सारणी
१. इस्लाम पंथ तथा पंथीयोंपर प्रतिबंध लगानेवाला जापान !
|
‘विश्वके किसी भी इस्लामी राष्ट्रके प्रधानमंत्री अथवा कोई महत्त्वपूर्ण नेता जापानकी यात्रापर गए हैं ऐसा समाचार आपने कभी किसी समाचारपत्रमें पढा है ? क्या किसी समाचारपत्रमें कभी इतना तो पढा है कि, इराण अथवा सौदी अरेबियाके राजा भेंटवार्ताके लिए जापान गए हैं ? इसका कारण यह है –
अ. विश्वमें केवल जापान ही एक ऐसा राष्ट्र है, जो मुसलमानोंको अपने राष्ट्रका नागरिकत्व नहीं देता ।
आ. जापानमें किसी भी मुसलमानको स्थायीरूपसे रहनेकी अनुमति नहीं दी जाती ।
इ. जापानमें इस्लामके प्रचार-प्रसारपर कडा प्रतिबंध है ।
ई. जापानके विश्वविद्यालयोंमें अरबी अथवा अन्य इस्लामी देशोंकी भाषा नहीं पढाई जाती ।
उ. जापानमें अरबी भाषामें प्रकाशित कुराण आयात करना मना है ।
ऊ. सरकारप्राप्त जानकारीके अनुसार जापानके सरकारद्वारा नागरिकत्व प्राप्त हुए केवल दो लाख ही मुसलमान जापानमें हैं । ये सभी मुसलमान नागरिक जापानी भाषामें बोलते हैं तथा अपने सभी धार्मिक व्यवहार भी जापानी भाषामें ही करते हैं ।
ए. जापान विश्वका एक ही राष्ट्र है, जहां इस्लामी देशोंके दूतावास लगभग नहींके बराबर हैं ।
ऐ. जापानी लोगोंको इस्लामके विषयमें थोडासा भी आकर्षण नहीं है ।
ओ. आज वहां जितने भी मुसलमान हैं, वे अधिकतर विदेशी आस्थापनोंके कर्मचारी हैं ।
औ. आज भी किसी (बाहरी) विदेशी आस्थापनद्वारा भेजे गए मुसलमान आधुनिक वैद्य (डॉक्टर), अभियंता अथवा व्यवस्थापकोंको जापानमें भेजे जानेपर, जापानकी सरकार उन्हें जापानमें आनेकी अनुज्ञा नहीं देती ।
अं. कोई भी मुसलमान अपने यहां नौकरीके लिए आवेदनपत्र न भेजे, ऐसे अधिकतर जापानी आस्थापनोंने उनके नियमोंमें स्पष्टरूपसे निर्दिष्ट किया है ।
क. ‘मुसलमान कट्टरतावादी होनेके कारण आजके वैश्विकीकरणके कालमें भी वे उनके पुराने नियमोंमें कुछ भी परिवर्तन करनेकी इच्छा नहीं रखते’, ऐसी जापान शासनकी धारणा है ।
ख. जापानमें किसी मुसलमानको भाडेसे घर मिलेगा, इसकी कल्पना करना भी संभव नहीं है ।
ग. अपने पडोसमें कोई मुसलमान रहने आया है, ऐसा समाचार किसी जापानी नागरिकको मिलते ही, पूरी कालोनी (उससे) सतर्क रहती है ।
घ. जापानमें कोई भी इस्लामी अथवा अरबी मदरसा नहीं खोल सकता ।
च. जापानमें ‘पर्सनल लॉ ’ (विशिष्ट समुदायके लिए व्यक्तिगत कानून) ऐसा कोई कानून नहीं है ।
छ. किसी जापानी महिलाद्वारा मुसलमानसे विवाह किया जानेपर उसे सामाजिक दृष्टीसे बहिष्कृत किया जाता है ।
ज. टोकियो विश्वविद्यालयके विदेशी अध्ययन विभागके अध्यक्ष कोमिको यागीके अनुसार ‘जापानमें इस्लामके विषयमें वह एक संकुचित वृत्तीका पंथ है एवं उससे किसी भी प्रकारके संबंध रखना अनुचित है, ऐसी धारणा है ।’
झ. मुक्त पत्रकार मोहम्मद जुबेर ९/११ के कांडके पश्चात अनेक इस्लामी देशोंकी यात्रापर गए थे, तब वे जापान भी गए थे । वहां उनको इस बातका भान हुआ कि, ‘जापानी लोगोंको पूर्ण विश्वास है कि जापानमें आतंकवादी कुछ भी नहीं कर सकते ।’
२. ईसाई धर्मपरिवर्तनपर कठोर निर्बंध !
अ. जापानमें धर्मपरिवर्तनपर कडे निर्बंध हैं ।
आ. किसी जापानी नागरिकद्वारा किसी भी कारणवश उसके पंथमें परिवर्तन किया, तो उसे तथा इस कार्यमें सहयोगी, दोनोंको भी कडा दंड दिया जाता है ।
इ. किसी विदेशी नागरिकद्वारा ऐसा हुआ तो, सरकार कुछ ही घंटोंमें उसे जापान छोडनेका कडा आदेश देती है ।
ई. पूरे विश्वमें ईसाई मिशनरियोंका प्रभाव होते हुए भी जापानमें वे कहीं दिखाई नहीं देते ।
उ. व्हैटिकनके पोपको दो बातोंसे अत्याधिक खेद होता है । पहली बात यह है कि, २० वी शताब्दीके समाप्त होते हुए भी, भारतको ग्रिक जैसा ईसाई देश नहीं बना पाए तथा दुसरी बात यह है कि जापानके ईसाईयोंकी संख्यामें भी वृद्धि नहीं कर सके ।
ऊ. जापानी लोग मूठ्ठीभर पैसोंके लिए अपने पंथको नीलाम नहीं करते है । उन्हें बडेसे बडा प्रलोभन दिखानेपर भी अपने पंथकी वंचना करते हैं ।
संदर्भ :
१. जापानके विषयमें इस आश्चर्यजनक जानकारीके स्त्रोत शरणार्थीयोंसे संबंधित सूत्र देखनेवाली संस्था ‘सॉलीडॅरिटी नेटवर्क’ के महासचिव जनरल मनामी यातु हैं ।
२. मुजफ्फर हुसैनद्वारा लिखित लेखका कुछ अंश । दि. ३०.५.२०१० के ‘पांचजन्य’ में छपे लेखसे लिया गया है ।
(मासिक सावरकर टाइम्स, जुलाई २०१०)