मार्गशीर्ष शुक्ल ५ , कलियुग वर्ष ५११५
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राम मंदिर और बाबरी विवाद को २१ साल हो जाने के बाद भी इस प्रश्न का जवाब अब तक नहीं मिला कि क्या अयोध्या विवाद का कोई हल है?
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद की निगाहें संसद और प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी पर टिकी हैं। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को इंतज़ार है सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का। और इन सब से अलग कुछ लोगों का प्रयास है कि यह मसला फैज़ाबाद-अयोध्या के निवासियों द्वारा आपसी समझौते से हल किया जाए।
इलाहबाद हाई कोर्ट ने दशकों पुराने ज़मीन की मिल्कियत को लेकर हुए मुक़दमे में ३० सितम्बर २०१० को अपना फ़ैसला सुनाया था। किन्तु उससे कुछ माह पहले, १८ मार्च २०१० को इलाहबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज पलोक बसु ने अयोध्या में कुछ लोगों से मिलकर इस समस्या का शांतिपूर्ण हल ढूंढने का प्रयास आरम्भ किया। इसके लिए एक पांच-सदस्यीय समिति का गठन किया गया।
इस समिति में फ़ैज़ाबाद और अयोध्या के निवासी आफ़ताब रज़ा रिज़वी, ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव, शोभा मित्र, अधिवक्ता, बाबू खान उर्फ़ सादिक़ अली और मुहम्मद लतीफ़ शामिल हैं। निर्मोही अखाड़ा के वकील रंजीत लाल वर्मा इस समिति के सलाहकार हैं।
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद समझौते हेतु एक प्रस्ताव तैयार किया गया जिसे सफल बनाने का प्रयास करने के लिए पूर्व-न्यायाधीश बसु लगभग हर माह अयोध्या जाते हैं। पू्र्व-न्यायाधीश पलोक बसु बताते हैं,"समिति गठित करने से पहले मैंने रंजीत लाल से पूछा कि कोई समझौता सम्भव है या नहीं।"
क्या कर रही है गठित हुई सामिती
एक बार समिति का गठन हो गया तब इस प्रयास को कानूनी रूप से मज़बूत करने के लिए उपाय खोजा गया। यह तय किया गया कि यदि कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर (सीपीसी) के सेक्शन ८९ के तहत फैज़ाबाद और अयोध्या निवासियों की ओर से विवाद का हल न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है तो उसे नकारा नहीं जा सकता है।
वे कहते हैं कि सेक्शन ८९, जो सीपीसी को संशोधित करके डाला गया था, किसी भी प्रतिनिधित्व पर आधारित मुक़दमे में समझौते द्वारा हल निकाला जा सकता है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का मुकदमा प्रतिनिधित्व पर आधारित है क्योंकि विवादित स्थल की मिल्कियत को लेकर जो पहला मुकदमा सिंह विशारद ने वर्ष १९५० में दायर किया था और सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा दायर याचिका, दोनों ही प्रतिनिधित्व मुक़दमे की श्रेणी में आते हैं।
जस्टिस बसु पूछते हैं,"यदि ५-५ लोगों द्वारा दायर मुक़दमे के जवाब में फैज़ाबाद-अयोध्या के हर जाति और धर्म के १०,००० नागरिक एक चार-सूत्रीय प्रस्ताव से हल निकालने के लिए तैयार हैं तो उनकी बात ज़्यादा अहमियत रखेगी या नहीं?''
समझौते के लिए बनाया गया मसौदा
जिन चार सूत्रों पर बसू अयोध्या-फैज़ाबाद निवासियों से दस्तखत करवा रहे हैं वे निम्न हैं :
- श्री राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्या के विवाद को सुलह के माध्यम से अयोध्या, फैज़ाबाद के हर धर्म, पंथ व जाति के निवासी तय करें। इसमें बाहरी व्यक्ति, संस्था, संगठन का दखल न हो।
- जहाँ भगवान श्री रामलला विराजमान हैं, वहाँ मंदिर बनने में किसी भी व्यक्ति को चाहे जिस धर्म, पंथ या सम्प्रदाय का हो, आपत्ति नहीं है बल्कि स्वीकृति है।
- दक्षिणी हिस्सा जो मुस्लिम पक्ष को मिला है बाउंड्री वाल से घेरकर अलग कर दिया जाए। उक्त भूमि में कोई निर्माण नहीं होगा।
- मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए युसूफ आरा मशीन के पास वांछित भूमि में अपने हिस्से के अनुपात से, जो न्यायालय तय करेगा, प्राप्त होगा।
- पूर्व न्यायाधीश बसु के अनुसार इन बिंदुओं पर सहमति जताते हुए अब तक करीब ५००० लोगों ने दस्तखत कर दिए हैं। जैसे ही १०००० लोगों के दस्तखत हो जाएंगे इस सुलहनामे को अदालत के समक्ष पेश कर दिया जाएगा।
हिन्दू-मुसलमान के पक्ष क्या-क्या हैं
यह पूछने पर कि इन ५००० दस्तखत करने वालों में कितने मुस्लिम हैं, बसु अनभिज्ञता प्रगट करते हैं। दस्तखत करने वाले मुसलामानों की संख्या के बारे में रंजीत लाल भी अनजान हैं । लाल इतना ज़रूर कहते हैं,"मुसलमानों की तुलना में हिन्दू अधिक हैं।"
पूर्व-न्यायाधीश बसु को फिर भी विश्वास है कि यह प्रयास सौ फ़ीसदी सफल होगा क्योंकि मुक़दमे में जितने लोगों के नाम हैं उनसे कहीं अधिक लोग इस समझौते के पक्ष में हैं।
लेकिन राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के सबसे वृद्ध मुद्दई हाशिम अंसारी को इंतज़ार है कोर्ट के निर्णय का। कान से सुनने में असमर्थ हाशिम अंसारी को इस तरह के सौहार्दपूर्ण समझौतों में विश्वास नहीं है।
स्त्रोत : अमर उजाला