चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११६
. . . यदि ऐसा है, तो तेरेसा का कथित मानवता का कार्य निधर्मीपन का था, यह कहने का अधिकार किसी को भी नहीं हैं !
मुंबई : मदर तेरेसा ने स्वयं यह बताया है कि, मैं जीझस की नन हूं। धर्मपरिवर्तन करना ही ईसाई मिशनरियोंका प्राण है। यदि वह निकाल दिया, तो ईसाई मिशनरी मृतप्राय होंगे। यदि ऐसा है, तो तेरेसा का कथित मानवता का कार्य निधर्मीपन का था, यह कहने का अधिकार किसी को भी नहीं हैं अथवा वह कार्य धर्मपरिवर्तन हेतु नहीं था, ऐसा वक्तव्य करने में क्या अर्थ है ? पहले मिजोराम में अल्पसंख्यक ईसाई अब वहां ९० प्रतिशत से अधिक हुए हैं, वे मिजोराम में आनेवालोंके पास विसा की मांग करते हैं। वे अपने आप को एक पृथक राष्ट्र मानते हैं। इस से सेवा के नामपर धर्मपरिवर्तन किया, तो उससे राष्ट्रांतरण भी निश्चित है, ऐसा स्पष्ट मत सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. संदीप शिंदे द्वारा व्यक्त किया गया। वे साम प्रणाल पर २४ फरवरी के दिन आयोजित किए गए ‘आवाज महाराष्ट्र का’ इस चर्चासत्र में वक्तव्य कर रहे थे।
‘सरसंघचालक ने मदर तेरेसा के संदर्भ में क्या यह वक्तव्य जानबुझकर किया है ?’ इस विषय पर यह चर्चासत्र आयोजित किया गया था। इस चर्चासत्र में फादर मायकल जे, अनिस चिश्ती, प्रा. जयदेव डोळे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अभ्यासक श्री. आशुतोष अडोणी तथा कांग्रेस के प्रवक्ता हरिश रोग्ये सम्मिलित हुए थे। संजय आवटे ने इस का सूत्रसंचालन किया था।
जो बिभिषण होंगे, वे हिन्दू राष्ट्र में जीवित रहेंगे ! – श्री. संदीप शिंदे
१. तेरेसा ने बताया था कि, हम यहां कार्य हेतु नहीं आए हैं। हम यहां येशू हेतु आए हैं। हम धार्मिक हैं। हम सामाजिक कार्यकर्ता नहीं, आधुनिक वैद्य नहीं, अध्यापक नहीं ! तो हम ईसाई यों के नन हैं।
२. विश्व में अनेक ईसाई एवं इस्लामी हैं, उसी प्रकार से यदि बहुसंख्यक हिन्दूवाले भारत को यदि हिन्दू राष्ट्र कहा जाएगा, तो उस में अनुचित बात क्या है ?
३. ऐसा हमने कभी भी नहीं कहा है कि, हिन्दू राष्ट्र से मुसलमान तथा ईसाई निकल जाए।
४. राम ने रावण की हत्या की, उस समय उसने पूरी लंका दहन नहीं की। उसने बिभिषण को लंका प्रदान की। जो बिभिषण होंगे, वे ही रामराज्य में (हिन्दू राष्ट्र में) जीवित रहेंगे। हम कौन हैं, यह हरएक को निश्चित करना होगा।
५. हिन्दू राष्ट्र में जातिव्यवस्था को स्थान नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने गुण एवं कर्म नुसार जो बटवारा किया है, वह वर्णव्यवस्था जीवनपद्धत है।
तेरेसा के धर्मपरिवर्तन के संदर्भ में चर्चा करना आवश्यक है, सरसंघचालक के वक्तव्य के संदर्भ में नहीं ! – आशुतोष अडोणी
१. देश में जिस की प्रेरणा से ५४ सहस्त्र सेवा कार्य आरंभ हैं, उन सरसंघचालक के वतव्य की जैसे वे तद्दन राजनीतिक व्यक्तित्व होने के अनुसार जो छानबीन की जा रही है, उस संदर्भ में हम आपत्ति ऊठा रहे हैं अथवा खेद व्यक्त कर रहे हैं।
२. वर्तमान में सरसंघचालक के आधे वक्तव्य के संदर्भ में चर्चा आरंभ है। सरसंघचालक ने सेवा के संदर्भ में निवेदन करते हुए बताया था कि, यदि यह सेवा धर्मपरिवर्तन का उद्देश्य रखकर की गई, तो उसका मूल्य अल्प होता है। सेवा निर्हेतुक होनी चाहिए। इस वक्तव्य से तेरेसा का अनादर नहीं होता।
३. यदि चर्चा ही करनी है, तो वह मदर तेरेसा द्वारा किया गया धर्मपरिवर्तन अथवा सेवा के नाम पर किया गया धर्मपरिवर्तन इस विषय पर करनी चाहिए।
४. कांग्रेस के लोकसभा विरोधी नेता मल्लिकार्जुन खर्गे ने २१ अप्रैल १९९९ में गृहमंत्री पद भार संभालते समय कर्नाटक के अनेक अनैतिक प्रकारोंका संबंध चर्चप्रणित सेवाकार्य के साथ जुडा था। सेवा के नाम पर धर्मपरिवर्तन करने का कार्य हो रहा है, तो स्वाभाविक रूप से एक क्षोभ उत्पन्न हो सकता है।
५. स्वामी विवेकानंद के पश्चात् मोहनदास गांधी ने ईसाई मिशनरियोंको विरोध किया था।
धर्मांध चिश्ति का आतंकवाद सीखानेवाले इस्लाम को सेवाभावी निश्चित करने का प्रयास !
इस्लाम में सेवा केवल सेवाभाव वे करने की सीख !
अनिस चिश्ती ने बताया कि, प्रेषित महंमद पैगंबर ने प्रेषितपद की प्राप्ति पूर्व जनता की सेवा की। अतः उनका पंथ लोगोंने स्वीकृत किया। इस्लाम में यह स्पष्ट दिया है कि, सेवा केवल सेवाभाव से करनी चाहिए। उसके पीछे कोई भी हेतु नहीं होना चाहिए तथा यदि लोंगोंकी आप का धर्म स्वीकार करने की इच्छा है, तो वे स्वीकार कर सकते हैं। (इस्लामेतरों की हत्या करें, ऐसी सीख देनेवाला पंथ सेवाभावी कैसे हो सकता है ? इस्लाम का इतिहास चिश्ती के अनुसार होता, तो आखाती देश में निरंतर युद्धजन्य परिस्थिती कैसे रहती ? ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि, इस्लाम ने अभी तक तरवार की नोक पर ही इस्लामेतरों का धर्मपरिवर्तन किया है। अतः चिश्ती के वक्तव्य पर विश्वास कैसे करेंगे – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात