Menu Close

बाइनरी अंकों को शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी की चुनौती

माघ शुक्ल पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११६

इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) : कंप्यूटर बाइनरी अंकों पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सवाल उठाए हैं। सनातन धर्म के पथ प्रदर्शक माने जाने वाले शंकराचार्य ने “द्वैंक पद्धति” (बाइनरी सिस्टम) नामक शोध पुस्तक में इसे सिद्ध भी किया है।

पुस्तक में कहा गया है कि बाइनरी अंकों में एक सीमा के बाद तारतम्यता भंग हो जाती है। स्वामी निश्चलानंद अब तक गणित की १० पुस्तकें लिख चुके हैं। इनमें अंक पद्यम या सूत्र गणित, स्वस्तिक गणित, गणित दर्शन, शून्येक सिद्धि, द्वैंक पद्धति आदि शामिल है। इन पुस्तकों पर ऑक्सफोर्ड से लेकर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों तक शोध हो रहे हैं।

शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य हैं। शंकराचार्य के अनुसार शुक्ल यजुर्वेद के तहत आने वाला रुद्राष्टाध्यायी इसका बेहतरीन उदाहरण है। इसमें श्लोक आते हैं एका च मे, पंच च मे, सप्त च मे आदि। यह तथा ऐसे अनगिनत ऋचाएं यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वेदकाल के भारतीय ऋषि न सिर्फ अंकों से परिचित थे वरन गणित में आज प्रचलित विभिन्न क्रियाएं जिसमें जोड़, घटाना, गुणा, भाग से लेकर बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति आदि शामिल हैं, से भी परिचित थे।

९० वर्षों से चल रहा गणित पर अनुसंधान

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने वेदों की ऋचाओं में गणित के सूत्र खोज निकाले थे और वैदिक गणित के नाम से दुनिया को परिचित कराया था। बिना कैलकुलेटर या कंप्यूटर बड़ी से बड़ी और जटिल गणना सरलता से करने की इस पद्धति की आज दुनिया कायल है।

मूलत : बिहार के हरीपुर बख्शी टोला निवासी स्वामी निश्चलानंद १० वीं तक पढ़ने के बाद वेदांगों के अध्ययन के लिए काशी आ गए थे। स्वामी निरंजन देव तीर्थ के बाद १९९२ में पुरी पीठ के शंकराचार्य बनाए गए। इसके साथ ही गणित के दार्शनिक पक्ष पर उनका चिंतन शुरू हुआ। २००६ में अंक पद्यम नामक पुस्तक के रूप में यह चिंतन सामने आया।

स्त्रोत : नई दुनिया

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *