मार्गशीर्ष शुक्ल ११, कलियुग वर्ष ५११५
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बंगलादेश के सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में मासूम लोगों के कत्लेआम को अंजाम देने वाले जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल कादिर मुल्ला की सजाए मौत की आज पुष्टि कर दी। मुल्ला को मंगलवार को रात के 12 बज कर 1 मिनट पर फांसी पर लटकाया जाना था। लेकिन उससे 2 घंटे पहले सजा-ए-मौत की तामील टाल दी गई। सजा-ए-मौत की तामील स्थगन करने का आदेश ऐसे वक्त आया जब जेल अधिकारी मुल्ला को फांसी पर लटकाने के लिए तैयार थे।
प्रधान न्यायाधीश मुजम्मिल हुसैन ने समीक्षा याचिका पर दो दिन की सुनवाई के बाद खचाखच भरे अदालत कक्ष में कहा, ‘खारिज।’ मुल्ला की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय आया जब दो दिन पहल ही आखिरी क्षण में मुल्ला को राहत देते हुए नाटकीय तौर पर उनकी सजा-ए-मौत की तामील पर रोक लगा दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उच्च सुरक्षा वाले ढाका केन्द्रीय कारावास में बंद 65 वर्षीय मुल्ला को सजा देने के मार्ग का आखिरी अवरोध खत्म हो गया। उल्लेखनीय है कि युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने 5 फरवरी को मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उसके बाद, 17 सितंबर को अपीली विभाग ने फैसले को संशोधित कर दिया और उसे बढ़ा कर सजाए मौत में बदल डाली।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर न्यायाधिकरण ने मुल्ला के लिए एक मृत्यु वारंट जारी किया। मुल्ला ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान जो जुल्म ढाए थे और पाकिस्तानी सैनिकों की हिमायत की थी, उसके लिए उसे ‘मीरपुर का कसाई’ कहा गया।
मुल्ला के वकीलों ने मुल्ला को सजाए मौत सुनाने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले की समीक्षा के लिए एक याचिका दायर की थी। स्थगनादेश उसी याचिका पर दिया गया था।
स्त्रोत : निती सेंट्रल