पौष कृष्ण २ , कलियुग वर्ष ५११५
सांगली – श्री शिवप्रतिष्ठानके संस्थापक पू. संभाजीराव भिडे (गुरुजी)ने अपने मार्गदर्शनमें बताया कि ‘हमें किसीका भी लेन-देन नहीं, इस स्थितिमें आज बहुसंख्य हिंदू हैं । आजके हिंदुओंमें राष्ट्रीयताका अभाव है । अपनी संस्कृति, अपना धर्म, अपने सत्त्वके प्रति गर्व(अभिमान) होना अर्थात राष्ट्रीयता ! शिवभूपतिके अनुसार हमें मातृभूमिका ऋण उतारनेवाले देशभक्तोंकी सृष्टि करनी है ।' १५ दिसंबरको वेलणकर मंगल कार्यालयमें ‘गढकोट अभियान-आशय एवं अंतरंग’ इस विषयपर धारकरियोंका मार्गदर्शन करते समय उन्होंने ऐसा बताया।
इस मार्गदर्शनके लिए बडी संख्यामें धारकरी उपस्थित थे । उस समय पू. भिडे (गुरुजी)ने बताया,
१. दुर्गरूपद्वारा आज भी हम शिवछत्रपतिका अनुभव ले सकते हैं । शिवछत्रपतिका सत्त्व उन गढकोटोंमें समाविष्ट है । राष्ट्र हेतु किस प्रकार जीवित रहना है, यह धारातीर्थ यात्रा हमें सिखाती है ।
२. जिस प्रकार गीतामें श्रीकृष्णने अर्जुनको बताया कि मैं नदी, नाला, पर्वत, मनुष्य, साथ ही सर्वत्र हूं, उसीप्रकार शिवछत्रपतिने भी प्राणार्पण करनेवाले मावळे, गढ आदिके साथ ही सर्वत्र हैं, इसकी अनुभूति प्राप्त करने हेतु गढकोट अभियान है ।
३. उस समयका अभियान परिवर्तनकी पुकार है, उससे बहुत कुछ होनेवाला है ।
४. विकास आवश्यक ही है; किंतु उसकी अपेक्षा देशभक्त एवं राष्ट्रभक्तोंकी पीढी सिद्ध करना अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात