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हिंदुओंको शिक्षा क्षेत्रमें कार्य करना आवश्यक ! – प्रा. रामेश्वर मिश्र, हिंदू विद्या केंद्र

आषाढ कृ. ७, कलियुग वर्ष ५११४

Prof. Rameshwar Mishra, Hindu Vidya Kendra, Varansi addressing the Convention

प्रा. रामेश्वर मिश्र, हिंदू विद्या केंद्र, वाराणसी

यह पूर्वसे तथा अभी भी सब जानते हैं कि भारत हिंदुओंका ही देश है । अनादिकालसे हिंदु अजेय हैं । मुगलोंने विश्वासघाती हिंदुओंको साथ लेकर तथा अंगे्रजोंने छल-कपटकर विश्वासघाती राजाओंके सहयोगसे इस देशमें अपनी सत्ता स्थापित की । १९ वीं शताब्दीसे पूर्व ‘यूरोप’ अस्तित्वमें नहीं था । वर्तमानमें यूरोपके विचारकोंको ईसाई धर्म नहीं भाता । ईसाई धर्मका अस्तित्व यूरोपसे नष्ट होनेके मार्गपर है । वर्ष १८५७ के स्वतंत्रतासंग्रामके उपरांत अंग्रेजोंको यह विश्वास था कि उनका पुनः विरोध होगा तथा उन्हें भारत छोडना पडेगा । वर्ष १९१९ में उन्होंने भारतको स्वतंत्र करनेका विचार किया था । तत्पश्चात ब्रिटिश शासनसे सत्ता प्राप्त करनेके लिए कांग्रेसने नाटकस्वरूप आंदोलन प्रारंभ किए । अंग्रेज सरकारने भी विभाजनके समय दंगोंकी स्थिति निर्माण की तथा पुरुषार्थहीन लोगोंके पास सत्ता रहे ऐसी व्यवस्था की । वर्तमानमें एंग्लो-क्रिश्चन प्रणालीने भारतीय शिक्षा क्षेत्रपर अधिकार प्राप्त किया है । इस शिक्षा प्रणालीसे शिक्षा प्राप्त किए हुए लोग हिंदुविरोधी कानून बना रहे हैं । हिंदू राष्ट्रकी निर्मिति केवल राजनीतिसे नहीं होगी । इसके लिए धर्म एवं शिक्षा क्षेत्रमें हिंदुओंको कार्य करना चाहिए ।

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