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कांची शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती एवं अन्य शंकररमन्की हत्याके प्रकरणमें निर्दोष

मार्गशीर्ष कलियुग वर्ष ५११५, कलियुग वर्ष ५११५

कांची कामकोटी पीठके शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती, विजयेंद्र सरस्वती एवं अन्य २१ लोगोंको शंकररमन्की हत्याके प्रकरणमें निर्दोष पाकर मुक्त किया गया

  • हिंदुओ, यद्यपि शंकराचार्यजी हत्याके प्रकरणमें मुक्त हुए हैं, तो भी शंकररमन्के सच्चे हत्यारेको ढूंढनेके लिए पुलिसको विवश करें !

  • हिंदुओंके संतोंकी अपकीर्ति करनेवाले (कु) प्रसिद्धिमाध्यमोंके लिए यह परिणाम एक तमाचा ही है !

९ वर्षोंके उपरांत मिलनेवाला न्याय, न्याय नहीं, अपितु अन्याय ही है ! इतने वर्षोंतक शंकराचार्यजीकी जो अपकीर्ति हुई, उस हानिकी पूर्ति कौन करेगा ? वर्तमान समयमें भी कुछ संतोंके विरोधमें बिना कारण अपराध प्रविष्ट किए जा रहे हैं । कांची कामकोटी पीठके शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वताजीको दीपावलीके दिन रात्रि ढाई बजे बंदी बनाया गया था । पुरीके गोवर्द्धन पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीको भी प्रताडित किया जा रहा है । प.पू. जयंत आठवलेपर भी चैप्टर केस प्रविष्ट किया गया था । साथ ही सनातन संस्थापर प्रतिबंध लगनेकी  तलवार टंगी है । इस प्रकारसे संतों एवं साधकोंको प्रताडित करनेवाले लोग यह ध्यानमें रखें कि उनको पापका फल मिलेगा ! 


चेन्नई – सितंबर २००४ को तामिलनाडुके कांचीपुरम्के वरदराजपेरुमल मंदिरके व्यवस्थापक शंकररमन्की  हत्याके प्रकरणमें कांची कामकोटी पीठके शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, विजयेंद्र सरस्वती एवं अन्य २१ लोगोंको पुद्दुचेरी सत्रन्यायालयद्वारा निर्दोष मुक्त किया गया है । सबल प्रमाण नहीं तथा हत्याका हेतु सिद्ध न होनेके कारण इन सभीको मुक्त किया गया । (शंकराचार्यने कुछ किया ही नहीं, तो सबल प्रमाण कहांसे लाएंगे ? प्रमाण न रहनेपर भी हिंदुओंके सर्वोच्च धर्मगुरुको बंदी बनाकर उन्हें प्रताडित करेके संदर्भमें संंबंधित पुलिस अधिकारियोंको कारागृहमें भेजना चाहिए – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) शंकररमन्की हत्याके प्रकरणमें पूरे नौ वर्षोंतक निर्णय देनेकी प्रक्रिया चल रही थी । न्यायाधीश सी. एस. मुरुगनने यह निर्णय दिया ।

इस प्रकरणका घटनाक्रम आगे दिए अनुसार है ।

१. शंकररमन्ने शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजीके विरुद्ध आर्थिक भ्रष्टचारके आरोप लगाए थे ।

२. पुलिसकी जांचमें पता चला था कि सुपारी देकर शंकररमन्की  हत्या की गई ।

३. तामिलनाडू पुलिसद्वारा आंध्रप्रदेशके मेहबूबनगरसे शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजीको ११ नवंबर २००४ को बंदी बनाया गया था । तत्पश्चात १० जनवरी २००५ को जयेंद्र सरस्वतीजीके शिष्य विजयेंद्र सरस्वतीजीको भी बंदी बनाया गया था । शंकररमन्की हत्याके संदर्भमें पुलिसकर्मियोंको कांची मठके लोगोंपर भी संदेह था । जांचके पश्चात पुलिसने और भी कुछ लोगोंको बंदी बनाया था ।

४. इनमें शंकर मठके व्यवस्थापक एन. सुंदरसन् तथा विजयेंद्र सरस्वतीजीके भाई एम.के.रघुका भी समावेश था ।

५. उसीप्रकार इन अपराधियोंमें पिछले मार्च माहमें एम. कथीरावनकी हत्या कर दी गई थी ।

६. शंकररमन्की हत्याका षडयंत्र रचनेके संदर्भमें २३ लोगोंपर विविध धाराएं लगाई गई थीं । इन अपराधियोंमें केवल ६ लोगोंपर हत्यासे संबंधित एवं अन्य सभी अपराधियोंपर अन्य अपराध प्रविष्ट किए गए थे । अपराधी स्वरूपका षडयंत्र रचना, चूक जानकारी देकर न्यायालयको दिशाभ्रमित करना, अपराधी स्वरूपके कृत्योंके लिए आर्थिक सहायता करना आदि अपराध इस प्रकरणके अपराधियोंपर लगाए गए थे ।

६. २००९ से २०१२ तक चले इस अभियोगकी सुनवाईके लिए १८९ लोगोंके प्रमाणोंकी प्रविष्टि की गई थी, जिसमें ८३ साक्षीदारोंने अपनी  साक्ष फेर दी थी । अंततः न्यायालयने सभी अपराधियोंको निर्दोष सिद्ध किया है ।

अभियोग तामिलनाडूसे पुद्दुचेरीमें हस्तांतरित करनेके कारण ही शंकराचार्यजीको योग्य न्याय !

शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजीने इसप्रकारकी याचिका प्रविष्ट की थी कि सर्वोच्च न्यायालयमें यह अभियोग निरपेक्ष रूपसे चलानेके लिए तामिलनाडूका वातावरण योग्य नहीं है । अतः यह अभियोग दूसरी ओर चलाया जाए । इस आशयकी विशेष याचिकाके कारण २००५ में अभियोग तामिलनाडूके चेंगलपेट न्यायालयसे पुद्दुचेरीमें हस्तांतरित किया गया था । (स्थल परिवर्तन करनेपर न्याय बदलता है, इससे क्या यह समझें कि न्यायतंत्र भी निरपेक्ष रूपसे अभियोग नहीं चला सकते, वहां किसी ना किसीका हस्तक्षेप रहता है ? यदि ऐसा होगा, तो देशमें लोकतंत्र है, ऐसा वैâसा कहेंगे ? हिंदुओंको चाहिए कि वे तामिलनाडूमें शंकराचार्यजीके विरोधमें कौन हैं, उन्हें ढूंढ निकालें ! उसीप्रकार सर्वोच्च न्यायालयको भी इस प्रकरणमें ध्यान देना चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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