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‘श्री महालक्ष्मी देवस्थान से संबंधित कितने लोग देवस्थान व्यवस्थापन समिति से प्रामाणिक हैं ?’ – जनपदाधिकारी, राजाराम माने

फाल्गुन कृष्णपक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११६

पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति भ्रष्टाचार से खोखली होते हुए भी जिलाधिकारीद्वारा दुर्लक्षित !

कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति के बेढंगे कामकाज का बार-बार विरोध एवं उसकी आलोचना करना सुलभ है। लोगोंने ईश्वर की भूमि हथियाई। ईश्वर की भूमि में ३०-४० टन गन्ने की खेती करनेवाला किसान वर्ष में १ सहस्र २०० रुपए खंड भरने को सिद्ध नहीं रहता। श्री महालक्ष्मी मंदिर का अतिक्रमण हटाने हेतु जाने पर दुकानदार न्यायालय में जाते हैं। भूमि के पंजीकरण के लिए निवृत्त अधिकारी को नियुक्त किया गया। मंदिर का २०० मीटर परिसर अतिक्रमणमुक्त करने का प्रयास किया गया, तो उस का भी विरोध किया जाता है। ‘श्री महालक्ष्मी देवस्थान से संबंधित कितने लोग देवस्थान व्यवस्थापन समिति से प्रामाणिक हैं ?’ ऐसा उद्विग्न प्रश्न उपस्थित करते हुए जनपदाधिकारी राजाराम माने को समिति के कार्य में सुधार करने हेतु व्यापक लोकाभियान एवं सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ऐसा मत प्रस्तुत किया गया है। यह समाचार दैनिक ‘लोकमत’ में ९ फरवरी को प्रसिद्ध हुआ है। (पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति का कामकाज पारदर्शक करने में अबतक समिति के सभी अध्यक्ष तथा जनपदाधिकारियोंको असफलता मिली है। भ्रष्टाचार होते समय उसे जानबूझकर दुर्लक्षित किया गया। समिति के सभी अध्यक्ष भ्रष्टाचार को बढाने में कारणभूत हैं तथा उनपर भी कठोर कार्यवाही करना आवश्यक है। क्योंकि प्रशासन एवं सदस्योंकी मिलीभगत के बिना देवस्थान समिति में ऐसा भ्रष्टाचार होना निश्चित रूपसे असंभव है। कानून, पुलिस एवं शासकीय बल का उपयोग कर समिति के भ्रष्टाचार को रोकना जनपदाधिकारी के लिए संभव था। जनपदाधिकारी की उदासीनता के कारण भ्रष्टाचार बढ गया है। इसलिए जनपदाधिकारी को प्रथम इस का शोधन करना चाहिए कि देवस्थान समिति से संबंधित अन्य लोगोंकी अपेक्षा कितने प्रशासकीय अधिकारी प्रामाणिक थे ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

जनपदाधिकारी श्री. राजाराम माने

जनपदाधिकारी राजाराम माने कहते हैं…

१. समिति के कार्य में सुधार आवश्यक है; परंतु पिछले ४५ वर्षोंसे चालू कार्यपद्धति में त्वरित परिवर्तन कैसे होंगे ! (दायित्वशून्य जनपदाधिकारी ! ४५ वर्षों से कार्यपद्धति को कठोर रूप से आचरण में लाने में कहां चूक हुई, इस में अपराधी कौन था, माने इस का शोधन क्यों नहीं करते ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

२. इसके लिए धोरणात्मक निर्णय लेना आवश्यक है। पिछले ३ वर्षों में मैंने कार्य में अनुशासन लाने का बहुत प्रयास किया है। (यह अच्छी बात है। इससे पूर्व जिन्होंने बेढंगा कामकाज किया, उन पर कार्यवाही करें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

३. दिन में चार बार ईश्वर को अभिवादन करनेवाले एवं उसी आय पर जीवन निर्वाह करनेवाले कितने लोग देवस्थान व्यवस्थापन समिति को सहयोग करते हैं ? उलटे समिति की आय को डूबोया जाता है। (इस के लिए सर्व रूप से प्रशासकीय अधिकारी ही उत्तरदायी हैं। सब अधिकार रहते हुए आय डूबोनेवाले लोगोंपर जनपदाधिकारी द्वारा त्वरित कार्यवाही क्यों नहीं की गई ? उन्हें किसने रोका था ? ऐसा वक्तव्य दे कर प्रशासकीय अधिकारी स्वयं की रक्षा नहीं कर सकते। – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

४. प्रशिक्षित मनुष्यबल के लिए सरकार द्वारा भर्ती का प्रस्ताव मंगवाया गया है। देवस्थान की नीति की जानकारी का संकलन करने हेतु महसूल विभाग का अधिकारी आवश्यक है।

५. लेखापरीक्षण अथवा हिसाब के लेखापरीक्षण के लिए अर्थक्षेत्र का व्यक्ति चाहिए। अभी जो कुछ कार्य चल रहा है, वह किरानी के स्तर पर चालू है। (पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति का बेढंगा कामकाज उजागर किए जाने पर, यह चाहिए, वह चाहिए ऐसी मांग कर कारण बताने से क्या लाभ ? पूर्व में ही आवश्यक बातोंकी पूर्ति क्यों नहीं की गई ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

६. इसलिए ऐसी धांधली हुई है। समिति के कामकाज का उत्तरदायित्व लेने के उपरांत मैंने लगभग ७० प्रतिशत भूमि के (उतारे की) सातबारा की पूरी जानकारी समिति के पास संकलित की है।

७. समिति के रूप में कार्य करते समय जनता द्वारा सकारात्मक प्रतिसाद की अपेक्षा होती है। (देवस्थान समिति का भ्रष्टाचार रोकने में नकारात्मक स्थिति रहते हुए जनपदाधिकारी जनता से सकारात्मक प्रतिसाद की अपेक्षा कैसे करते हैं ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) समिति की संपत्ति जिसने हथियाई है, उन का समर्थन नहीं करेंगे। कार्यवाही के लिए शासनस्तर पर प्रयास करेंगे। (यह पूर्व में ही करने की अपेक्षा थी। – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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