मार्गशीर्ष कृष्ण १४ / अमावस्या , कलियुग वर्ष ५११५
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१. युवकोंकी अनुचित विचारपद्धति
अ. दुनियाकी सारी बातें अपने भोग हेतु उत्पन्न हुई हैं तथा उनका आस्वाद लेना, अपना कर्तव्य है, युवा पीढीद्वारा आम तौरपर ऐसे भोगवादी विचार प्रस्तुत किए जाते हैं ।
आ. धनवान युवकोंको तेज सवारी चलाना तथा दुर्घटना कराना प्रचुर संपत्तिका प्रदर्शन लगता है ।
२. युवकोंमें अपराधी कृत्य करनेकी मानसिकतामें वृद्धि होनेके कारण
अ. युवा पीढीको भावना, लालसा, हवस ऐसी बातोंसे कुछ भी लेना-देना नहीं होता । यह तो उनका स्थायीभाव हो गया है । किसी भी प्रकार सुख एवं लालसा पूरी करने हेतु चाहे जो मूल्य चुकाना पडे, कोई परवाह नहीं, ऐसी मानसिकतावाली युवा पीढी अपराधोंकी ओर मुड रही है ।
आ. राजनैतिक अपराधी अनुचित कृत्य कर कानूनकी खिल्ली उडाते हैं, युवा पीढी यह देख रही है । अत: हठ, साहस तथा तत्त्वनिष्ठाकी ओर युवावर्ग दुर्लक्ष कर रहे हैं ।
इ. आजकी युवा पीढी समाजमें वर्चस्व स्थापित करने हेतु अवैध पद्धतिसे संपत्ति प्राप्त करनेका दुराग्रह करती है ।
ई. खुली अर्थव्यवस्थाको स्वीकार करनेसे युवा पीढी अपराधोंकी ओर बढ रही है । जबतक वे दंडकी गंभीरता नहीं समझते, तबतक उन्हें पछतावा नहीं होगा ।
३. युवकोंद्वारा हो रहा पाश्चात्योंका अंधानुकरण !
अ. दूरचित्रवाहिनियोंपर दिखाई जानेवाली संसकारहीन मालिकाओंके चित्रणसे सुसंस्कृत युवावर्ग आश्चर्यचकित रह गया है, तथा असंस्कृत युवा पीढी बहकी हुई दिखती है ।
आ. युवा पाश्चात्योंका अंधानुकरण कर संस्कारोंकी होली कर रहे हैं ।
इ. आज नगरमें पब्ज (मद्यालय), डान्स बार, हुक्कापार्लर स्थापित होनेके कारण युवा मौज-मस्ती लूटने हेतु घरोंमें चोरी कर रहे हैं ।
ई. आजके युवा पैसेके बलपर किए गए अनैतिक कृत्य देखते हैं, अत: उनकी सामाजिक नीति गिर रही है । उनका भविष्य अंधकारमय हो रहा है ।
४. अभिभावकोंकी अनुचित भूमिका !
अ. संस्कृतिपर वैश्वीकरणका प्रभाव पडना स्वाभाविक है, किंतु उन्हें मार्गदर्शन करनेवाला कोई भी नहीं । अभिभावक भी वह भूमिका नहीं निभाते ।
आ. पूर्वके दिनोंमें दीए जलनेसे पूर्व घर वापिस आनेकी पद्धति थी; किंतु आज देररात घर आनेवाले इन युवाओंपर अभिभावकोंको गर्व अनुभव होता है । अभिभावकोंका यही दृष्टिकोण युवाओंका भविष्य उद्ध्वस्त कर रहा है ।
५. अभिभावको, भूलीभटकी युवा पीढीको दिशा देने हेतु ये करें !
अ. बच्चोंका भविष्य उज्ज्वल करने हेतु अभिभावक बच्चोंके साथ संवाद प्रस्थापित करें ।
आ. यदि अभिभावक बच्चोंके सिरपर संस्कारोंकी पोटली रखें, तो बच्चे अपराधी कृत्य करनेसे परावृत्त होंगे तथा देशके विकासमें हाथ बटाएंगे ।
– शिवदास शिरोडकर, लालबाग, मुंबई. (दैनिक लोकसत्ता, २५ दिसंबर २०१०)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात