मार्गशीर्ष कृष्ण ४, कलियुग वर्ष ५११५
पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ, पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निश्चलानंदसरस्वती महाराजकी विशाल धर्मसभाओंके अवसरपर योगतज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायनजीका संदेश
ॐ आनंदं हिमालयं विष्णुं गरुडध्वजं ॐ ।
ॐ शिवं दत्तं गायत्री सरस्वती महालक्ष्मी प्रणमाम्यहं ॐ ॥
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सांप्रतकालमें (वर्तमानमें) हिंदू धर्मकी रक्षा करना हम सबका कर्तव्यकर्म है । शिवछत्रपति तथा समर्थ रामदासस्वामीजीने गोब्राह्मण प्रतिपालनका ध्येय निभाया; इसी कारण म्लेच्छ आक्रमणोंसे हिंदू धर्म की रक्षा हुई । आज सुधार करना अथवा विज्ञानका समर्थन करनेके नामपर अपने धर्मकी रूढियां अर्थहीन हैं, ऐसा बोलनेका एक फैशन आ गया है; किंतु अपनी सारी रूढियां विज्ञानपर ही आधारित हैं । प्राचीन कालमें ऋषियोंने विज्ञानका अभ्यास कर सारी रूढियोंका महत्त्व बताया था । जो लोग आज भी मानवतावादी तथा मानवके लिए हितकारी सिद्ध होनेवाली हिंदू धर्मकी रूढि एवं ग्रंथोंका दृढतासे समर्थन करते हैं, उन्हें अंतरमनसे मेरे आशीर्वाद ।
प.पू. स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराजने हिंदू संगठनका जो कार्य हाथमें लिया है, वह प्रशंसनीय है । वर्तमान कालमें निरपेक्ष होकर इस प्रकारका धर्मकार्य तथा विद्यादान करना, भूखोंको अन्नदान करना तथा रुग्ण सेवा करना आदि दुर्लभ ही हैं; किंतु अपने कार्यसे प.पू. स्वामीने एक आदर्श स्थापित किया है । यदि बहुसंख्य हिंदू धर्माभिमानी इसका पालन करें, तो हिंदू धर्मका उद्धार होनेमें देर नहीं लगेगी; अत: इस प्रकारके समाजधुरंधर अधिकाधिक हों, ईश्वरचरणोंमें यही प्रार्थना । प्रार्थना. शुभम् !
– योगतज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायन
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात