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(कहते हैं) जनपदाधिकारीका आदेश केवल धर्मांधोंके विश्वविद्यालयके लिए ही क्यों ?

मार्गशीर्ष कृष्ण १४ , कलियुग वर्ष ५११५

जनपदाधिकारीद्वारा इस्लामिक विश्वविद्यालयके ५ माले तोडनेके आदेशके कारण धर्मांध संतप्त  !

तिरुपति : जनपदाधिकारीद्वारा तिरुपतिके इस्लामिक विश्वविद्यालयके ५ माले तोडनेके लिए सूचनापत्र दिया गया है । इस आदेशको १० दिनसे अधिक कालावधि व्यतीत होनेपर भी कार्यवाही नहीं हुई है । ऐसी स्थितिमें भी कानूनद्रोही धर्मांधोंने इस आदेशका विरोध करना आरंभ कर दिया है । धर्मांधोंने प्रश्न उपस्थित किया है कि जनपदाधिकारीका आदेश केवल धर्मांधोंके विश्वश्वविद्यालयके लिए है । अन्य निर्माणकार्योंको नियमसे क्यों हटाया गया है ? ( यह ऐसा विचार है कि किसी चोरको रंगे हाथ बंदी बनानेपर उसनेसे ‘प्रथमपूर्वकी हुई सभी चोरियोंकी जांच करनेके पश्चात ही मुझपर कार्यवाही करें ।‘ यह ऐसा कहनेके समान ही है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )  विश्वविद्यालयके व्यवस्थापनोंद्वारा ऐसा युक्तिवाद किया जा रहा है कि अवैध निर्माणकार्यके लिए दंड निश्चित कर उसे नियमित करें, अन्यथा इस विश्वविद्यालयमें पढनेवाली गरीब लडकियोंको शिक्षासे वंचित रहना पडेगा ।  (विश्वविद्यालयका अवैध निर्माणकार्य ही उसकेो विरोध होनेका एकमेव कारण नहीं है । वह हिंदुओंके तीर्थक्षेत्रमें खडा किया जा रहा है, यह भी सूत्र है । अतः यदि सरकारद्वारा दंड सिद्ध कर उसे नियमित किया गया, तो सरकारको हिंदुओंके रुष्टताकारोष एवं आक्रोशका सामना करना पडेगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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