कार्तिक शुक्ल १४ / पूर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११५
पुणे – इस वर्ष यहांके वेदभवनके रौप्य महोत्सव वर्षके निमित्त १३ नवंबरको वेदभवनमें ‘सरस्वती उपासना ‘ पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया गया था । इस अवसरपर बोलते हुए राज्यकी प्रमुख निर्वाचन आयुक्त नीला सत्यनारायणने अपेक्षा व्यक्त करते हुए कहा कि विद्यालयमें मूलभूतशिक्षाकी अवधिमें वेदोंकी शिक्षा देने हेतु मैं प्रयास करुंगी । अपनी सांस्कृतिक धरोहर संजोने हेतु एवं भविष्यकी पीढियोंको अधःपतनसे बचाने हेतु समाजको सरल भाषामें वेदोंका अर्थ बताना चाहिए । वेदोंका अंग्रेजीमें सरल शब्दोंमें भाषांतर होना चाहिए ।
इस अवसरपर डॉ. संजय उपाध्याय, वेदमूर्ति मोरश्वर घैसास गुरुजी उपस्थित थे । इस अवसरपर इस वर्षका ‘सरस्वती उपासना’ पुरस्कार कर्नाटकके ‘शंकर वेदविद्या वेदपाठशाला’के श्री. अंशुमन अभ्यंकर गुरुजीको प्रदान किया गया । २५ सहस्र रुपए नगद, सम्मानचिह्न तथा मानपत्र देकर उन्हें सम्मानित किया गया ।
वेदोंका प्रसार करनेसे अच्छे राष्ट्रकी स्थापना होगी ! – अंशुमन अभ्यंकर
पुरस्कारको स्वीकार करते समय श्री. अभ्यंकरने कहा कि ब्राह्ममुहूर्तमें वेदोच्चार करनेसे मनकी शुद्धि होती है । अच्छा संकल्प होता है, `शस्त्र जीवकी रक्षा करते हैं, जबकि शास्त्र जीवनकी’ । वेदविद्या जीवन जीनेकी शिक्षा देती है । वेदोंका प्रसार एवं प्रचार करनेसे अच्छे राष्ट्रकी स्थापना होगी ।
डॉ. संजय उपाध्यायने, ‘जो ज्ञात है, वह वेद एवं जो अज्ञात है, वह भगवन ! अतः डॉ. लागूसमान ऐसा न कहें कि भगवानको निवृत्त (रिटायर) करें ।’ ऐसा कहते हुए वेदोंका अधिकाधिक प्रसार करनेकी आवश्यकता बताई ।
स्त्रोत : दैनीक सनातन प्रभात