‘इस सृष्टिमें परमेश्वरकी सत्ता कार्यरत है । ‘सभी प्राणीमात्रोंको परमेश्वरकी सत्तानुसार आचरण करनाचाहिए’, इस प्रकारके शुद्ध विचार आचरणमें लाने हेतु सनातन वैदिक हिंदु धर्म, सर्वसमावेशक धर्म है । धर्मकी स्थापना करने हेतु ईश्वरसे एकनिष्ठ ऋषिमुनियोने वेद, शास्त्र इत्यादिके माध्यमसे समाजतक ज्ञानपहुंचाया है । सनातन वैदिक हिंदु धर्म ईश्वरकी ओर आकर्षित करनेवाला है । इसलिए वर्तमान कालमें ईश्वरसेपराङ्मुख एवं मायाकी ओर अधिक आकर्षित हुए मानवको आनंदित करनेवाली आचरणपद्धति अर्थात दैवीआचरणपद्धति अर्थात वेदशास्त्रसंमत संस्कारकृत धर्माचरण । वर्तमान कालमें मनुष्यको इससे अधिकआनंददायी करनेवाला कोई दूसरा उपाय नहीं है । इसलिए हिंदु धर्मीय सुपुत्रो, धर्मकी ओर अनदेखी न करें ।सकारात्मक एवं प्रामाणिक रहकर निकृष्ट पूर्वग्रहदूषितता त्याग कर सर्वश्रेष्ठ सनातन वैदिक हिंदु संस्कृतिस्वेच्छासे आचरणमें लाने हेतु कटिबद्ध हो ! इसके लिए सर्व हिंदुओंको संगठितकर सर्वत्र ईश्वरमान्य आचार,विचार एवं उच्चारोंका समन्वय साधनेवाला राष्ट्रीय अधिवेशन आवश्यक प्रतीत होता है । ‘यह अधिवेशन संपन्न होना, यह ईश्वरकी इच्छा ही है । इस सनातन कार्य हेतु हमारे गुरुपीठके अनंत आशीर्वाद !
।। यतो धर्मः ततो जयः ।।
अर्थ : जहां धर्म है, वहां विजय है ।
।। जय सच्चिदानंद ।।
– प.पू. ब्रह्मेशानंद स्वामी, तपोभूमि, कुंडई, गोवा.