चलचित्रोंके माध्यमसे हिंदुओंकी धार्मिक भावना नष्ट करनेका षडयंत्र !

मार्गशीर्ष कृष्ण ४, कलियुग वर्ष ५११५

दिग्दर्शक एवं निर्माता संजय लीला भन्सालीके रामलीला चलचित्रमें करोडों हिंदुओंके पवित्र ग्रंथ रामायणका विकृतीकरण किया गया है । इस चलचित्रमें अनेक दृश्य एवं गीत अश्लील तथा देवी-देवताओंका अनादर करनेवाले हैं । अतः करोडों हिंदू चाहते थे कि यह चलचित्र प्रदर्शित न हो । इसके लिए हिंदुओंने संबंधित व्यक्तियोंको निवेदन देना, प्रदर्शन करना ऐसे अनेक मार्गोंसे आंदोलन किए । न्यायालयीन लडाई भी की । इतना होनेपर भी दिग्दर्शकने चलचित्रके नाममें साधारणसा बदल कर पलायनवादी मार्ग निकालते हुए १५ नवंबरको यह चलचित्र निश्चित रूपसे देश एवं विदेशमें प्रदर्शित किया ! इस उदाहरणसे बारबार यही सिद्ध होता है कि प्रत्येक समय चलचित्र, नाटक, विज्ञापन, पुस्तक तथा अन्य किसी भी संदर्भमें हिंदुओंकी धार्मिक भावनाओंका कुछ भी महत्व नहीं है । केवल अन्य धर्मियोंका ही महत्व है । पिछले कुछ वर्षोंसे चल रहे चलचित्रोंका प्रवाह देखनेपर ध्यानमें आता है कि कांग्रेसी राजनेताओंद्वारा समर्थन रहनेके कारण समाजकी कुल धार्मिक भावना नष्ट करनेका अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र रचा जा रहा है !

अन्य धर्मियोंके श्रद्धास्थानोंके विषयमें तत्परतासे कृत्य करनेवाले हिंदूद्वेषी राजनेता !

कुछ माह पूर्व कमल हासनका ‘विश्वरूपम्’ चलचित्र आया था । चलचित्र प्रदर्शित हानेसे पूर्व ही तामिलनाडूकी मुख्यमंत्री जयललिताने, ‘धर्मांधोंकी धार्मिक भावना दुखानेके दृश्य हैं’, ऐसा संताप व्यक्त करते हुए चलचित्रपर प्रतिबंध लगाया । जयललिताने इसका कारण बताते हुए कहा कि यदि यह चलचित्र प्रदर्शित हुआ, तो कानून एवं सुरक्षाका प्रश्न उत्पन्न होगा । कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेशमें न्यायालयमें याचिकाएं प्रविष्ट की गर्इं एवं चलचित्रोंकी प्रदर्शनी तत्काल रोकी गई । कुछ वर्ष पूर्व आए ‘द दा विंची कोड‘ चलचित्रके संदर्भमें भी ऐसा ही हुआ । गोवामें ईसाईयोंकी भावनाएं आहत होंगी, ऐसा कारण बताते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकारने इस चलचित्रपर प्रतिबंध लगाया था ।

इसके विपरीत ऐसा दिखाई देता है कि जिस समय हिंदू अपनी धार्मिक भावनाएं आहत होनेके कारण कोई चलचित्र-नाटक प्रदर्शित न होने हेतु भावना व्यवत करते हैं, उस समय वह चलचित्र प्रदर्शित न होने हेतु केंद्रकी अथवा किसी भी राजनेताकी इच्छाशक्ति कार्यरत नहीं रहती । ऐसे समय ‘अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य’ जैसा शब्दप्रयोग किया जाता है ! पाकिस्तान शत्रु राष्ट्र का समर्थन करनेके कारण शाहरूख खानके ‘माई नेम इज खान’ चलचित्रका शिवसेनाद्वारा विरोध करनेपर महाराष्ट्रमें पुलिसकी सुरक्षामें उसे प्रदर्शित किया गया । क्योंकि खान ‘धर्मांध हैं इसलिए उन्हें अपनी भावनाओंको व्यक्त करनेका अधिकार है ! परंतु हिंदुओंको यह अधिकार नहीं है । रामलीला चलचित्रपर एक न्यायालयद्वारा प्रतिबंध लगाया जानेपर तत्काल दूसरे दिन वरिष्ठ न्यायालयद्वारा उसे हटाया गया । इसके विपरीत ‘विश्वरूपम्’ प्रदर्शित होने हेतु न्यायालयद्वारा १५ दिनके लिए स्थगित किया गया । इससे यदि किसीको ऐसा प्रतीत हुआ कि न्यायतंत्र भी हिंदुओंके साथ अंतर करते हैं, तो उसमें क्या अनुचित है ?

धर्माचरणी हिंदुओंको अपकीर्त करनेका अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र !

बॉलीवुडमें नाम लगाया हुआ शिखा रखनेवाला धार्मिक मनुष्य जानबूझकर बुरा दर्शाया जाता है । धार्मिक लोगोंको जानबूझकर नकारात्मक दृष्टिकोणसे दर्शाया जाता है । इस समयके कुछ चलचित्रोंके उदाहरणोंमें ‘ओ माई गॉड,’ मराठीमें ‘देऊळ’ ये कुछ उदाहरण हैं, जिनके कारण विशेष रूपसे हिंदू युवकोंके मनकी धार्मिक भावनाओंका निर्मूलन होनेसे वे धर्मविरोधी बनते हैं ! हिंदुओंको अपने धर्मसे दूर करने हेतु रचा गया यह एक अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र है ।

यह सब रोकना राजनेताओंके हाथोंमें है । परंतु उन्होंने निरपेक्षताका बुरखा धारण कर लिया है । इसलिए ऐसा करनेमें जानबूझकर टालमटोल करते हैं ! परंतु ‘हिंदू राष्ट्र’ में हिंदुओंकी धार्मिक भावनाओंका मूल्य रहेगा !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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