भारतवर्ष और हिंदु धर्मके पुनरुत्थानकी पुकार !

गोवर्द्धनपीठके जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजीकी धर्मजागृति सभाओंके उपलक्ष्यमें… !

एक समय, पूरे विश्‍वमें सर्वश्रेष्ठ सनातन संस्कृतिके तेजस्वी प्रकाशकिरण फैलानेवाले भारतवर्ष नामक तेजोमय राष्ट्रसूर्यको आज अधर्मी शासकोंका ग्रहण लग गया है ! किंतु, ऐसे आपातकालमें अधिकतर हिंदुओंको स्वधर्मका विस्मरण होनेसे वे राष्ट्रकर्तव्यसे विमुख हो गए हैं । परिणामस्वरूप, संपूर्ण राष्ट्र ही पतित हो गया है…! इतिहासमें एक समय ऐसा भी था – ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः । अर्थात ब्रह्म ही सत्य है, शेष सर्व मिथ्या (झूठ) है । जीव ब्रह्मसे भिन्न नहीं है ।, इस अद्वैत तत्त्वज्ञानकी शिक्षा विश्‍वको देनेवाले आद्यशंकराचार्यजीने सत्य सनातन धर्मकी प्रस्थापनाके लिए भारतभ्रमण कर अवैदिक मतोंका खंडन किया था । यही है वह, शांकरदिग्विजय ! वर्तमानमें, सनातन भारतवर्षकी इस आद्यपरंपराका संवर्धन कर रहे हैं, गोवर्द्धनमठ (पुरी, ओडिशा) के १४५ वें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराज ! भारतवर्ष और हिंदु धर्मके पुनरुत्थानके विचारसे प्रेरित होकर हिंदू जनजागृति समितिने हिंदु धर्मजागृति सभाओंका यज्ञ आरंभ किया है । इस यज्ञका यजमानपद भूषित करनेके लिए और हिंदू समाजको उत्तिष्ठत जाग्रत । अर्थात जागो, उठो और आगे बढो !, ऐसा संदेश देनेके लिए श्रीमद्शंकराचार्य स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजीका पहली बार महाराष्ट्र और गोवा इन राज्योंमें शुभागमन हो रहा है । इस उपलक्ष्यमें…


१. आदि शंकराचार्यद्वारा स्थापित चार पीठ, हिंदु धर्मके परमोच्च आस्थाकेंद्र !

        आदि शंकराचार्यने सनातन वैदिक हिंदु धर्मकी रक्षा हेतु भारतमें चारों दिशाओंमें चार शांकरपीठोंकी स्थापना की । ये चार धर्मपीठ आज भी सनातन हिंदु धर्मके ज्ञानदीपस्तंभ और हिंदुओंके परमोच्च आस्थाकेंद्र हैं ।

२. शंकराचार्य श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजका जीवनचरित्र

        युधिष्ठिर शक संवत् २६५२ अर्थात ई.स.पूव ४८६में स्थापित पुरीपीठके शंकराचार्यपदपर वर्तमानमें जगद्गुरु स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराज विराजमान हैं । 

२ अ. बाल्यावस्थासे ही साधनारंभ

जगद्गुरु स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजका जन्म विक्रम संवत् २००० में आषाढ कृष्ण पक्ष त्रयोदशीपर, अर्थात ३० जून १९४३ को हुआ । उनका पहला नाम नीलांबर था । ढाई वर्षकी बाल्यावस्थामें उन्हें राधाकृष्णका परम अनुग्रह प्राप्त हुआ । १६ वर्षकी अवस्थामें मरणासन्न अवस्थामें होते हुए भी, उन्होंने पिताजीकी (पिताजी राजपंडित थे ।) समाधिके निकट जाकर दंडवत प्रणाम कर प्रार्थना की, यह शरीर इसी क्षण शव हो जाए अथवा स्वस्थ हो जाए । उसी क्षण एक दिव्यशक्तिने उन्हें वेगसे उठाया । उठनेके पश्‍चात उन्होंने आकाशमें देखा, तो उन्हें श्‍वेत वस्त्र एवं पगडी धारण किए तथा गोलाकार पद्मासनमें बैठे १० सहस्र पितरोंके दर्शन हुए । पितरोंके आशीर्वादसे वे उसी क्षण रोगमुक्त एवं स्वस्थ हो गए ।

२ आ. युवावस्थामें धर्मग्रंथोंका अध्ययन

उनकी महाविद्यालयीन शिक्षा बिहार और देहलीमें हुई । महाविद्यालयीन परिक्षा उत्तीर्ण करते समय उन्होंने छात्रसंघ विद्यार्थी परिषदके उपाध्यक्ष तथा महासचिवके रूपमें भी कार्य किया । देहलीके महाविद्यालयमें शिक्षा ग्रहण करते समय पं. श्रीदेव झा के मार्गदर्शनानुसार उन्होंने साधना आरंभ की । उस समय उन्होंने एक ही वर्षमें ५२ तंत्रग्रंथोंका अध्ययन और अन्नपूर्णादेवीकी उपासना की । महाविद्यालयीन शिक्षा ग्रहण करते समय उन्होंने भगवद्गीता और योगशास्त्रका अध्ययन आरंभ किया ।

२ इ. गोरक्षा आंदोलनमें कारावास

७ नवंबर १९६६ को देहलीमें हुए गोरक्षा आंदोलनमें वे सम्मिलित हुए । इसलिए, उन्हें ५२ दिन कारावास भोगना पडा !

२ ई. युवावस्थामें ही संन्यासकी दीक्षा

देहलीमें संपन्न हुए सर्व वेदशाखा सम्मेलनमें उन्हें पूज्यपाद धर्मसम्राट करपात्रस्वामीजीके दर्शन हुए और उन्होंने मन-ही-मन उन्हें गुरूके रूपमें स्वीकार किया । आगे संन्यास लेनेकी इच्छा प्रबल होनेपर किसीको बताए बिना वे पैदल काशी गए । ३१ वर्षकी अवस्थामें उन्होंने पूज्यपाद धर्मसम्राट करपात्रस्वामीजीके आशीर्वादसे संन्यास ग्रहण किया । उन्होंने वृंदावन, नैमिषारण्य, बदरिकाश्रम, हृषिकेश, हरिद्वार, पुरी, शृंगेरी आदि स्थानोंमें रहकर वेदोंका गहन अध्ययन किया ।

२ उ. शंकराचार्यपदपर विराजमान

९ फरवरी १९९२ के दिन पुरी पीठके तत्कालीन शंकराचार्य पूज्यपाद जगद्गुरु स्वामी निरंजनदेव तीर्थ महाराजजीने स्वामी निश्‍चलानंद सरस्वतीजीको ४९ वर्षकी अवस्थामें उत्तराधिकारी तथा पुरी पीठके १४५ वें पीठाधीश्‍वरके रूपमें शंकराचार्यपदपर विराजित किया !

३. शंकराचार्य श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजका अद्वितीय धर्मकार्य !

३ अ. हिंदूहितोंकी रक्षा और देशकी अखंडताके लिए राष्ट्र रक्षा अभियान !

        शंकराचार्यपदपर विराजमान होते ही उन्होंने सर्वप्रथम अन्योंके हितकी रक्षा करते हुए हिंदुओंके अस्तित्व और आदर्शकी सुरक्षा ही, देशकी सुरक्षा एवं अखंडता है, इस भावनाको देशके आचार्योंके मनपर अंकित करनेके लिए आचार्योंको एक व्यासपीठपर लाया । तदुपरांत राष्ट्रीय स्तरपर राष्ट्र रक्षा अभियान आरंभ किया । सत्तापिपासु और अदूरदर्शी राजनीतिज्ञोंसे राष्ट्रको मुक्त करना, राष्ट्र रक्षा अभियानका एक व्यापक समष्टि उद्देश्य है ।

३ आ. विद्वान नागरिकोंके लिए पीठ परिषदकी स्थापना !

        इस अभियानको मूर्तरूप देनेके लिए देशके विद्वान नागरिकोंकी पीठ परिषद स्थापित कर, उसके अंतर्गत युवकोंके लिए आदित्य वाहिनी और महिलाओंके लिए आनंद वाहिनीका शुभारंभ किया । देव, धर्म और राष्ट्रको साथमें जोडनेका कार्य इन संगठनोंद्वारा करनेकी उनकी इच्छा है । पक्ष और पंथोंमें विभाजित राष्ट्रको सार्वभौम सनातन सिद्धांतोंके प्रति दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोणसे श्रद्धायुक्त करनेका मार्ग प्रशस्त हो, यह शंकराचार्यजीका उदात्त उद्देश्य है ।

३ इ. समाजके लिए कल्याणकारी कार्य

        श्रीमद् शंकराचार्यजीकी प्रेरणासे गोवर्द्धनपीठकी ओरसे समाजके लिए कल्याणकारी निम्नांकित उपक्रम नियमित चलाए जा रहे हैं ।

३ इ १. सामाजिक : चिकित्सालय, रुग्णवाहिका, अन्नछत्र, व्यायामशाला इत्यादि ।

३ इ २. धार्मिक : संतसम्मेेलन, राष्ट्रीय साधना शिविर, रथयात्राका आयोजन, धार्मिक ग्रंथोंका प्रकाशन, ग्रंथालय, गोपालनशाला इत्यादि ।

४. शंकराचार्य श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजके विशेषतापूर्ण कार्य

४ अ. वैदिक सिद्धांतोंकी आधुनिक वैज्ञानिक शैलीमें प्रस्तुति

        शंकराचार्य श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराज, वैदिक सिद्धांतोंके साक्षात वेदमूर्ति हैं । मानव आनंदमय जीवन व्यतीत करें, इस हेतु वे वैदिक सिद्धांतोंके अंतर्गत भोजन-विज्ञान, वस्त्र-विज्ञान, आवास-विज्ञान, सुरक्षा-विज्ञान, न्याय-विज्ञान, स्वास्थ्य-विज्ञान, पर्यावरण-विज्ञान, विवाह-विज्ञान, व्यावहारिक-विज्ञान इत्यादि मौलिक ज्ञान दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक पद्धतिसे देते
हैं ।
ऐसा होनेपर भी वे आध्यात्मिक ज्ञानको अधिक महत्त्व देते हैं और कहते हैं कि, मानव जीवनका मूल उद्देश्य और उसकी सार्थकता ईश्‍वरप्राप्तिमें है ।

४ आ. गणितज्ञ शंकराचार्यजीके वैदिक गणितपर आधारित ग्रंथोंका २०० देशोंद्वारा अत्याधुनिक क्षेत्रोंमें प्रयोग !

        जगद्गुरु स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजद्वारा वैदिक गणितपर शोध कर लिखे ग्रंथ स्वस्तिक गणितके सिद्धांतका प्रयोग विश्‍वके २०० देशोंद्वारा संगणक, भ्रमणभाष एवं अंतरिक्ष विज्ञान जैसे क्षेत्रोंमें किया जा रहा है । किंतु, उन्होंने अधिकाधिक ग्रंथ गणित विषयपर ही लिखे हैं । ये ग्रंथ वैश्‍विक स्तरके वैज्ञानिकोंके लिए विविध क्षेत्रोंमें नए आविष्कारोंके मापदंड प्रस्थापित करेंगे !

४ इ. संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन्स) और वर्ल्ड बैंकका ध्यान आकृष्ट

        वर्ष २००० में संयुक्त राष्ट्रोंके न्यूयॉर्कमें आयोजित विश्‍वशांति शिखर सम्मेलनके लिए और वर्ल्ड बैंकद्वारा वॉशिंग्टनमें आयोजित वर्ल्ड फेथ्स डेवलपमेंट डायलॉगके लिए जगद्गुरु स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराज लिखित मार्गदर्शन मंगवाया गया था । तदुपरांत इसी विषयपर उनके विश्‍वशांतिका सनातन सिद्धांत और सुखमय जीवनका सनातन सिद्धांत, इन दो ग्रंथोंका प्रकाशन किया गया है ।

५. श्रीमद् शंकराचार्यजीकी धर्मजागृति सभाओंका आयोजन करनेका हिंदू जनजागृति समितिका उद्देश्य !

        विद्यमान परिस्थितिमें हिंदू समाजको सामाजिक, राष्ट्रीय और धार्मिक दृष्टिकोणसे जागृत करनेकी नितांत आवश्यकता है । श्रीमद् शंकराचार्य, हिंदू समाजके सर्वोच्च धर्मगुरु और आस्थाकेंद्र हैं । उनका मार्गदर्शन ज्ञान, ओज, तेज एवं चैतन्यसे ओतप्रोत होनेके कारण हिंदू समाजके लिए एक वस्तुनिष्ठ दिशादर्शक है । इसलिए हिंदू जनजागृति समितिने अपनी स्थापनाके पश्‍चात ई.स. २००३ में गोवामें कांची कामकोटी पीठके शंकराचार्य श्री स्वामी जयेंद्र सरस्वती महाराजजीकी सार्वजनिक धर्मसभाका आयोजन किया था । तदुपरांत आजतक हिंदू जनजागृति समितिने देशके ११ राज्योंमें और ७ भाषाओंमें ९१६ हिंदू धर्मजागृति सभाओंका आयोजन किया है । इन धर्मसभाओंको स्थानीय धर्मगुरु, संत और मान्यवर हिंदुत्वनिष्ठ नेताओंने संबोधित किया है । परिणामस्वरूप, हिंदू पद, जाति, दल, संगठन, संप्रदाय आदिको भूलकर एक साथ आ रहे हैं और हिंदुओंपर होनेवाले अन्यायोंके विरुद्ध एक देशव्यापी हिंदूसंगठन खडा हो रहा है ।
इस वर्ष हिंदू जनजागृति समितिका एकादशपूर्ति वर्ष (अक्टूबर २००२ से अक्टूबर २०१३) मनाया जा रहा है । इस एकादश वर्षमें हिंदू जनजागृति समितिने धर्मशिक्षा, धर्मजागृति, राष्ट्ररक्षा, धर्मरक्षा और हिंदूसंगठनके विविध पंचसूत्री उपक्रम सफलतापूर्वक किए हैं । महाराष्ट्रमें अंधश्रद्धा निर्मूलन और मंदिरोंका सरकारीकरण इन हिंदुविरोधी अधिनियमोंके विरुद्ध जनजागृति की । गोवामें पाठ्यक्रमकी पुस्तकोंमें किया गया हिंदु इतिहासका विकृतिकरण रोका । देवताओंका अनादर, हिंदु धर्मकी निंदा, मंदिरोंमे होनेवाली चोरियां, धर्म-परिवर्तन इत्यादि धर्महानिकी घटनाएं रोकनेके लिए सक्रिय नेतृत्व किया । यह सर्व कार्य ईश्‍वरकी कृपा और संतोंके आशीर्वादसे ही संभव हुआ है । गतवर्ष हिंदू जनजागृति समितिकी दशकपूर्ति मनाई गई । उस अवधिमें प्रयाग (इलाहाबाद) के महाकुंभमें श्रीमद् शंकराचार्य स्वामी निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजने हिंदू जनजागृति समितिको पुरी पीठकी मित्र संस्था कहा था । वस्तुतः, शांकरपीठके सामने हिंदू जनजागृति समिति एक बालक संस्था है । इस वर्षकी एकादशपूर्ति, हिंदू जनजागृति समितिके लिए कृतज्ञताका क्षण है । संतोंसे अधिक सत्पात्र इस विश्‍वमें कोई नहीं । इसलिए, कृतज्ञताभावसे हिंदू जनजागृति समितिने जगद्गुरु स्वामी श्री निश्‍चलानंदसरस्वतीजी महाराजकी धर्मजागृति सभाओंका आयोजन किया है । नवी मुंबईमें २० नवंबर, गोवामें २४ नवंबर और पुणेमें २७ नवंबर २०१३ को सार्वजनिक धर्मजागृति सभाओंद्वारा श्रीमद् शंकराचार्यजीका अनमोल मार्गदर्शन होनेवाला है । इस मार्गदर्शनका लाभ लेकर भारतवर्ष और हिंदु धर्मके पुनरुत्थान हेतु धर्मपरायण हिंदूमन प्रतिज्ञाबद्ध हो, यह पीठस्थ देवताओंके चरणोंमें प्रार्थना !

श्री. सुनील घनवट, संयोजक, हिंदू जनजागृति समिति, महाराष्ट्र

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​