मार्गशीर्ष कृष्ण ११ , कलियुग वर्ष ५११५
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सह जीवन न तो अपराध है और न ही पाप है। साथ ही अदालत ने संसद से कहा है कि इस तरह के संबंधों में रह रही महिलाओं और उनसे जन्मे बच्चों की रक्षा के लिए कानून बनाए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दुर्भाग्य से सह-जीवन को नियमित करने के लिए वैधानिक प्रावधान नहीं हैं। सहजीवन खत्म होने के बाद ये संबंध न तो विवाह की प्रकृति के होते हैं और न ही कानून में इन्हें मान्यता प्राप्त है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सहजीवन को वैवाहिक संबंधों की प्रकृति के दायरे में लाने के लिए दिशानिर्देश तय किए।
पीठ ने कहा कि संसद को इन मुद्दों पर गौर करना है, अधिनियम में उचित संशोधन के लिए उपयुक्त विधेयक लाया जाए ताकि महिलाओं और इस तरह के संबंध से जन्मे बच्चों की रक्षा की जा सके,
भले ही इस तरह के संबंध विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं हों।
स्त्रोत : नीति सेंट्रल