चैत्र कृष्णपक्ष तृतीया, कलियुग वर्ष ५११६
मुफ्ती सरकार का विवादास्पद फैसला
श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार ने कश्मीर पर दहशतगर्दी के काले साए को बढ़ाने वाले कदम के तहत जेलों में बंद अलगाववादियोंको रिहा करना शुरू कर दिया है। मुफ्ती मुहम्मद सईद ने शनिवार को इसका आगाज कट्टरपंथी अलगाववादी और हुर्रियत के एक धड़े के नेता रहे मसर्रत आलम को रिहा कर किया। आलम के बाद अब जेल में गत दो दशकों से बंद जमायतुल मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर डॉ. कासिम फख्तू की रिहाई की भी अटकलें तेज हो गई हैं। डॉ. कासिम कश्मीर की प्रमुख महिला अलगाववादी नेता आसिया अंद्राबी के पति हैं। भाजपा ने मुख्यमंत्री के इस आदेश पर कड़ा एतराज जताते हुए गठबंधन खतरे में पडऩे की धमकी तक दे दी है।
विदित हो कि दो दिन पहले मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने जम्मू में एक उच्चस्तरीय बैठक में राज्य पुलिस महानिदेशक को जेलों में बंद ऐसे सभी कश्मीरी अलगाववादी नेताओं व आतंकियोंको रिहा करने को कहा था। भाजपा के सहयोग से सरकार गठन के साथ ही मुफ्ती ने पहले ही दिन चुनाव में जीत का श्रेय पाकिस्तान और आतंकियों को दे डाला था। उसके बाद बाद पीडीपी विधायकोंने संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के अवशेष मांगे थे।
डीजीपी के. राजेंद्र ने बताया कि बारामुला जेल में बंद जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कांफ्रेंस के प्रमुख ४४ वर्षीय मसर्रत आलम को रिहा किया जा चुका है। दस लाख रुपये के ईनामी रहे आलम को जेल से शहीदगंज पुलिस स्टेशन ले जाया गया जहां उसे उसके परिजनोंके सुपुर्द किया गया। डीजीपी ने कहा कि पुलिस मुख्यमंत्री मुफ्ती के आदेशोंका पालन करते हुए उसे रिहा कर रही है। हालांकि, आईजी अब्दुल गनी मीर ने आलम की रिहाई में किसी राजनीतिक दबाव से इन्कार कर कहा कि उसे अदालत के आदेश पर छोड़ा है।
चलाई थी गो-इंडिया-गो की मुहिम
जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कांफ्रेंस के प्रमुख मसर्रत आलम ने ही वर्ष २००८ में श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान कश्मीर में ‘रगड़ा-रगड़ा भारत रगड़ा’ और २०१० के हिंसक प्रदर्शनोंका संचालन करते हुए ‘गो-इंडिया-गो’की मुहिम चलाई थी। २०१० में कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनोंका मुख्य सूत्रधार मसर्रत आलम कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादियोंकी अग्रणी जमात का प्रमुख नेता है। आलम को पुलिस ने बड़ी मुश्किल से १८ अक्टूबर २०१० को श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र हारवन से पकड़ा था। उस समय उसके पास से ४० लाख रुपये नकद मिले थे। अपनी गिरफ्तारी के समय से ही जेल में था और इस दौरान उस पर छह बार जन सुरक्षा अधिनियम पीएसए लगाया गया। हर बार अदालत ने पीएसए हटाने के निर्देश दिए।
गठबंधन को होगा खतरा : भाजपा
मुफ्ती सरकार के इस कदम से नाराज भाजपा के युवा मोर्चा के प्रमुख और नौशेरा से विधायक रविंदर रैना ने कहा है कि अलगाववादियोंको छोडऩे का फैसला कर मुफ्ती अपने सहयोगी दल भाजपा के साथ अच्छा नहीं कर रहे। यह गठबंधन को खतरे में डाल सकता है। हम ये फैसला कभी स्वीकार नहीं कर सकते। आतंकियोंको रिहा कर उनका पुनर्वास कराना न्यूनतम साझा कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था। उन्होंने कहा कि सुरक्षाबलोंका भी मानना है कि इस फैसले से जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है।
मुफ्ती की नागरिकता पर सवाल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र आर्गेनाइजर ने एक लेख में भारतीय जनता पार्टी को कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद से पूछे कि वह भारतीय नागरिक हैं या नहीं। सीबीआइ के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने अपने लेख में कहा कि मुफ्ती राज्य के चुनाव के लिए पाकिस्तान और आतंकियोंको धन्यवाद देकर दोहरे मापदंड नहीं अपना सकते।
मलिक की रैली के बाद हिंसा
अलगाववादी संगठन जेकेएलएफ के अध्यक्ष मुहम्मद यासीन मलिक ने मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद के निर्वाचन क्षेत्र अनंतनाग में रैली की। मलिक की रैली के बाद अनंतनाग में हिंसा हुई। हिंसक भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को बल प्रयोग भी करना पड़ा। मलिक समर्थकोंके पथराव में अनंतनाग के पुलिस थाना प्रभारी भी घायल हो गए। मुफ्ती १९९० में जब केंद्रीय गृहमंत्री थे तो जेकेएलएफ ने ही उनकी छोटी बेटी डॉ. रुबिया सईद का अपहरण किया था। उसकी रिहाई के लिए जेकेएलएफ के पांच नामी आतंकी कमांडरोंको रिहा करना पड़ा था।
स्त्रोत : जागरण