मार्गशीर्ष शुक्ल १ , कलियुग वर्ष ५११५
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जम्मू – भाजपप्रणित मोरचाके पंतप्रधानपदके उम्मीदवार नरेंद्र मोदीने १ दिसंबरको हुई सभामें यह आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीरकी जनता प्रतिदिन आतंकवादकी छायामें रहती है । इस परिस्थितिके लिए जवाहरलाल नेहरूजी ही उत्तरदायी हैं । साथ ही मोदीने यह आरोप भी लगाया कि कश्मीर क्षेत्रमें केंद्रकी ओरसे फुटीरवादी शक्तिओंको बल प्राप्त होता है ।
मोदीद्वारा किया गया कुछ वक्तव्य इस प्रकार…
१. जम्मू-कश्मीरमें धारा ३७० के कारण साधारण व्यक्तिका इतने वर्षोंमें क्या भला हुआ ? जिस उद्देश्यसे धारा ३७० लागू किया गया था, क्या वह उद्देश्य साध्य हुआ ? वर्तमानमें तो उसका उपयोग कवचके अनुसार किया जा रहा है । उसे प्रत्यक्ष जातिवादके साथ जोडा गया है । उसमें शासन तो धर्मनिरपेक्षताका बहाना बनाकर निरतंर अपने दायित्वकी ओर अनदेखा कर रहा है । तो क्या वहां वास्तवमें अब इस धाराकी आवश्यकता है ?
२. पिछले ६० वर्षोंका इतिहास देखनेके पश्चात इस बातका प्रत्यय आ रहा है कि जम्मू-कश्मीरके विषयमें नेहरूके नहीं, अपितु डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जीके विचार ही उचित थे ।
३. पाकिस्तानके कारागृहमें जिस प्रकार सरबजीत सिंह तथा चमेल सिंहकी हत्या की गई, वह बात संतापकी परिसीमा है । सरबजीतका बचना संभव था, किंतु शासनने अनदेखा किया । चमेल सिंहकी हत्याके पश्चात भारत शासनद्वारा त्वरित प्रत्युत्तर देनेकी आवश्यकता थी; किंतु शासनने कुछ भी नहीं किया । शासनने सोनेका बहाना किया ।
प्रधानमंत्री तथा अर्थमंत्रीकी पुस्तकी ज्ञानके कारण देशकी अवनति
मोदीने ३० नवम्बरको देहलीमें हुई सभामें इन शब्दोंमें टिपण्णी की कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अर्थमंत्री पी. चिदंबरमने अपनी पुस्तकी ज्ञानके कारण देशकी अवनति की है । प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘मुझे अर्थशास्त्र पढनेकी आवश्यकता नहीं’, तथा चिदंबरम् कहते हैं कि ‘किंतु देशका कार्य किस प्रकार करना', यह बात तो उन्हें नरसिंह राव तथा अटलबिहारी वाजपेयीजीसे सीखनेकी आवश्यकता थी । ये दोनों नेता अर्थशास्त्रज्ञ नहीं थे; किंतु इन दो महान नेताओंको देशके सामने होनेवाले आव्हानका भान था ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात