फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११६
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विज्ञान अर्थात सर्वस्व ऐसा माननेवालों के संदर्भ में क्या कह सकते हैं ?
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यह ध्यान में रखकर सक्रिय रहें कि आगामी भीषण आपत्काल में टिके रहने के लिए साधना करना अनिवार्य है !
मुंबई : राष्ट्रीय विज्ञानदिवस के निमित्त वरळी के नेहरू विज्ञान केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में नोबेल पारितोषिक विजेता शास्त्रज्ञ डॉ. जॉन मॅथर संगणकीय प्रणाली के माध्यम से छात्रोंको ऐसा वक्तव्य दे रहे थे।
उस समय उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि पृथ्वी पर बढनेवाला तापमान, सूर्य का अधिक मात्रा में तीव्र रूप, इंधन की न्यूनता, आगामी कालावधि में इन प्राकृतिक परिवर्तनोंका सामना करना पडेगा। अतः पृथ्वी पर रहना, यह मानव के लिए अग्निपरीक्षा ही होगी।
डॉ. मॅथर ने आगे यह बताया कि . . .
१. वर्ष २२०० तक प्राकृतिक इंधन का संग्रह समाप्त हो जाएगा। रासायनिक प्रक्रियाओंके कारण समुद्र आम्लप्रधान (एसिडिक) हो जाएगा, समुद्र के पानी का स्तर भी बढेगा।
२. सूर्य की तीव्रता में भी अधिक वृद्धि होने की संभावना है। उससे पृथ्वी का तापमान भी असहनीय होगा।
३. अतः अधिकांश मात्रा में खगोलशास्त्र में संशोधन करने की आवश्यकता है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात