर लेख हम अपने पाठकोंके लिए प्रसारित कर रहे हैं ।
सारणी
- १. ‘धर्मनिरपेक्षता'की भारतीय संविधानमें अनावश्यकता !
- २. संविधानके ‘समान नागरी विधिके’ (कानून) विषयमें धर्मनिरपेक्ष शासनकी अक्षम्य टालमटोल
- ३. ‘धर्मनिरपेक्षता'से हुए दुष्परिणामोंके कुछ उदाहरण
- ४. धर्मांधोंकी डाढीयां सहलानेवाली इंदिरा गांधी और भारतका अवमान करके भारतद्वेष प्रकट करनेवाले इस्लामी देश !
१. ‘धर्मनिरपेक्षता'की भारतीय संविधानमें अनावश्यकता !
वर्ष १९७६ में कांग्रेसकी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधीने देशमें आपत्कालीन स्थिति लादकर उनके पिता जवाहरलाल नेहरूने आयात किया हुआ ‘सेक्युलॅरिझम' अर्थात ‘धर्मनिरपेक्षता'की अवधारणाको जन्म दिया ! भारतीय संविधानका यह ४२ वा सुधार प्रजातंत्रकी स्वतंत्रता तथा संविधानप्रदत्त मूलभूत अधिकारोंका गला घोंटनेवाला सिद्ध हुआ । हमारे देशकी प्राचीन सांस्कृतिक भूमीमें इस विदेशी पौधेकी किंचित् भी आवश्यकता नहीं थी और अभी भी नहीं है । इसिलिए १९५० में संविधानके निर्माताओंने भी इस अवधारणाको संविधानमें अंतर्भूत नहीं किया । मूलतः इस भूमिके हिंदु धर्ममें सबसे समान वर्तन करनेकी सीख अनुस्यूत है ही । सखेद आश्चर्यकी बात तो यह है कि, जिन देशोंसे यह ‘धर्मनिरपेक्षता' लायी गई, उस यरोप और विश्वके अन्य किसी भी देशके संविधानमें उसका कहीं कोई नामोल्लेख भी नहीं है ।
२. संविधानके ‘समान नागरी विधिके’ (कानून)
विषयमें धर्मनिरपेक्ष शासनकी अक्षम्य टालमटोल
एकओर धर्म तथा पंथ निरपेक्षताका आंचल ओढे रहना और दुसरीओर सभी धर्म तथा पंथीयोंके लिए उनके व्यक्तिगत पंथके आधारभूत विधिका (कानून) विनियोग चालू रखना, यही है अपने देशकी ‘धर्मनिरपेक्षता' ! हिंदुओंके लिए हिंदु विधि, धर्मांधोंके लिए शरियत, उसीप्रकार ईसाई, पारसी आदिके लिए उनके पंथके अनुसार स्वतंत्र विधि आज भी हमारे देशमें प्रचलित हैं; यद्यपि संविधानद्वारा प्रस्तूत और सभीके लिए उपयुक्त ‘समान नागरी विधि’ अंतर्गत ‘धारा ४४' अभीतक कूडेमें पडा है । सर्वोच्च न्यायालयने भी शहाबानो कांडसे लेकर आजतक ६-७ कांडोंमें ‘समान नागरी विधि' करनेके संबंधमें आदेश दे दिए हैं । फिर भी नरसिंहरावसे लेकर आज तकके सर्वदलीय ‘धर्मनिरपेक्ष' शासन इस विषयपर अंधे, गुंगे तथा बहरे बनकर हातपर हात धरे बैठे हैं; क्योंकि इकठ्ठा मतोंकी (व्होट बैंक) राजनिति !
३. ‘धर्मनिरपेक्षता'से हुए दुष्परिणामोंके कुछ उदाहरण
‘धर्मनिरपेक्षता'का स्वीकार करनेके पश्चात शिघ्रगतीसे जो बदलाव हो रहे हैं, उन प्रसंगोंसे इस अवधारणाके दुष्परिणाम हमलोग दिनोंदिन अत्याधिक प्रखरतासे अनुभव कर रहे हैं । संक्षिप्तमें यह उनका अनुक्रम हैं ।
३ अ. सुरक्षा दलोंमें धर्मांधोंकी अंकाई
करनेका आदेश, यह सुरक्षा व्यवस्थाके लिए धोखा !
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सत्तासीन कांग्रेसके केंद्रशासनने सुरक्षाके तिनों दलोंमें धर्मांधोंकी अंकाई करनेके आदेश प्रसारित किए । इस कार्यके लिए सच्चर समितीकी नियुक्ति की गयी और उसने दिए प्रतिवृत्तसे यह सुस्पष्ट भी हुआ । राष्ट्रीय अस्मिताके संबंधमें सतर्क रहनेवाले सेनाप्रमुख (जनरल) जे.जे. सिंहजी इन्होंने इस आदेशके पिछेकी राजनितिका मनोभाव जानकर और उससे सुरक्षा व्यवस्थामें निर्माण होनेवाले धोखेको ध्यानमें लेकर प्रकट विरोध दर्शाया ।
३ आ. हिंदुओंके धार्मिक भावनाओंका प्रकट घोषविक्रय (निलामी) !
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देशद्रोही चित्रकार मकबूल फिदा हुसैनने आजतक भगवान् श्रीकृष्ण, श्रीविष्णु, श्री लक्ष्मीमाता, श्री सरस्वतीमाता, प्रभु श्रीराम, माता सीता, बजरंगबली वीर हनुमान आदी देवताओंके बीभत्स तथा नग्न चित्र बनाकर इस देशके बहुसंख्य हिंदुओंकी धार्मिक भावनाओंको तो आहत किया ही; अपितु भूकंपग्रस्त कश्मीरी जनताकी सहायताके लिए हमारी मातृभू भारतमाताका नग्न चित्र बनाकर उसका प्रकट घोषविक्रय भी किया ।
३ इ. धर्मांधोंके धार्मिक भावनाओंके
आतंकवादी उद्रेककी ओर शासनकी जान-बुझकर अनदेखी !
महंमद पैगंबरका व्यंगचित्र बनाकर वह डेन्मार्कके समाचारपत्रमें छपवानेवाले व्यक्तिको प्राणदंड देनेके लिए उत्तरप्रदेशके महंमद याकूब कुरेशी नामके धर्मांध मंत्रीने पूरे ५१ करोड रु. और उतने ही मूल्यका सोना पारितोषिकके रूपमें देनेकी घोषणा की । इंद्रप्रस्थकी (दिल्ली) जामा मस्जिदके प्रमुख इमाम बुखारीने भी ‘पैगंबरका अवमान हुआ है; इसलिए सब धर्मांध रास्तेपर उतरे', ऐसा प्रकट आवाहन किया । परिणामतः अनेक गावोंमें धर्मांधने हिंसाचार करते हुए हिंदुओंके संपत्तीकी लूटमार और अग्नीकांड किया । इस देशद्रोही आतंकवादी कृत्योंकी ओर केंद्रशासन, तथा उत्तरप्रदेशके मुलायम सिंहने (खान) अनदेखी कर दी ।
(संदर्भ : 'धर्मभास्कर', मार्च २०१२)
४. धर्मांधोंकी डाढीयां सहलानेवाली इंदिरा गांधी
और भारतका अवमान करके भारतद्वेष प्रकट करनेवाले इस्लामी देश !
‘इंदिरा गांधीके प्रधानमंत्रीके कार्यकालमें यशवंतराव चौहाणने ‘धर्मांधोंको उनके प्रतिशतके अनुपातमें भारतीय सेनामें समाविष्ट करना चाहिए', ऐसा ‘फतवा' निकाला था । इस बातका भी पूरे देशने प्रखर विरोध किया था । इसी कालमें ‘राबत' इस अरब देशमें ३७ इस्लामी देशोंकी परिषद चल रही थी । उसमें भारत ‘इस्लाम देश' न होनेसे भारतको आमंत्रित नहीं किया था । फिर भी इंदिरा गांधीने तत्कालीन उद्योगमंत्री फक्रुद्दिन अली अहमदको (जिनको आगे चलकर भारतके राष्ट्रपतीके रूपमें नियुक्त किया गया) इस परिषदमें भारतके प्रतिनिधीके रूपमें भेजा गया; परंतु वे धर्मांध होकर भी भारतके प्रतिनिधीके रूपमें उनको अस्वीकृत ही नहीं किया गया; अपितु परिषदने उनको पीनेके लिए पानी तक नहीं पूछा । जान-बुझकर उनको इस प्रकार अवमानीत करके लौटा दिया । इसकी न इंदिरा गांधींको और न ही कांग्रेसी शासनको किंचित् भी न लाज आयी और न खेद ही हुआ ।'
(संदर्भ : ‘धर्मभास्कर', मार्च २०१२)
लेखक : अधिवक्ता (अॅड्.) यशवंत फडणीस, नागपूर