मार्गशीर्ष शुक्ल १२ , कलियुग वर्ष ५११५
शीलरक्षा, संस्कृति रक्षा, उन्नत वंशपरंपराकी दृष्टिसे तथा उन्मादपूर्ण अश्लीलताके उन्मूलनकी दृष्टिसे समलिंगी विवाहकी मान्यता निरस्त करनेवाला माननीय सर्वोच्च न्यायालयद्वारा दिया गया निर्णय सर्वथा अभिनंदनीय है । – पुरी गोवर्धनमठ पीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदसरस्वती
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात