मार्गशीर्ष शुक्ल १४, कलियुग वर्ष ५११५
एक राज्यके नगरमें तथाकथित हिंदूनिष्ठ दलके विद्यार्थी संगठनद्वारा उनके राष्ट्रीय परिषदमें आयोजित की गई हिंदू जनजागृति समितिकी राष्ट्र एवं धर्मविषयक फ्लेक्स प्रदर्शनी हटानेके लिए समितिको विवश किया गया !
अल्पसंख्यकोंकी चापलूसीके कारण हिंदुओंको उपयुक्त प्रदर्शनी हटानेवाले तथाकथित हिंदूनिष्ठ दलोंके संगठन क्या हिंदुत्वका कार्य करेंगे ?
एक राज्यके नगरमें तथाकथित हिंदूनिष्ठ राजनीतिक दलके विद्यार्थी संगठनने राष्ट्रीय परिषदका आयोजन किया था । उस कार्यक्रममें इन संगठनोंके स्थानीय संगठक मंत्रीने समितिके कार्यकर्ताओंको राष्ट्र एवं धर्मविषयक प्रदर्शनी तथा ग्रंथप्रदर्शनी आयोजित करने हेतु आमंत्रित किया था । तदनुसार समितिके कार्यकर्ताओंने प्रदर्शनीका आयोजन किया; किंतु अन्य सदस्योंद्वारा विरोध होनेके कारण हाल ही में वह प्रदर्शनी हटानेकी घटना हुई ।
१. जब समितिके कार्यकर्ताओंको आमंत्रित करनेके पश्चात कार्यकर्ता कार्यक्रमस्थलपर गए, उस समय संगठनके कार्यकर्ताओंने प्रदर्शनी हेतु क्षेत्र उपलब्ध कर नहीं दिया । इस विषयमें समितिके कार्यकर्ताओंने संगठनमंत्रीको सूचना दी । उन्होंने आश्वासन दिया कि दूसरे दिन क्षेत्रका प्रबंध करता हूं । उसके अनुसार उन्होंने दूसरे दिन क्षेत्र उपलब्ध कर दिया ।
२. वहां समितिद्वारा पैक्ट प्रदर्शनी, हिंदु राष्ट्रविषयक फलक, धर्मशिक्षा फलक तथा क्रांतिकारियोंके फलक लगाए गए । संगठनके कार्यकर्ताओंने बडी मात्रामें इस प्रदर्शनीका लाभ उठाया । अनेक कार्यकर्ताओंने इस प्रदर्शनीकी प्रशंसा भी की । साथ ही उन्होंने अपने भ्रमणभाष संचपर छायाचित्र भी निकाले ।
३. संगठनके एक सदस्यने समितिके कार्यकर्ताओंके पास आकर पूछा कि लगभग ४५ मिनटकी दूरीपर प्रदर्शनीका आयोजन करनेकी अनुमति तुम्हें किससे प्राप्त हुई ?
४. जब समितिके कार्यकर्ताओंने संगठनमंत्रीका नाम बताया, तो उस सदस्यने बताया, प्रदर्शनीका आयोजन करने हेतु आपको संचालन समितिकी अनुमति प्राप्त करनी चाहिए थी, यह आवश्यक था । अतः आप अब यह प्रदर्शनी यहांसे हटाएं ।
५. समितिके कार्यकर्ताओंद्वारा इसका कारण पूछनेपर उसने बताया कि ‘केवल हिंदू कहकर नहीं चलेगा । क्योंकि इस परिषदमें सर्व धर्मके विद्यार्थी तथा युवक सम्मिलित होते हैं । आप तुरंत ही यह प्रदर्शनी हटाएं ।' कुछ समय पश्चात अनुमति देनेवाले संगठनमंत्री भी वहां आए एवं उन्होंने क्षमा मांगकर प्रदर्शनी हटानेकी विनती की । अतः समितिके कार्यकर्ताओंने प्रदर्शनी हटाई ।
६. इससे यह बात ध्यानमें आई कि समितिके कार्यकर्ताओंको परिषदमें उपस्थित रहनेवाले अन्य धर्मीय विद्यार्थियोंकी संख्याके विषयमें जानकारी नहीं थी तथा उसे प्राप्त करनेका प्रयास भी नहीं किया गया था । एक विद्यार्थीने बताया कि यहां एक भी मुसलमान नहीं है; किंतु २-३ ईसाई विद्यार्थी हैं । (इससे यह बात ध्यानमें आती है कि २-३ ईसाईयोंके लिए राष्ट्र एवं धर्मविषयक हिंदुओंका प्रबोधन करनेवाली प्रदर्शनी हटानेवाले हिंदूनिष्ठ दलके विद्यार्थी संगठनपर क्या संस्कार हुए हैं ? इस प्रकारके विद्यार्थियोंके भविष्यमें इस दलके पदाधिकारी तथा नेता बननेके पश्चात वे हिंदुत्वके लिए नहीं, अपितु अन्य धर्मियोंके लिए ही कार्य करेंगे ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
७. सायंकालके समय संगठनमंत्रीको समितिके कार्यकर्ताओंसे भेंट हुई । उन्होंने बताया, मेरे पास अधिकार न होनेके कारण प्रदर्शनी हटानेसे मैं रोक न सका । ऊपरसे दबाव होनेके कारण कुछ करना असंभव था । यदि ऊपरसे आदेश प्राप्त होते हैं, तो कुछ भी हो सकता है ।' इस स्थानपर एक आध्यात्मिक संस्थाको प्रदर्शनी आयोजन करने हेतु अनुमति दी गई है; क्योंकि संगठनके एक पदाधिकारीकी पत्नी इस संस्थासे संबंधित है । इसलिए उस संस्थाको क्षेत्र उपलब्ध न होते हुए भी एक स्टॉलके दो हिस्से कर क्षेत्र दिया गया । (यदि अपने संगठनद्वारा राष्ट्र तथा धर्मविषयक अनुचित कृत्य हो रहा है, तो उसे सच्चा राष्ट्राभिमानी एवं धर्माभिमानी हिंदू विरोध करेगा; किंतु जो दलमें केवल वेतनके लिए कार्य करते हैं, वे राष्ट्र एवं धर्म हेतु कुछ भी नहीं कर सकते ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात