मार्गशीर्ष कृष्ण १२ , कलियुग वर्ष ५११५
२७ नवंबरको पुणेमें शंकराचार्यजीकी विशाल धर्मसभा संपन्न हुई । सभाके लिए आए मान्यवरोंने विशेषतापूर्ण अभिप्राय दिए, जो आगे दे रहे हैं ।
१. पुणेवासियोंको हिंदू धर्मके विषयमें अत्यधिक सुलभ भाषामें सुननेको मिला । अंधश्रद्धाको माननेवाले स्वयं ही अंधे हैं ! – शारदा ज्ञानपीठके पं. वसंतराव गाडगील
२. धर्मसभा एवं शंकराचार्यजीके विचारोंसे ही प्रबोधन हुआ । भविष्यमें शीघ्र ही पूरे विश्वमें ‘हिंदू राष्ट्र’ स्थापित होनेकी आवश्यकता प्रतीत हुई । शंकराचार्यजी एवं संतोंके संकल्पसे ही ‘हिंदू राष्ट्र’ स्थापित होगा ! – हिंदूभूषण ह.भ.प. श्याम महाराज राठोड
३. यह धर्मसभा युवकोंके सुननेयोग्य थी । सभाके समय भावपूर्ण वातावरण प्रतीत हुआ । – स्वा. सावरकर स्मृति प्रतिष्ठानके श्री. विद्याधर नारगोलकर
४. पुणेमें संपन्न शंकराचार्यजीकी उत्कृष्ट ! – भारताचार्य सु.ग. शेवडे
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात