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शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीद्वारा धार्मिक एवं ‘लक्ष्यित हिंसा प्रतिबंधक अधिनियम २

मार्गशीर्ष पूर्णिमा , कलियुग वर्ष ५११५

॥ श्रीहरिः ॥

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

१. अन्योंके अस्तित्व एवं आदर्शोंका विघात करनेवाला अराजकताका परिपोषक !


ध्यानमें रखें कि सबके प्रति कल्याणकी भावना रख स्नेह एवं सांत्वना दर्शाना मानवताको शोभा देने योग्य बात है । यदि कोई भी अधिनियम पूरी तरह इस तथ्यके पक्षमें एवं अनुरूप हो, तो ही उसे मानवाधिकारकी कक्षामें कार्यान्वित करनेयोग्य माना जा सकता है । मानवताकी कक्षा/सीमामें सन्निपातसमान भयंकर व्याधिसे ग्रस्त अथवा उन्मादके कारण उन्मत्त रोगीके आघातसे स्वयंको बचाकर उसके प्रति कल्याणकी भावना रखना तथा स्नेह एवं सांत्वनायुक्त अंतःकरणद्वारा प्रबलतासे उसे रोगमुक्त करनेका प्रयास करना, अवश्य ही कर्तव्य है । अभिप्राय यह कि सबके प्रति कल्याणकी भावना एवं सांत्वनायुक्त व्यक्ति एवं वर्ग ही सर्वकालीन एवं सर्वहितकारी अधिनियमके परिपोषक माने जाते हैं । इसके विपरीत अन्योंके अस्तित्व एवं आदर्शोंका विघात करनेवाले व्यक्ति एवं वर्ग  अराजकताके परिपोषक एवं आत्मकल्याणके उच्छेदक ही सिद्ध हुए हैं ।

२. हिंदुओंके अस्तित्वको ही नष्ट करनेवाला अधिनियम न्यायसम्मत कैसे ?

सत्तालोलुपता एवं अदूरदर्शिताके कारण दिशाहीन शासनतंत्रद्वारा भारतपर अत्यधिक समयतक निर्दयतासे शासन किया गया । उनके वंशजोंके प्रति भी द्वेषरहित कल्याणकी इच्छा करनेवाले बहुसंख्यक हिंदूवर्गके अस्तित्व एवं आदर्शोंको नष्ट करनेवाले अधिनियमको मानवाधिकारकी कक्षामें किस दृष्टिसे न्यायसम्मत माना जाएगा ?

३. मानवताको अपकीर्त करनेवाला अधिनियम !

लाखों वर्षोंसे मेधा, सुरक्षा, व्यापार एवं श्रमकी शक्तिद्वारा पूरे विश्वको लाभ देनेवाले; नीति, अर्थ, काम, धर्म एवं मोक्षशास्त्र प्रदान करनेवाले, इन शास्त्रोंके अंतर्गत आनेवाले गणित तथा चिकित्सा आदि सर्वहितकारी विविध विज्ञान उपलब्ध करानेवाले तथा रामराज्य एवं धर्मराज्य प्रदान करनेवाले वर्गके अस्तित्व एवं आदर्शोंको नष्ट करनेवाला अधिनियम निश्चित रूपसे मानवताको कलंकित करनेवाला हो सकता है । वह मानवाधिकारोंकी कक्षामें पारित अथवा कार्यान्वित करनेयोग्य नहीं है !

४. कोई अधिनियमद्वारा सर्वोत्कृष्ट जीवनमूल्योंका पालन करनेवाले  व्यक्तियोंको नुकसान पहुंचानेकी स्वतंत्रता किसलिए ?

जिस वर्गके परंपराप्राप्त भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा, आरोग्य, यातायात, त्यौहार, उत्सव, सुरक्षा, सेवा, न्याय एवं विवाह आदि विज्ञान  दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक आधारोंपर सर्वोत्कृष्ट हैं; केवल उस वर्गसे संबंध रहनेके कारण ही मानवाधिकारोंकी कक्षासे कोई लांछनीय एवं तिरस्कृत कैसे सिद्ध हो सकता है ? किसी वर्ग एवं उससे संबंधित व्यक्तिको राष्ट्रीय स्तरपर अल्पसंख्यक होनेके कारण किसी अभिशाप समान  अधिनियमसे हानि पहुंचानेका पूरा अथवा आंशिक स्वातंत्र्य कैसे प्रदान किया जा सकता है ?

५. क्या बहुसंख्यकोंका न्यायिक अधिकार छीन लेनेवाला अधिनियम संपूर्ण मानवताके लिए अभिशाप नहीं है ?

बहुसंख्यक वर्गके न्याय अधिकार छीन लेनेवाला एवं उन्हें न्याय पचानेमें असमर्थ करनेवाला अधिनियम बनानेवाली एवं उसे कार्यान्वित करनेवाली सरकार एवं उससे संबंधित व्यक्तियोंको जागतिक स्तरपर संपूर्ण मानवताके लिए अभिशापके रूपमें क्यों नहीं घोषित करना चाहिए ?

६. धार्मिक एवं प्रतिबंधक हिंसा अधिनियम २०११, एक सर्वविनाशक षडयंत्र  है !

उपर्युक्त सभी बातोंके अवलोकनके अनुसार धार्मिक एवं प्रतिबंधक हिंसा अधिनियम २०११, निश्चित रूपसे एक विद्वेषपूर्ण, आत्मघातकी एवं सर्वविनाशक षडयंत्र है, जो संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं मानवाधिकारोंकी कक्षामें अनर्गलप्रलाप (कोई भी मेल न रहनेवाला अधिनियम) के रूपमें घोषित करने योग्य है ।

७. दिशाहीन राजनेता एवं राजनीतिक पक्षोंकी दुष्ट गठबंधनको अमोघ व्यूहरचना कर पराजित करना ही आवश्यक है !

यह अधिनियम भारतीय राज्यघटनाकी २५ वीं धाराकी धज्जियां उडाकर  पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, ॐ कार, स्वस्तिक, गोवंश एवं गंगा इत्यादिमें आस्था रखनेवाले सिक्ख, जैन एवं बौद्धोंको छल, बल एवं डंडोंके प्रहारोंसे अल्पसंख्यक घोषित कर हिंदुओंको अल्पसंख्यक बनानेका प्रकल्प है । वह बिना नीति एवं अध्यात्मकी शिक्षा एवं जीवनपद्धतिके माध्यमसे सनातनी आर्य वैदिक हिंदुओंको घोषित विधर्मी (अधर्मी ) बनानेकी प्रक्रिया है । सेवा, स्नेह, संपन्नता, सम्मान आदिके नामपर हिंदुओंको घोषित विधर्मी बनानेकी मुहिम है । राष्ट्रके अस्तित्व एवं आदर्शोंको नष्ट करनेका भीषण षडयंत्र है । अतः ऐसे षडयंत्र रचने हेतु अग्रेसर होनेवाले, उनको समर्थन देनेवाले एवं किसीके हितके दलाल बनकर शासन करनेवाले, सत्तालोलुपता एवं अदूरदर्शिताके कारण दिशाहीन राजनेता एवं राजनीतिक पक्षोंके दुष्ट गठबंधनको सबके कल्याणकी इच्छासे यथाशीघ्र अमोघ व्यूहरचना कर पराजित करनेकी आवश्यकता है ।

८. मानवतावादी सतर्क रहें !

मानवताके पक्षमें रहनेवाले ईसाई, मुसलमान एवं साम्यवादियोंको भी इन जैसे घातक तत्त्वोंसे सतर्क रहनेकी आवश्यकता है ।

– स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती, श्रीमद् जगद्गुरु-शंकराचार्य, पुरी पीठ-पुरी, ओडिशा, भारत. (५.१२.२०१३)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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