मार्गशीर्ष कृष्ण ६, कलियुग वर्ष ५११५
भारत तथा विदेशके गिरिजाघरमें पादरियों द्वारा बच्चों एवं नन्सका होनेवाला लैंगिक शोषण तथा समलिंगी संबंधोंके विषयमें भारत स्थित प्रसारमाध्यम मुंह बंद रखते हैं; किंतु हिंदूके संतोंपर लगे कथित आरोपोंके विषयमें हल्ला मचाते हैं !
थिरुअनन्तपुरम् (केरल ) – कैथलिक गिरिजाघरमें होनेवाला लैंगिक शोषण तथा समलिंगी संभोगसे ऊबकर ६० वर्ष आयुकी सिस्टर मेरी नामकी ननने ४० वर्ष कार्यरत रहनेके उपरांत अपने पदसे त्यागपत्र दिया । अब उसने कैथलिक गिरिजाघरमें चलनेवाले अपप्रकारोंकी संपूर्ण जानकारी देनेवाला आत्मचरित्र मलयालम भाषामें लिखा है, तथा शीघ्र ही वह प्रकाशित होगा । ‘पुण्यात्म्योंको शांति प्राप्त हो’, अर्थके इस पुस्तकके कारण कैथलिक गिरिजाघरके अधिक संकटमें आनेकी संभावना है । इससे पूर्व प्रकाशित दो पुस्तकों द्वारा गिरिजाघर, उसमें कार्यरत फादर, धर्मगुरु तथा नन्स में प्रस्थापित शारीरिक संबंध सामने आए थे । अत: र्ईसाई जगतमें हलचल मच गई थी; किंतु कैथलिक गिरिजाघरके वरिष्ठ पदाधिकारियोंने प्रसारमाध्यमोंकी मददसे ये बातें दबानेमें सफलता प्राप्त की थी । जेस्मी तथा के.पी. शिबू कालापाम्बील नन्स इन दो पुस्तकोंकी लेखिका थीं । जेस्मीने २६ वर्ष तो शिबूने २४ वर्ष कार्य करनेके पश्चात अपने पदोंसे त्यागपत्र दिया था । .
१. सिस्टर मेरीने आत्मचरित्रमें केवल स्वयंके शारीरिक एवं मानसिक शोषणके विषयमें नहीं लिखा , अपितु उनके ध्यानमें आए इस प्रकारके अनेक प्रसंग उद्घृत किए हैं । उसमें लैंगिक तथा शारीरिक शोषणसे ऊबकर अनेक व्यक्तियोंने गिरिजाघरसे संबंध तोड दिए, तो कुछने आत्महत्या भी की, ऐसा पुस्तकमें लिखा है ।
२. केवल १३ वर्षकी आयुमें सिस्टर मेरीने घरसे भागकर ईश्वरकी सेवा करने हेतु चर्चमें नन बनकर रहना पसंद किया; किंतु गिरिजाघरमें घट रही गंदी घटनाओंसे ऊबकर अंतमें त्यागपत्र दिया तथा अब अपना बाल-अनाथगृह आरंभ किया ।
सिस्टर मेरी द्वारा लिखित पुस्तकसे दो अध्यायोंका संक्षिप्त अनुवाद उनके ही शब्दोंमें आगे दे रहे हैं ।
१. गिरिजाघरकी अनेक नन्सको अश्लील पुस्तकें पढते समय मैंने पकडा है ।
२. अनेक पुरुष कुछ काम न होते हुए भी गिरिजाघरका भ्रमण करते हैं, तथा नन्स उनके साथ बडी देरतक बातें करती रहती हैं ।
३. गिरिजाघरकी अनेक नन्सका कौमार्यभंग हुआ था ।
४. गिरिजाघरके निकट ही एक रुग्णालय था । वहांके एक डाक्टरकी एक सुंदर ननसे दोस्ती थी । वे दोनों कई बार बंद कक्षमें लंबा समय व्यतीत करते थे । एक बार मैं एक गंभीर रुग्ण लेकर रुग्णालय गई, तब ये साहब ननके साथ एक कक्षमें थे । उन्हें संदेश भेजनेपर भी वे बहुत देरतक बाहर नहीं आए । कुछ काल पश्चात उस ननने अपने पदसे त्यागपत्र देकर उस आधुनिक वैद्यसे विवाह किया ।
५. गिरिजाघरकी कार्यपद्धतिके अनुसार हर ननका प्रतिदिनका कर्तव्य निश्चित किया जाता था । उनमेंसे कुछ काम शारीरिक मेहनतके होनेसे वे करने हेतु नन्स उत्साही नहीं होती थी । जो नन्स फादरको संतुष्ट रखती थीं, उन्हें आसान कार्य दिए जाते थे ।
६. चेव्हायुर स्थित गिरिजाघरमें घटी घटना । वहां प्रतिदिन एक नन फादर हेतु अल्पाहार बनाकर उन्हें परोसने हेतु उनके कक्षमें, लेकर जाती थी । स्वयं मुझे इस कामसे बडा डर लगता था; अत: मैं उसे टालनेका प्रयास करती थी; किंतु फादरके बडा जोर देनेपर मैंने उसे स्वीकार किया । अल्पाहार लेकर जब मैं उनके कक्षमें गई, तब उन्होंने कक्षका दरवाजा अंदरसे बंद किया तथा मेरा हाथ पकडकर मुझे अपने पास खींचा । पूरे जी-जानसे मैंने निकट रखा लकडीका स्टूल उठाया तथा फादरके सिरमें दे मारा । उनके सिरसे बडी मात्रामें रक्तस्राव आरंभ हुआ । बादमें इस घटनाको बडी प्रसिद्धि प्राप्त हुई; हर एकने मुझे ही दोषी ठहराया । उनके मतानुसार मुझे फादरकी प्रत्येक आज्ञाका पालन करना आवश्यक था । अंतमें इन सबसे ऊबकर मैंने अपने पदसे त्यागपत्र दिया ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात