चैत्र कृष्णपक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५११६
हिंदूआेंकी समस्यायोंका विचार शिवसेना को ही है, इसिलिए हिन्दुआेंको शिवसेना का अधिक सहारा लगता है ।
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शिवसेना ने सोमवार को कोर्ट से कहा कि ये सार्वजनिक हितोंको ध्यान में रखते हुए आस्था और धर्म के मामलोंमें दखल ना दें। पार्टी की ओर से यह बयान मुंबई उच्च न्यायालय के हाल के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें संकरे या अत्यधिक यातायात वाले इलाकों में मंडप और शामियाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में लिखा है, ‘न्यायालय के इस आदेश से गणेशोत्सव, दही-हांडी, गुडी पर्व, शिव जयंती और अन्य राष्ट्रीय और धार्मिक उत्सवों पर असर पड़ेगा।’
पार्टी ने इस पर भी आपत्ति जताई कि हाल के वर्षों में पर्यावरण और प्रदूषण के नाम पर कई हिन्दू और राष्ट्रीय त्योहारोंके मनाने के तौर-तरीके पर रोक लगाई गई।
पार्टी ने संपादकीय में लिखा है, ‘कोई भी ‘अंदू-पंदू’ गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ऐसे मामलोंको लेकर अदालत में उपस्थित हो जाते हैं और इस तरह मामले को पेश करते हैं, जैसे वे बहुमत का प्रतिनिधित्व कर रहे हों और इस पर अदालतें आदेश भी दे देती हैं। यहां तक कि पुलिस भी ऐसे मामलों में कई बार आक्रमक तरीके से पेश आती है। कुछ गिने-चुने लोगों या एनजीओ के विचारोंको बहुमत का प्रतिनिधित्व नहीं माना जा सकता।’
मुंबई में अत्यधिक भीड़भाड़ का जिक्र करते हुए शिवसेना ने लिखा है कि यहां त्योहार नहीं होने पर भी वर्ष भर सड़कोंपर जाम रहता है और सड़कें कई जगह संकरी हैं।
पार्टी ने देश के अन्य हिस्से से मुंबई आने वालोंकी भीड़ पर एक बार फिर नाखुशी जाहिर करते हुए लिखा है, ‘क्या अदालतें मुंबई आने वाली भीड़ पर नियंत्रण के लिए ‘परमिट सिस्टम’ का आदेश देंगी? देश के अन्य हिस्सों से लोग यहां आते हैं। इस संबंध में ‘जाओ या आओ- यह तुम्हारा अपना घर है’ जैसी बात स्वीकार्य है।’
पार्टी के मुताबिक, कुछ गिने चुने लोग समाज या राष्ट्र के विचार का प्रतिनिधित्व नहीं करते। राष्ट्रीय और धार्मिक त्योहारोंको मनाने पर किसी भी तरह के प्रतिबंध से बहुसंख्यक लोगोंका उत्साह कमजोर पड़ता है।
शिवसेना ने माना कि अदालतोंका काम सभी को न्याय प्रदान करना है, लेकिन पार्टी का यह भी कहना है कि उन्हें धार्मिक या आस्था के मामलोंसे दूर रहना चाहिए, खासकर जब इसकी आवश्यकता नहीं हो।
स्त्रोत : आज तक