भक्तों की ऐसी अपेक्षा है कि इस के लिए उत्तरदायी शासकीय मन्दिर समितिके अबतक के सदस्यों द्वारा यह राशि वसूल कर उनपर कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए !
धाराशिव – महाराष्ट्रके साढेतीन शक्तिपीठोंमें एक श्रीक्षेत्र तुलजापुर के श्री भवानीदेवीके मन्दिरमें वर्ष १९८९ से २००९ की २० वर्षोंकी कालावधिमें पूरे १२० किलो सोने, ४८० किलो चान्दी एवं २४० करोड रुपये नगद राशिका हिसाब ही नहीं लग रहा है । इसलिए वह सब लापता होेनेका संदेह है । मन्दिरका कार्यभार जनपदाधिकारीके पास है । तहसीलदार सचिव हैं, जबकि विधायक एवं नगराध्यक्ष सदस्य हैं । मराठी समाचार प्रणाल ‘एबीपी माझा’ पर यह समाचार दर्शाया गया ।
१. मन्दिर के कामकाज का लेखा परीक्षण कर उसका गुप्त ब्यौरा अपराध अन्वेषण शाखा को (सीआईडीको) प्रस्तुत किया गया । इस ब्यौरे के कारण अनेक प्रशासकीय अधिकारी अडचन में आए हैं । संभवतः इसीलिए सीआईडी ने जांच के लिए भेजी प्रश्नावली गृहसचिवके कार्यालयसे लापता हो गई है । (क्या ऐसा संदेहजनक कामकाज करनेवाला तंत्र कभी हिन्दुओंको न्याय मिलाकर देंगे ? – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात )
२. लातूरके विशेष लेखा परीक्षण पथकद्वारा श्री भवानीदेवीके मंदिरका वर्ष १९८९ से २००९ तक का २० वर्षोंका तुलनापत्र प्रस्तुत किया गया । ३४८ पानोंका यह ब्यौरा अगस्त २०१४ मेें विभागीय आयुक्तको तथा वहांसे अपराध अन्वेषण विभागको दिया गया ।
३. २० वर्षोमें मंदिरकी दानपेटी में आए हिरे, मोती, पाचू लापता हो गए हैं । एक वर्षमें ६ किलो सोना, २४ किलो चान्दी तथा १२ करोड रुपये रोख राशि संग्रहित होती है । इसके अनुसार २० वर्षोमें १२० किलो सोना, ४८० किलो चान्दी तथा २४० करोड रुपये नगद राशि लापताहोनेकी जानकारी मिली ।
४. लेखापरीक्षण करनेवाले सनदी लेखापाल ने (चार्टर्ड अकाऊंटंटने) अनेक बार आपत्ति जताई; परन्तु जनपदाधिकारी कार्यालय सुविधाजनक रूपसे उसकी अनदेखी की । (ये मंदिरके सरकारीकरणका दुष्परिणाम है ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात )
५. भाग्यनगरके (हैद्राबाद के) निजाम द्वारा दिए गए मन्दिर कवायदके अनुसार मन्दिरका कामकाज चलता है । (भाजपा-शिवसेना के शासन को चाहिए कि वह अब तो इस परतंत्रता की याद दिलाने वाली पद्धतिको बदलकर मंदिरोंको भक्तोंके नियन्त्रणमें दे ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात )
६. नवरात्रिकी घटस्थापनाको वर्षभरके लिए ५ दानपेटियोंकी निविदा निकालकर लिलाव होता है । ठेकेदार कोे प्रत्येक अमावस्याको पैसे जमा करने होते है; परन्तु जांचमें अनेक त्रुटियां दिखाई दी ।
७. दानपेटीकी चाभियां किसके पास है, यह स्पष्ट नहीं हुआ है ।
८. दानपेटीमें आया सोना तथा चान्दी संस्थानकी मालिकी का है, ऐसा बताकर छिपाकर रखा गया । सिंहासन पेटीको खोलते समय जानबूझकर मन्दिर संस्थानका प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात