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शीतकालीन सत्र में आएगा सांप्रदायिक हिंसा विधेयक

मार्गशीर्ष शुक्ल १ , कलियुग वर्ष ५११५


नई दिल्ली – विपक्ष के विरोध के कारण अब तक ठंडे बस्ते में पड़े सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को सरकार एक बार फिर संसद में पेश करने का मन बना चुकी है। उम्मीद है कि गुरुवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पटल पर रखा जाएगा। विधेयक के मसौदे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति की तरफ से सुझाए गए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम बिल, 2011 के प्रावधानों को बड़ी तादाद में शामिल किया गया है। सोमवार को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने विधेयक को राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शीतकालीन सत्र में मसौदा पेश नहीं करने का आग्रह किया है।

गृह मंत्रालय अधिकारियों के मुताबिक, खासतौर से मुस्लिमों की मांग से जुड़ा सांप्रदायिक हिंसा (निरोधक, नियंत्रण व पीड़ितों का पुनर्वास) विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में लाने की तैयारी कर ली गई है। यह विधेयक केंद्र व राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों को सांप्रदायिक हिंसा को निष्पक्षता के साथ रोकने के लिए जिम्मेदार बनाता है। विधेयक में केंद्र द्वारा राष्ट्रीय सांप्रदायिक सौहार्द, न्याय व क्षतिपूर्ति प्राधिकरण का गठन भी प्रस्तावित है। गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय के अधिकारियों ने भी मसौदे के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है। भाजपा प्रस्तावित कानून पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कह चुकी है कि यह खतरनाक और बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ है। यही नहीं विधेयक संविधान के संघीय ढांचे को भी क्षति पहुंचाने वाला है। भाजपा ने सवाल उठाया था, 'विधेयक में यह पहले ही कैसे माना जा सकता है कि हर दंगे के लिए बहुसंख्यक ही जिम्मेदार हैं।'

विधेयक में केंद्र को एकतरफा फैसला करते हुए हिंसा वाले इलाके में अ‌र्द्धसैनिक बलों को तैनात करने का अधिकार देने का कई राज्यों ने विरोध किया था। इसमें हिंसा वाले राज्य के मुकदमे दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का भी प्रस्ताव है। माना जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस, सपा, बिजद, अन्नाद्रमुक और अकाली दल विधेयक का विरोध करेंगे। हालांकि, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान कह चुके हैं कि इस तरह के कानून से मुजफ्फरनगर दंगों की जवाबदेही तय होने के साथ ही पीड़ितों के पुनर्वास में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में जयललिता ने कहा है कि मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल और आम चुनाव घोषित होने में बमुश्किल पांच महीने बचे हैं। ऐसे में सभी दलों के साथ बिना व्यापक विचार-विमर्श के इस तरह का कानून लाने की कोशिश पूरी तरह से गैर-लोकतांत्रिक रवैया है। उन्होंने पीएम से संसद के शीतकालीन सत्र में मसौदा पेश नहीं करने का आग्रह किया है।

स्त्रोत : जागरण

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