मार्गशीर्ष शुक्ल ५ , कलियुग वर्ष ५११५
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नई देहली – नरेंद्र मोदीने जातीय अथवा धार्मिक कारणसे होनेवाली हिंसाको रोकने हेतु केंद्रशासनद्वारा बनाया धार्मिक लक्ष्यित हिंसा प्रतिबंधक विधेयकका विरोध किया है । उन्होंने पंतप्रधान डॉ. मनमोहन सिंहको इस आशयका पत्र लिखा है कि इस विधेयकमें कुछ प्रबंध अस्पष्ट होनेके कारण मूल प्रारूपमें ही सुधार करना चाहिए । किंतु केंद्रशासनने इस पत्रकी ओर अनदेखा कर विधेयक प्रस्तुत करनेके संदर्भमें दृढ भूमिका अपनाई है । (कांग्रेसकी तानाशाही ! यदि जनतंत्रमें अधिनियम पारित करते समय लोकप्रतिनिधियोंके मतोंका विचार नहीं किया जाएगा, तो उसे जनतंत्र कैसे कह सकते हैं ? एक ओर अण्णा हजारेके जनलोकपालका विरोध करना तथा दूसरी ओर स्वयं पारित किए गए विधेयकके पक्षमें अधिकारोंका अनुचित उपयोग करना, इस प्रकारका आचरण करनेवाला लोकशाहद्रोही कांग्रेस दल ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
१. भाजपा, समाजवादी दल, डावे, तृणमूल कांग्रेस, अण्णाद्रमुक तथा बसपा इन सभीने विधेयकका विरोध करनेकी सिद्धता आरंभ की है ।
२. नरेंद्र मोदीने शासनके संदर्भमें संदेह उपस्थित किया है । इस विधेयकमें अंतर्भूत अनेक विषय राज्यके अधिकारमें हैं; किंतु राज्योंमें विधेयकके संदर्भमें चर्चा ही नहीं की गई । शासन विधेयकद्वारा राज्योंके अधिकारोंपर आपत्ति उठा रहा है; नरेंद्र मोदीने ऐसे सूत्र उपस्थित किए हैं । ऐसा बताया जा रहा है कि संसदमें एकमत होना चाहिए, इसलिए पंतप्रधान प्रयास करनेवाले हैं ।
३. कांग्रेस चुनावका विचार कर अल्पसंख्यकोंकी चापलूसी करने हेतु एकतर्फा विधेयक पारित कर रहा है । इस विधेयकका कानूनमें रूपांतर होनेके पश्चात देशकी घटनात्मक व्यवस्था अडचनमें आएगी । केवल बहुसंख्यक ही हिंसाके कारण होते हैं, ऐसा विचार कर विधेयक पारित किया गया है । भाजपाने बताया है कि यदि विधेयक सभागृहमें आया, तो हम उसका विरोध करेंगे ।
४. अनेक बार साधारण वादोंके कारण हिंसा होती है । इसलिए यदि हिंसाके लिए शासकीय अधिकारीको अपराधी सिद्ध करनेका प्रबंध किया गया, तो अनेक अधिकारी दबावके कारण स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करनेमें असमर्थ होंगे । इसलिए अधिकारी संगठनका यह कहना है कि हिंसाके लिए सरकारी अधिकारियोंको अपराधी सिद्ध करना अनुचित होगा ।
५. इस वर्षका शीतकालीन अधिवेशन केवल बारह दिनोंका है । इसलिए इस कालावधिमें विधेयक सम्मत करनेके लिए शासनद्वारा पूरी शक्ति के साथ प्रयास करनेकी संभावना है ।
विधेयकमें अंतर्भूत कुछ सूत्र
१. अल्पसंख्यकोंकी सुरक्षा, यह शासनका दायित्व
२. हिंसाके लिए संबंधित विभागके शासकीय अधिकारियोंको अपराधी निश्चित करना
३. एक राज्यकी हिंसासे संबंधित सभी अभियोग दूसरे राज्यमें भी चला सकते हैं
४. हिंसा पीडितोंको त्वरित हानिपूर्तिकी व्यवस्था
५. हिंसा पीडित तथा हिंसा प्रकरणसे संबंधित अभियोगके साक्षीदारोंको संरक्षण
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात