शंकराचार्यजीका आगमन एवं वृत्तवाहिनियोंका हिंदू द्वेष !

मार्गशीर्ष कृष्ण ६, कलियुग वर्ष ५११५

जगन्नाथ पुरी गोवर्धन पीठके शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीका महाराष्ट्रमें १९ नवंबरको आगमन हुआ । शंकराचार्य जी राज्यकी राजधानीसे लगे नगरमें अर्थात नई मुंबईमें २० नवंबरको विशाल धर्मसभा संबोधित कर रहे हैं । २७ नवंबरको राज्यकी सांस्कृतिक राजधानी पुणेमें धर्मसभा संबोधित करेंगे । इस अवसरपर शंकराचार्यजीकी वार्ताकार परिषद आयोजित की गई थी; किंतु इस परिषदकी ओरसे राज्यकी वृत्तवाहिनियोंने मुंह फेर लिया था । राजनीतिज्ञोंके हर कृत्यका लेखा-जोखा रखनेवाली वृत्तवाहिनियोंने आद्य शंकराचार्यजीद्वारा स्थापित पीठोंमेंसे एक पीठके शंकराचार्यजीका राज्यमें हो रहे आगमनका वृत्त देना उचित नहीं समझा, यह बात उनका हिंदू द्वेष ही दर्शाती है । उनकी अपेक्षा शासकीय – सह्याद्री जैसी दूरदर्शनकी मराठी वाहिनीने इसका वृत्त दिखाकर हिंदुओंको आश्चर्यमें डाल दिया ।

कुछ वर्ष पूर्व वैटिकनके पोपके भारत आनेपर देशके २ प्रतिशत ईसाईयोंको खुश करने हेतु भारतके सारे समाचारपत्रोंने उनका वृत्त दिया था । उस समय वृत्तवाहिनियां नहीं थीं अन्यथा वे पोपके संदर्भमें विशेष कार्यक्रम ही प्रसारित करतीं । उस समय पोपने एशिया खंडको ईसाई बनानेका वक्तव्य दिया था । हिंदुत्ववादियोंने उसका विरोध किया था । भारतकी अनेक वृत्तवाहिनियोंके स्वामीके ईसाई तथा विदेशी होनेकी बात कही जाती है । अत: शंकराचार्यजीके आगमनकी ओर दुर्लक्ष हुआ तो आश्चर्य की कोई बात नहीं । कुछ समाचारपत्रोंने आगमनका वृत्त दिया; किंतु तथाकथित निधर्मीवादी तथा ‘सफेद कालर’ समझे जानेवाले अंग्रेजी वृत्तपत्रोंने इसे महत्त्व नहीं दिया । इन वृत्तपत्रोंके पाठक भी स्वयंको किस हदतक हिंदू समझते हैं, यह भी संशोधनका विषय है । अत: पाठकोंकी अभिरुचिके अनुसार वृत्त देनेका परहेज इन समाचार पत्रोंने किया, ऐसा कह सकते हैं । हिंदू द्वेषियोंद्वारा हिंदुओंके संतोंकी अपकीर्ति करनेका कार्यआरंभ है । उसमें शंकराचार्यजीको प्रसिद्धि देकर हिंदुओंका धर्मप्रेम जागृत हो, ऐसा वैâसे चलेगा; इससे भी इस वृत्तकी ओर दुर्लक्ष किए जानेकी संभावना है । प.पू. आसारामबापू द्वारा ४० वर्ष पूर्वसे किया धर्मप्रसार तथा संस्कृति रक्षाका कार्य एक भी वृत्तवाहिनीने कभी भी नहीं दिखाया; किंतु उनके विरोधमें कथित आरोपोंकी शृंखला आरंभ हुई, तब उन वृत्तोंको प्रचुर प्रसिद्धि दी गई । तथा विचारगोष्ठियों द्वारा समांतर न्यायतंत्र भी चलाया गया । शंकराचार्यजीके पीठोंकी स्थापना ही धर्मरक्षणार्थ हुई है । वे धर्मरक्षाका कार्य कर रहे हैं; किंतु शंकराचार्यजीका अन्य संतों जैसा विशाल भक्त परिवार नहीं है । अत: वृत्तवाहिनियोंको उनकी ओर ध्यान देनेकी आवश्यकता नहीं लगी होगी । किंतु वार्ताकारिताके नियमानुसार यह अनुचित है । यह पत्रकारिता न होकर केवल हिंदू द्वेष है ।

हिंदुओंकी वृत्तवाहिनी आवश्यक !

शंकराचार्यजीने वार्ताकार परिषदमें भी प्रसारमाध्यमोंको खडे बोल सुनाए । शंकराचार्यजीने वार्ताकारोंसे कहा कि राष्ट्र तथा धर्मके संदर्भमें घटना घटी नहीं कि प्रश्न उठता है, शंकराचार्य क्या करेंगे ? कुछ भी घटनेपर कृत्य करना क्या केवल शंकराचार्य अथवा धर्मगुरु का दायित्व है ? आप उस संदर्भमें क्या कर रहे हो ? स्वयंको केवल तटस्थ भूमिकामें न रखें । आप भी हिंदू हो । एक हिंदू होकर आप क्या करनेवाले हो, इसका भी विचार करो । प्रसिद्धिमाध्यमोंने एक माह भी उचित पद्धतिसे विषयोंको प्रसिद्धि दी, तो एक माहमें देशकी स्थितिमें परिवर्तन हो जाएगा । इस आवाहनके अनुसार प्रसारमाध्यम कार्य करें, तो भारतकी जनताकी स्थिति परिवर्ति होगी, इसमें कोई संदेह नहीं । किंतु क्या वे वैसा करेंगे ? प्रसारमाध्यम व्यवसाय हेतु कार्य कर रहे हैं । पत्रकारिता देश तथा जनता हेतु व्रत समझकर कार्य करनेका माध्यम है; किंतु आजकी पत्रकारिता तथा विशेषतः इलेक्ट्रॉनिक प्रसारमाध्यमोंका पत्रकारितासे कुछ भी लेना-देना नहीं है । देश सुधारें, ऐसा ऊपरसे दिखावा करनेका प्रयास इन वाहिनियोंने किया, तो भी उसे सत्यका अर्थात धर्मका अधिष्ठान नहीं है । हमें सब ज्ञान है, प्रसारमाध्यमोंका कृत्य राजनीतिज्ञों जैसा ही होता है । धर्म, ईश्वर, तथा धर्मग्रंथोंपर कार्यक्रम प्रस्तुत कर उसके अनुसार स्वयं तथा जनता कृत्य करे, ऐसा आवाहन वे कभी भी नहीं करते । तथाकथित निधर्मीवादकी चौखटमें रहकर कार्य करनेका बंधन उन्होंने लगा लिया है । उस सीमासे बाहर गए, तो हमपर धर्मांधताका ठप्पा लगेगा, ऐसा डर उनके मनमें है । इन प्रसारमाध्यमोंका पूरा आचरण मेकाले शिक्षा पद्धति तथा नेहरू के तथाकथित आधुनिक भारत जैसा हो रहा है । हिंदुओंद्वारा ऐसे प्रसारमाध्यमोंका बहिष्कार करना ही पर्याप्त नहीं होगा, हिंदुओंकी अपनी वृत्तवाहिनीका होना, सर्वाधिक आवश्यक है । इस हेतु हिंदुओंका प्रयत्नशील होना आवश्यक है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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