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श्रीमत् जगत्द्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीद्वारा सर्व हिंदू धर्मियोंको प्राप

मार्गशीर्ष कृष्ण १४ / अमावस्या , कलियुग वर्ष ५११५

।। श्रीहरिः ।।

।। श्री गणेशाय नमः ।।

भारतीय राज्यघटनाकी धारा २५ के अनुसार जैन, बौद्ध तथा सिक्ख आदि सभी हिंदू ही हैं । सनातन शास्त्रके अनुसार पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, ॐकार, गोवंश एवं गंगा आदिपर श्रद्धा होनेके कारण येह सर्व सनातनी हिंदू ही सिद्ध होते हैं । सनातनी हिंदुओंका श्रद्धास्थान भगवान श्रीऋषभदेव जैनोंका भी श्रद्धास्थान हैं । बौद्ध मतानुसार भगवान बुद्धका जन्म अन्य किसी कुलमें नहीं, अपितु ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय कुलमें ही होनेकी संभावना है । श्री महावीर तथा श्री बुद्ध दोनोंका भही सनातनी हिंदुओंके वंशमें ही जन्म हुआ था । सिक्खोंके सर्वश्रुत दस गुरु सनातन हिंदुदू धर्मके ही पक्षमें होनेके कारण वे हिंदू धर्मकी रक्षा हेतु निरंतर सिद्ध रहते थे । यह बात भी मानना चाहिए कि, सूर्यवंशमें जन्में श्री लव-कुश सिक्खोंके धर्मगुरुके पूर्वज हैं ।

इस प्रकार जैन, बौद्ध एवं सिक्खोंका सनातनी हिंदुओंके साथ अत्यंत निकटवर्ती संबंध है । जिस प्रकार विशाल वटवृक्षसे विभिन्नपृथक की गई शाखाएं शुष्क हो जाती हैं एवं उनके विबना वह वृक्ष जिस प्रकार चेतनाहीन हो जाता है, उसी प्रकार जैन, आदि सर्व सनातनी हिंदुओंसे विभिन्नपृथक होनेके कारण अस्तित्वहीन होने लगे हैं । साथ ही सनातनी हिंदू भी उनके विना दुर्बल एवं चेतनाहीन होते हुए दिखाई दे रहे हैं । 

इस जनतंत्रके युगमें जनसंख्याका महत्त्व सर्वाधिक है । मेरी इच्छा तथा दिलसे यह विनती है कि, सव प्रथम जैन, बौद्ध एवं सिक्खोंनेको वैश्विक स्तरपर अपने आपको पहले हिंदू घोषित करना चाहिए । तत्पश्चात् ही जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि मानना चाहिए । उसी प्रकार हिंदुओंको अपने आपको सभीके हितचिंतकके रूपमें घोषित कर बादमें ही अपने आपको ब्राह्मणादि मानना चाहिए । मुझे विश्वास है कि, मेरी इस भावनाको स्वीकार करनेके पश्चात् सभीके हितका मार्ग सहज होगा तथा हिंदू धर्मकी सभी शाखाओंके साथ समग्र हिंदू प्रबल बनेंगे ।
श्रीमत् जगत्द्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी, पुणे, महाराष्ट्र. (२८.११.२०१३)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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