केरल के कैथोलिक समुदाय के एक पूर्व पादरी केपी शिबु ने आरोप लगाया है कि कैथोलिक चर्च पादरियों से ब्रह्मचर्य का पालन करवा रहा है ताकि उसे सस्ते मज़दूर मिल सकें|
शिबु इस समय केरल कैथोलिक चर्च रिफॉर्मेशन मूवमेंट (केसीआरएम) के संरक्षण वाले पूर्व पादरी और नन एसोसिएशन के नए राष्ट्रीय महासचिव हैं. इसके अध्यक्ष रेजी नजल्लानी हैं|
शिबु का कहना है कि चर्च ने उन्हें और उनके परिवार को समाज से भी निष्कासित करवाने की कोशिश की है|
उनके परिवार में अभिभावक, दो भाई और एक बहन हैं|
लेकिन साइरो-मालाबार बिशप्स कॉन्फ्रेंस पूर्व नन और पादरियों के आरोप को बेबुियाद बताते हैं|
हुक्का-पानी बंद
शिबू के पास समाज शास्त्र में एमए डिग्री के साथ ही शिक्षा में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री है और वह केरल के केसरगोड में दी पॉल कॉलेज के प्रिंसिपल थे|
एक सेमिनरी से 12 साल तक शिक्षा लेने के बाद शिबू 12 साल तक पादरी रहे थे. वह कहते हैं कि वह 15 साल की उम्र में कैथोलिक व्यवस्था में शामिल हुए थे और 39 साल की उम्र में इसे छोड़ा|
वह कहते हैं कि उन्होंने चर्च इसलिए छोड़ा क्योंकि उन्हें लगा कि चर्च अपने आदर्शों और सिद्धांतों को छोड़कर एक शोषणवादी कंपनी की तरह काम करने लगा है|
शिबू के अनुसार, “विन्सेंटियन समाज के एक बड़े अधिकारी और वरिष्ठ पादरी फ़ादर वर्गीज़ परापराम्बिल ने उन्हें धमकी दी कि उनके अभिभावकों का अंतिम संस्कार कैथोलिक परंपराओं के अनुसार नहीं किया जाएगा. और यह भी कहा मैं अपने परिवार के साथ न रहूं क्योंकि चर्च मेरा हुक्का-पानी बंद कर रहा है|
लेकिन साइरो-मालाबार बिशप्स कॉन्फ्रेंस के फ़ादर पॉल ठेलेक्काट पूर्व पादरियों और ननों के आरोपों को ठुकराते हैं|
वो कहते हैं, “यह बेहूदा आरोप हैं और चर्च इस तरह की चीज़ों में कभी नहीं उलझता. हम मानते हैं कि पूर्व पादरी और नन कैथोलिक चर्च के ही हिस्से हैं और उन्होंने अपनी ज़िंदगी यीशु की शिक्षाओं के प्रति समर्पित की है|”
भरोसा क़ायम
शिबू कहते हैं कि वो अभी भी ईसाई हैं और यीशु मसीह और उनके उपदेशों में उनका भरोसा क़ायम है|
वह कहते हैं कि व्यवस्था से बाहर जाने वाले पादरियों और ननों का सही पुनर्वास होना चाहिए, लेकिन चर्च की व्यवस्था में ऐसा कभी नहीं किया गया|
शिबू ने मलयाली में अपनी ज़िंदगी पर एक किताब भी लिखी है जिसका अब अंग्रेज़ी संस्करण, “माइ प्रीस्टी लाइफ़” छापने की तैयारी है|
स्त्रोत : बीबीसी