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नालंदा के तेलहड़ा में मिला तीसरा प्राचीन विश्वविद्यालय

कार्तिक शुक्ल १२ , कलियुग वर्ष ५११५


पटना (बिहार) : उत्खनन के दौरान नालंदा के तेलहड़ा में नालंदा और विक्रमशिला के बाद तीसरा प्राचीन विश्वविद्यालय मिल गया है। गुप्तकाल से पाल काल तक यह विश्वविद्यालय अस्तित्व में रहा था। बख्तियार खिलजी ने इसे जलाकर नष्ट कर दिया था। कला संस्कृति, युवा विभाग एवं बिहार पुराविद् परिषद' के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को पटना संग्रहालय सभागार में 'पूर्व भारत में नूतन उत्खनन' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन पुरातत्व निदेशक अतुल कुमार वर्मा ने तेलहड़ा पर आलेख प्रस्तुत करते हुए खुदाई के दौरान अब तक मिले अवशेषों की जानकारियां दीं।

वर्मा ने अपने आलेख में कहा है कि प्राचीनकाल में तेलहड़ा सोन नदी के किनारे बसा हुआ था। चीनी यात्री इत्सीन ने अपने यात्रा वृतांत में बताया है कि यहां सबसे खूबसूरत बौद्ध मठ है। खुदाई में बौद्ध मठ का अस्तित्व मिला है। यहां उत्खनन के दौरान प्रस्तर और कांस्य की मूर्तियां, हाथी दांत की छोटी-छोटी मूर्ति मिली हैं। सैकड़ों मुहरें भी प्राप्त हुई है। सभी का अध्ययन हो रहा है। इससे नवीन ज्ञान में वृद्धि होगी। २००९ से यहां खुदाई शुरू हुई है। यहां तांबे की घंटियां मिल रही हैं। प्रतीत होता है कि हवा चलने पर घंटिया बजती थीं। गज-लक्ष्मी की मूर्ति के साथ महात्मा बुद्ध से जुड़े अनेक अवशेष मिल रहे हैं। वर्तमान में तेलहड़ा नालंदा से ५० किलोमीटर तथा बिहारशरीफ से ३५ किलोमीटर दूर एकंगरसराय के पास है।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन आधा दर्जन विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर आलेख प्रस्तुत किया। पूर्व निदेशक पटना संग्रहालय, यूएस द्विवेदी और अनंताशुतोष द्विवेदी ने बक्सर के चौसा में हो रहे उत्खनन पर आलेख प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि यहां एक मंदिर की आकृति मिली है। यह किस धर्म की है, इसका अब तक पता नहीं चल पाया है। शुंग वंश के समय के धर्म चक्र प्राप्त हुए हैं। पांच फीट की एक आदमकद प्रतिमा भी मिली है। कुषाण काल की दीवार, कई टेराकोटा समेत उत्खनन से गुप्तकालीन संरचना प्रकाश में आ रही है। इस स्थान पर नार्थ ब्लैक पॉलिस वेयर के काली सुंदर मृदभांड प्राप्त हुए हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डा. बीएस वर्मा ने अपने आलेख में सोनपुर [गया], चिरांद और विक्रमशिला के महत्व पर प्रकाश डाला।

सोनपुर राज्य का प्रथम उत्खनित ताम्र पाषाण कालीन स्थल था। चिरांद प्रथम नवपाषाण कालीन स्थान था। यहां नवपाषाण युग के अवशेष मिले हैं। हड्डी के औजार भारी मात्रा में यहां मिले हैं। कृषि की शुरूआत, पशुपालन की शुरुआत की कहानी मिल रही है। मछली मुख्य आहार था। गंडक, सरयू और गंगा के संगम स्थल पर चिरांद बसा हुआ था।

प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व विभाग, इलाहाबाद के प्राध्यापक डा. जगन्नाथ पाल ने इलाहाबाद के निकट हेतापट्टी के उत्खनन पर प्रकाश डाला और बताया कि यहां नव पाषाण काल से गुप्त का तक का अवशेष मिले हैं।

स्त्रोत : जागरण 

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