प्रा. रामेश्वर मिश्र, हिंदू विद्या केंद्र, वाराणसी
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यह पूर्वसे तथा अभी भी सब जानते हैं कि भारत हिंदुओंका ही देश है । अनादिकालसे हिंदु अजेय हैं । मुगलोंने विश्वासघाती हिंदुओंको साथ लेकर तथा अंगे्रजोंने छल-कपटकर विश्वासघाती राजाओंके सहयोगसे इस देशमें अपनी सत्ता स्थापित की । १९ वीं शताब्दीसे पूर्व ‘यूरोप’ अस्तित्वमें नहीं था । वर्तमानमें यूरोपके विचारकोंको ईसाई धर्म नहीं भाता । ईसाई धर्मका अस्तित्व यूरोपसे नष्ट होनेके मार्गपर है । वर्ष १८५७ के स्वतंत्रतासंग्रामके उपरांत अंग्रेजोंको यह विश्वास था कि उनका पुनः विरोध होगा तथा उन्हें भारत छोडना पडेगा । वर्ष १९१९ में उन्होंने भारतको स्वतंत्र करनेका विचार किया था । तत्पश्चात ब्रिटिश शासनसे सत्ता प्राप्त करनेके लिए कांग्रेसने नाटकस्वरूप आंदोलन प्रारंभ किए । अंग्रेज सरकारने भी विभाजनके समय दंगोंकी स्थिति निर्माण की तथा पुरुषार्थहीन लोगोंके पास सत्ता रहे ऐसी व्यवस्था की । वर्तमानमें एंग्लो-क्रिश्चन प्रणालीने भारतीय शिक्षा क्षेत्रपर अधिकार प्राप्त किया है । इस शिक्षा प्रणालीसे शिक्षा प्राप्त किए हुए लोग हिंदुविरोधी कानून बना रहे हैं । हिंदू राष्ट्रकी निर्मिति केवल राजनीतिसे नहीं होगी । इसके लिए धर्म एवं शिक्षा क्षेत्रमें हिंदुओंको कार्य करना चाहिए ।