Menu Close

विद्यालयमें प्रार्थना कहनेकी अथवा प्रार्थनाके समय हाथ जोडनेपर शिक्षक बाध्य नहीं ! – उच्च न्याया

कार्तिक शुक्ल ३ , कलियुग वर्ष ५११५

  • निधर्मी शिक्षाप्रणालीमें इससे भिन्न और क्या होगा ?

  • हिंदु राष्ट्रमें विद्यालयोंमें प्रार्थना और राष्ट्रगीतका योग्य आदर किया जाएगा !

मुंबई – अनुदानित विद्यालयोंमें की जानेवाली प्रार्थना धार्मिक होनेसे और वे अपने धार्मिक विचारोंसे सुसंगत न होनेसे अथवा किसी शिक्षकको वह मान्य न होनेसे, उसे कहनेकी अथवा उस समय हाथ जोडकर खडे रहनेके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, ऐसा निर्णय उच्च न्यायालयने दिया है । इसके साथ ही जो शिक्षक प्रतिज्ञाके समय बिना हाथ आगे किए खडे रहते उससे भी अनुशासनका उल्लंघन नहीं होता है । नासिकके महात्मा फुले समाज शिक्षा संस्थाके संजय साळवे नामक शिक्षकने इस संदर्भमें याचिका प्रस्तुत की थी । उस याचिकापर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अभय ओक और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-ढेरेकी खंडपीठने यह निर्णय दिया ।

१. ‘खरा तो एकच धर्म, जगाला प्रेम अर्पावे एवं नमस्कार माझा या ज्ञानमंदिरा सत्यम शिवम सुंदरा’ (अर्थात खरा धर्म एक ही है, जगतको पे्रेम अर्पित करें तथा नमस्कार मेरा इस ज्ञानमंदिरको, सत्यं शिवम सुंदरम्), ये दो प्रार्थनाएं कही जाती हैं । उस समय शिक्षक सालवे हाथ जोडकर केवल शांतिसे खडे रहे । इसके साथ ही प्रतिज्ञाके समय उन्होंने कहा कि वे हाथ आगे कर ‘भारत मेरा देश है …..’, यह प्रतिज्ञा नहीं करेंगे । हाथ सामने नहीं करूंगा’’ ऐसा साळवेजी ने कहा है । उनका कहना था कि संविधानने प्रत्येक व्यक्तिको अभिव्यक्ती स्वतंत्रता दी है । इसलिए किसीको नमस्कारके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है । उसपर राज्यसंविधानने नागरिकोंको धर्मकी स्वतंत्रता एवं सद्सद्विवेकबुद्धिकी स्वतंत्रता दी है । इसलिए प्रार्थना कहना अथवा हाथ जोडना, इसके लिए इस शिक्षकको बाध्य करनेपर, यह उसके मूलभूत अधिकारोंका उल्लंघन होगा, ऐसा न्यायालयने स्पष्ट किया है ।

२. अर्जदार बौद्धधर्मीय हैं; परंतु ये प्रार्थना धार्मिक नहीं हैं, इसके साथ ही साने गुरुजीकी निधर्मीवादी भूमिकाके विषयमें किसीको शंका नहीं है । इसकारण भी विद्यालय प्रार्थनाओं द्वारा धार्मिक शिक्षा देती है, ऐसा भी हम नहीं कहेंगे । खंडपीठने आदेशमें यह भी स्पष्ट किया है ।

३. बिजॉय इमैन्युअल प्रकरणमें सर्वोच्च न्यायालयाने स्पष्ट किया था कि  ऐसा कोई भी कानून नहीं है जो कहता है राष्ट्रगीत गाना ही चाहिए । कोई व्यक्ति राष्ट्र्रगीतके समय राष्ट्रगीतके विषयमें कोई अनादर न दर्शाते हुए , बिना गाए यदि शांतिसे खडा रहता है, तो इससेराष्ट्रगीतका अपमान नहीं होता है । खंडपीठने भी अपने आदेशमें इसीका उल्लेख किया है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *