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मिशनरी : धर्मगुरु नहीं शिकारी !

मार्गशीर्ष शुक्ल १२ , कलियुग वर्ष ५११५

१. मिशनरी हिंदुओंको मूर्ख बनाकर अपने जालमें फंसाते हैं

डॉ. कुक नामके आस्ट्रेलियन मिशनरी डॉक्टर सरदार वल्लभभाई पटेलके गांव ‘आणंद’ में ईसाई धर्म प्रचार हेतु प्रचुर काम करते थे । वे कैसे काम करते हैं, यह देखने हेतु मैं उनके यहां गया था ।  `युवा, निःस्वार्थी भावसे काम करनेवाला, सारा दिन काम करनेके लिए सिद्ध रहनेवाला, सीधा, सरल तथा प्रामाणिक होनेके कारण मुझसे कोई और क्या चाहता ? मुझे ‘ईसाई’ बनना है, तथा `मिशनरी' बनकर कार्य करना है, मेने उन्हें ऐसी अयोग्य  धारणा बनने दी तथा वह धारणा मैंने जानबूझकर केवल बनायी ही नहीं रखी, अपितु उसे बढावा भी दिया । हेतु यह कि मैं उनके काम करनेकी पद्धति (modus operendi) समझ लूं । हुआ भी वैसा ही । `अनाडी हिंदुओंको मूढ कैसे बनाया जाए ?', इसका ज्ञान मुझे अपनेआप प्राप्त हुआ ।

मिशनरी शिकारी हैं, धर्मगुरु नहीं । वे लक्ष्यको जालमें बराबर फांसते हैं तथा उसका शिकार करते हैं अथवा उचित लक्ष्य ढूंढकर उसे मुखिया(नेता) बनाकर अन्य लक्ष्योंको अपनी इच्छानुसार अच्छी तरहसे ‘पालतु’ बनाते हैं ।

२. हिंदुओंका धर्मांतर करनेका मिशनरियोंका कारखाना

मिशनरियोंकी ‘इंडस्ट्री ’(Industry) (कारखाना) होती है । वहां ‘कच्चे माल’ से ‘पक्का माल’ वैâसे सिद्ध करें ? हिंदुओंके ‘बलस्थान’ strong points (गुण) कौनसे ?‘मर्मस्थानर्’ Weak points (दोष) कौनसे ? उन्हें क्या बतानेपर वे स्वीकार करते हैं ? क्या बतानेपर नहीं स्वीकारते ? उनकी मानसिकता कैसी है ? उसका लाभ कैसा उठाएं ऐसी कई बातें आणंदमें मेरी समझमें आर्इं और मैं दुखी हो गया ।

३. ईसाई न होनेवालोंको ईसाई बनाना, विश्वके सारे पादरियोंका समान ध्येय है ।

६-७ वर्षपूर्व जब मैं अमेरिकामें था, तब मेरे पास बहुत समय था; अत: मैं एक चर्चमें घुसा । देखा तो वह पादरी केरलका ईसाई निकला ! मेरी उससे दोस्ती हो गई । उसका भी उद्देश्य मुझे ईसाई बनाना था । प्रतिदिन हम दोनों प्रे. रिगनके खातेपर अच्छा अल्पाहार (नाश्ता) लेते थे तथा बिना ईसाईयोंके विश्वके भविष्यकी चिंता करते थे । आणंदके अनुभवसे मैं यह जान गया था कि इन परिवारोंके लोग ज्ञानको बहुत मानते हैं तथा संबधियोंकी अपेक्षा ज्ञानवाले (अथवा जानकारीवाला) व्यक्तिको वे अधिक पसंद करते हैं ।

४. न्यू जर्सीके पादरियोंद्वारा अनेक पोपके विषयमें जानकारी पूछकर परीक्षा लेना

वहां मेरी परीक्षा भी ली गई तथा जानकारीके बलपर मैंने प्रथम क्रमांक प्राप्त किया ।

पादरी : प्रथम पोप कौन ? वह कैसे मर गया ?

मैं : सेंट पीटर वैâथलिकोंका प्रथम पोप था । रोममें ६४ में सिर नीचे तथा पांव ऊपर ऐसी स्थितिमें उसे क्रासपर चढाकर कील ठोंक दिए गए । उसमें वह मर गया ।

पादरी : प्रथम पोपके वारिस कौन ?

मैं : उसके निकटके चौदह वारिस उसके जैसे स्वर्गवासी हो गए ।

पादरी : पोपकी अनैसर्गिक मृत्युके विषयमें क्या जानकारी है ?

मैं : सोलह पोप विषप्रयोगसे मरे । अन्य पोप तलवारसे अथवा तत्सम अनैसर्गिक मृत्युसे मर गए । उनकी संख्या तीस है ।

पादरी : रोमके बाहर कौनसा पोप मरा ? क्यों तथा कैसे ?

मैं : छठा पोप पायस (पवित्र) १७७९ में फ्रान्स स्थित वेलेन्स गांवमें नेपोलियनका बंदी था । वह कारागृहमें मरा ।

पादरी : अत्यंत क्रूरतासे मरनेवाला अंतिम पोप कौन ?

मैं : वर्ष ११४५ में दूसरा पोप ल्युसिअस अपने विरोधियों द्वारा रोममें मारा गया । उसपर पथराव हुआ था ।

पादरी : एक पोपको थडगेसे (कब्र) बाहर निकालकर पुन: मारा गया । उस विषयमें क्या जानकारी है ?

मैं : उस पोपको, अर्थात फार्मासको मृत्युके पश्चात गाड दिया गया था । उसी वर्ष उसका शव बाहर निकालकर उसके शत्रुओंने उसकी पूछताछ की तथा वह अपराधी है, ऐसा सिद्ध किया । उसकी देहसे वस्त्र हटाकर उसकी देहको नदीमें फेंक दिया गया ।

पादरी : वर्ष १९८० में दूसरे जॉन पॉल पोपने पोलैंड स्थित अपने गांवका भ्रमण किया । उस समय उनके भ्रमणके विषयमें पोलीश वृत्तपत्रोंकी क्या प्रतिक्रिया थी ?

मैं : १९८० में दूसरे जॉन पॉल पोपने पोलैंड स्थित अपने गांवका भ्रमण किया था । इस विषयमें पोलीश वृत्तपत्रोंने बडी सांकेतिक प्रतिक्रिया दी थी, `जब जब पोप किसी देशका भ्रमण करते हैं, तथा रोम वापिस जाते हैं, तब उनके भ्रमणके कारण आध्यात्मिक Geo-politics (उस स्थानकी राजनीति) परिवर्तन होते हैं । उनके भ्रमणके पश्चात कम्युनिज्म तथा ईसाई धर्म, पूरब तथा पश्चिम, चर्च एवं स्टेट, पूंजीपति तथा समाजवाद, काले एवं गोरे इनके संबंधोंमें आमूलाग्र क्रांति होती है । (might never be the same again.)'

पादरी : दूसरे जॉन पॉल पोप खिलाडी हैं । उनके खिलाडीपनसे संबंधित कुछ जानकारी दो ।

मैं : दूसरे जॉन पॉल बीचबीचमें वेटीकनके कोर्टपर युवकोंके साथ टेनिस खेलते हैं । वर्ष १९८५ में एक बार वे टेनिस खेल रहे थे कि अचानक वर्षा आरंभ हुई । अन्य युवकोंने उन्हें वर्षासे बचानेका प्रयास किया । उनपर वे क्रोधित हुए, हम खिलाडी वर्षासे डरते नहीं ।
न्यू जर्सी चर्चके पादरी समेत हुए ये प्रश्नोत्तर उदाहरणके तौरपर प्रस्तुत किए; उससे पाठकोंको बहुत नई जानकारी प्राप्त होगी ।

५. उस पादरीके साथ हुई चर्चासे तीन महत्त्वपूर्ण बातें

५ अ. ईसाईयोंद्वारा विश्व जीतनेका सपना

इस्लाम जैसे ईसाई धर्मको भी सारा विश्व जीतना है । उस हेतु जेहाद (धर्मयुद्ध) आरंभ है ।

५ आ. युद्धमें सब क्षम्य होनेसे मिशनरियोंका आचरण अलग होना

युद्धकालके नियम अलग होते हैं । अत: ईसाई धर्मगुरुओं अथवा मिशनरियोंका आचरण थोडा अलग लगा तो कोई आश्चर्य नहीं ।

५ इ. धर्मयुद्धमें मृत्युसे न डरना

पूर्वके पोप जैसे धर्मयुद्धमें मृत्युका सामना करनेसे न डरें । वीरगति प्राप्त होनेपर अमरत्व प्राप्त होता है ।

६. हर युद्ध हेतु मिशनरियोंद्वारा बनायी गई योजना तथा दांवपेच

हर युद्ध हेतु योजना (स्ट्रेटेजी) तथा दांवपेच (टैक्टिक्स) सोचने पडते हैं । योजना (स्ट्रेटेजी) दीर्घकालीन (long term) ध्येय हेतु तथा दांवपेच (टॅक्टिक्स) अल्पकालीन लाभ हेतु आवश्यक होते हैं । उसके पंचसूत्र नीचे दिए हैं …

६ अ. योजना (स्ट्रेटेजी) तथा दांवपेच (टक्टिक्स) के पंचसूत्र, इन पंचसूत्रोंके ABCDE ऐसे नाम हैं ।

६ अ १.  – ऐग्रेसिवनेस : ए अर्थात ऐग्रेसिवनेस (आक्रामकता ). हर बातमें उनकी आक्रामकता दिखायी देती है । विशेषतः संथ गतिके, नींदके मारे, भूखसे परेशान, तथा अधिक बोलनेवाले हिंदुओंके विरुद्ध अधिक होता है ।
६ अ २.  – बाय : बी अर्थात बाय (खरीदो ) क्या खरीदोगे ? मनसे दृढ व्यक्ति (मार्इंडमेन) तथा सुदृढ देहवाले व्यक्ति (मसलमेन) इसमें मीडिया एवं माफिया (सुपारी संपादक) अंतर्भूत होते हैं ।
६ अ ३. – कन्फ्यूज : सी अर्थात कन्फ्यूज (संभ्रमित करो)। (मूर्ख) हिंदुओंको संभ्रमित करो । हर समय नई योजना(स्ट्रेटेजी)तथा दांवपेच (टैक्टिक्स)बनाकर उनका मन संभ्रमित करें । हर बातमें स्थल, काल तथा परिस्थिति से संबंधित नई चाल, नई युक्ति सोचे ।
६ अ ४. – डेथ : ‘डी’ अर्थात प्रशासनकी ‘डेथ’ अथवा मृत्यु । प्रशासनको अंदरसे ऐसा खोखला बनाओ कि राज्य अपना है अथवा अपने शत्रुका ऐसे संभ्रम उत्पन्न हों ।
६ अ ५.- एक्सप्लॉईट : ‘ई’ अर्थात ‘एक्सप्लॉईट’ (अनुचित लाभ उठाना) हर बातका बतंगड बनाओ तथा उससे लाभ उठाओ ।

७. हिंदुओंके ‘विश्व आर्यमय' करनेके उद्देश्यका हंसी उडाकर `कलियुगका धर्म अर्थात धन हमारे पक्षमें होनेके कारण जीत हमारी ही होगी’, ऐसा कहनेवाले मिशनरी

थोडे दिन पूर्व मैं कश्मीरमें श्रीनगर गया था । बातूनी मानवको सामनेसे बातूनी मानव ही मिलते हैं । मेरे होटलमें ही मुझे एक मिशनरी जोडा मिला । मेरी प्रचुर जानकारी देखकर वह मुझे भी मिशनरी ही समझ बैठा । मैंने स्पष्ट किया कि मिशनरी स्वीकार; किंतु हिंदू मिशनरी । उसकी पत्नीने पूछा, `आप ब्राह्मण हो?' मेरे हां कहनेपर अगला प्रश्न किया, ‘क्या चित्पावन ब्राह्मण हो ?' मेरे पुन: हां कहते ही उसने कहा, तभी…हमारे ‘वेव लेंग्थ’, विचार मेल खाते हैं । बातोंबातोंमें तीन दिन कैसे व्यतीत हो गए, हम समझ ही नहीं पाए । उसके पतिसे विदा लेते हुए उसने ‘पार्टींग शॉट’ सुनाया वह पाठकोंको भी अच्छा लगेगा

वे : कहते हैं, आप लोग `विश्व आर्यमय' करोगे । क्या ठेंगा आर्यमय करोगे ? अरे, आप जहां हमारे शस्त्र ही नहीं जानते, वहां आप क्या लडोगे?

मैं : वह हमारा सपना है ।

वह : कृत्यके बिना उक्ति ! यह तुम्हारा सपना ही रहेगा । यह धर्मयुद्ध है, उसमें हमारी जीत निश्चित है; क्योंकि हमारे पक्षमें धर्म है । कलियुगका धर्म अर्थात पैसा !

– दादूमिया (संदर्भ : प्रज्ञालोक, मार्च १९९९)

(ईसाई मिशनरियोंकी १९९९ की यह सिद्धता देखते हुए अबतक कितनी मात्रामें उन्होंने उनकी योजना तथा दांवपेच बढाए होंगे तथा धर्मांतर हेतु कितना प्रचुर धन लगाया होगा, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते । भारतकी गलियोंमें मिशनरियोंद्वारा चलाए जा रहे धर्मांतरके प्रयास देखते इस हेतु विदेशसे कितना बडा यंत्र कार्यान्वित किया गया तथा उसका जाल कितनी दूरतक फैला है, यह ध्यानमें आता है । इटलीकी औरतके हाथमें देशकी सर्वोच्च सत्ता देनेसे भारतमें धर्मांतरको बढावा प्राप्त होनेसे आज हम उसके दुष्परिणाम भुगत रहे हैं । धनके बलपर ईसाई, तथा हिंसाके बलपर मुसलमान बडी मात्रामें हिंदुओंका धर्मांतर करते हैं किंतु हिंदू अभीतक उस विषयमें निद्रिस्त तथा निष्क्रिय हैं । समाजको निद्रिस्त रखने हेतु महत्त्वपूर्ण हिस्सा निभानेवाले प्रसारमाध्यमोंका भी बहुत बडा योगदान है । हिंदुओ, आप चारों ओरसे घिर गए हो, यह ध्यान रखें तथा जागृत होकर इससे बाहर आने हेतु स्वधर्म, स्वसंस्कृति एवं परंपरा जानकर धर्माचरण करें ! हिंदू धर्म प्रसारकोंको यह आह्वान स्वीकार कर हिंदुओंका धर्मांतर रोकने हेतु जी जानसे प्रयास करने चाहिए । उस हेतु केवल श्रमशक्ति, आर्थिक बल, स्वधर्म विषयमें ज्ञान तथा धर्मांतर करनेवालोंके दांवपेच ज्ञात होना, इतना ही नहीं, किंतु हिंदू संगठन तथा इश्वरीय अधिष्ठान अत्यंत आवश्यक हैं । हिंदुओ, इसी हेतु, साधना बढाओ तथा ईश्वरकी सहायता लेकर शत्रुका सामना करो । अंतिम जीत अपनी ही है; क्योंकि धन न भी हो, तो सारा विश्व निर्माण करनेवाला वह जगदीश्वर कृष्ण अपने पक्षमें होनेके कारण जीत अपनी ही है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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