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कब होगी साध्वी प्रज्ञा एवं कर्नल प्रसाद की मुक्तता ?

पौष कृष्ण ३ , कलियुग वर्ष ५११५,


सन् २००८ में मालेगांवमें हुए बमधमांकोके उपरांत अनेक हिंदुओंकी उस घटनाके कारण गिरफ्तारी हुई । गत ५ वर्षोंसे वे काराग्रहमें हैं, उन सबपर लगाये गए आरोप मिथ्या होनेपरभी उन्हें अभी भी न्याय नहीं मिल रहा है; क्यों ? वे हिंदू हैं इसी लिए क्या ऐसा है ? किन्तु मुसलमानोंकी स्थिति इसके विेपरीत है । फिर मालेगांवके प्रकरणमें आरोपित हिंदुओंको आखिर न्यायदान कब होगा ? ५ वर्षोंके उपरांत भी हिंदुओंके हृदयमें प्रज्वलित इस प्रकरणके विषयमें वरिष्ट पत्रकार श्री अरुण रामतीर्थकर द्वारा प्रस्तुत तथ्य अधोलिखितानुसार  हैं ।

मालेगांव बमधमाके एवं भगवा आतंकवाद

किमबहुना अब आपको इसका विस्मरण हो गया होगा, स्मरण हुआ तो भी आप गंभीर नहीं होंगे! आप विचारकर देखें, ऐसी परिस्थिति आपके परिवारके किसी सगे संबंधीपर आयी होती तो ! क्या आप साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य ७ लोगोंकी अवैध स्थानबद्धतापर आरामसे घर बैठे होते ? उनका हमारा रक्तका संबंध न भी हो तो भी साध्वी प्रज्ञा अपनी धर्म भगिनी हैं तथा अन्य सभी धर्म बंधु हैं ।मालेगांव बमधमाकोंके होते, किसी प्रकारका साक्ष्य न होते हुए भी केवल उनके हिंदू होनेके कारण उन्हें स्थानबद्ध किया गया है । मालेगांव बम धमाकों पहले तथा उसके पूर्व व तदोपरांत हुए, यहां तक कि नरेंद्र मोदीकी पटनामे आयोजित सार्वजनिक प्रचार सभामें घटित बमधमांकोंमें भी मुसलामानही आरोपित पाये गये हैं । मालेगांव प्रकरणमेंभी प्रारंभमें मुसलमानोंको ही गिरफ्तार किया गया था । प्रत्येक धमांकेके पीछे मुसलमानोंका ही हाथ होता है यह पूर्ण विदित होते हुए भी, केवल मुसलमानों तरुणोंकोही पकडा जाता है, ऐसा हो हल्ला आजकल किया जाता है । मुसलमानोंके तुष्टीकरण के लिए कुप्रसिद्ध कांग्रेस शासनने तथा तत्कालीन गृहमंत्रि पी.चिदंबरम को ‘‘ हिंदू टेररिस्ट ’’ यह शब्द प्रचलित करना था, इसलिए तब तक किये गये अन्वेषणको मिथ्या कहते हुए, पुन:श्च नवीन अन्वेषण कर, साध्वी प्रज्ञा, कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, संस्कृत पंडित सुधाकर चतुर्वेदी, स्वामी अमृतानंद देवतीर्थ एवं अन्य सामान्य किंतु हिंदू नागरिकोंको सन् २००८ में पकडा गया एवं तभीसे हिंदू आतंकवादी; भगवा आतंकवाद ये शब्द आये ।

हिेंदुओंकी अपकीर्ति क्यों ?

आगे घटित प्रत्येक स्फोटमें आरोपी मुसलमानही पाये जानेसे, अब इस शब्दका प्रयोग करनेवालेको मतिभ्रष्ट कहा जायेगा, इसीकी संभावना अधिक है; किन्तु ‘‘हिंदू टेररिस्ट ’’ शब्दने बहुतोंको दीवाना बनादिया । उनकी अकल घास चरने चली गई । शरद पवार ऐसे ही एक थे । इतने दिन बमस्फोट करनेवालोंका पता नहीं लगता था, अब असल दोषी पकडमें आये हैं । अब बमस्फोट रुकेंगे ; ये उद्गार हैं, तथाकथित दूरदृष्टा शरद पवारजी के ! २००८ के उपरांत कितने बमस्फोट हुये हैं, इसका स्मरण श्री शरद पवारको करना चाहिए । संक्षेपमें केसरिया ध्वज, हिंदू शब्दकी अपकीर्ति करनेका खेल अर्थात साध्वी, कर्नल, मेजर, संस्कृत पंडित आदिको स्थानबद्ध करना ! कर्नल एवं मेजर इनको दोषारोपित करनेके पहले, क्या पाकिस्तानको इसका लाभ होगा ? कम से कम इसका तो विचार करना होना चाहिए था । यह कांग्रेस शासन अपने पक्षके स्वार्थके लिए देश बेचनेके लिए उद्यत है, ऐसा कहनेका यही कारण है । एक तरफ पाकी आई.एस.आई यंत्रणा खुलेआम भारतमें रक्तपात करवाती है, भारतीय सेना कभी भी ऐसे कार्य नहीं करती, पुरोहित, उपाध्याय इनने भी कभी वैसा कुछ नहीं किया, किन्तु अपने ही प्रशासनने उन्हें मूर्ख्तासे आतंकवादी साबित करनेसे पाकिस्तानको सहजही एक बहाना सुलभ होगया । वैसे भी १९४७ से ही पाकिस्तान सुलभ परंपरा तो गांधीजीने कायम कर ही दी है ।

हिंदुओंपर होनेवाला अन्याय एवं मुसलमानोंको स्वतंत्रता !

इन सभी सभी हिंदू आरोपितोंको पकडनेके लिए करकरेकी ए,टी,एस, ने कोई शौर्य नहीं दिखाया । सभीको संपर्ककर एक विशिष्ट स्थानपर आनेके लिए बुलाया । कर नहीं तो डर नहीं; यह सोचकर सभी निश्चित स्थानपर उपस्थित हुए । साध्वीतो समयाभाव होते हुए भी रेल्वे प्रवासकर पोलिसके समक्ष उपस्थित हुर्इं । मिथ्या कथन कर उनका पाचारण किया एवं पकडा, आनेपर चालाकीसे; गिरफ्तार कर लिया इस प्रकारकी पेपरबाजी की ।  पहले मुसलमान आरोपी पहडे तदनंतर उन्हें मुक्त कर हिंदू आरोपियोंको पकडा । यह कर्म करनेवाली एन.आय.ए.  की विश्र्वासार्हतापर ही संशय आता है । जब स्फोट हुआ तब मै, यवतमालमें था, मुसलमान आरोपी द्वारा ऐसा कहे जानेपर त्वरित एन.आय.ए. के अधिकारी वहां जाकर इसकी पुष्टि करते हैं, तुरंत आरोपपत्र पीछे लेते हैं; किंन्तु जब एक हिंदू आरोपी, स्फोटके समय मैं इंदौरमे था, ऐसा कहता है, उसके ठोस साक्ष्य देता है, फिरभी उसका कोई उपयोग नहीं होता । करकरेकी ए.टी.एस. के कर्म भी वैसे ही हैं । उस पथकका एक अधिकारी हिंदू आरोपियोंका बेदम पीटता था, इसकेलिए उसे राष्ट्रपति पदकसे   भूषित किया  गया । वर्तमानमें वह घूस लेते हुए पकडा गया , इसलिए मुकदमेंके तथ्य खोल रहा है । एस.या.एसी. कितनी कर्तव्यनिष्ट है, इससे यह विदित होता है ।   

साध्वीपर किए गए भीषण अत्याचारोंकी चरमसीमा

संशयित पुरुष अपराधियोंको बेदम मारना, एकबार मान्य किया जा सकता है, क्योंकी अनेकबार ऐसा करनेसे गुनाहका पता लगता है । साध्वी प्रज्ञाके संदर्भमें जानकारी निकालनेके नामपर जो अभद्र व्यवहार हुआ, प्रत्येक हिंदूकी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो उठे वह ऐसा है ।पुरुष अधिकारी अन्वेषण करते समय जानबूझकर अश्लील बोलते थे । जानबूझकर गलिच्छ गालियां देते । इसपर भी कहर यह कि साध्वीको जबरन (अश्लील चित्रपट) ब्ल्यू फिल्म दिखाते । अन्वेषणकी यह कौनसी पद्धति ? एक नहीं, दो नहीं पूरे १६ बार नार्को टेस्ट करनेके उपरांत भी कुछभी हाथ नहीं लगा । लगता भी कैसे ; कारण कि , स्फोटोंसे साध्वीका संबंध ही नहीं था । इन १६ परीक्षणोंके कारण साध्वी कर्करोगसे ग्रस्त हो गयीं ।उसे वैद्यकीय उपचार नाकारे जा रहे थे । किसी हिंदू संतका ऐसा हाल पाकिस्तानकी कैदमें न होता, ऐसा हाल एवं अभद्र व्यवहार ए.टी.एस. ने किया । साध्वीको ब्ल्यू फिल्म दिखलानेवाले अधिकारीको दृष्टिहीन करना, मात्र यही एक योग्य दंण्ड हो सकता है । देशके गृहमंत्रीको चाहिए कि कम से कम इस  ब्ल्यू फिल्म दिखानेके संदर्भमें जांचके आदेश दें । मुसलमान तरुणोंकी गिरफ्तारीके संबंधमें जैसे स्वयंप्रेरणासे उन्होंने पहल लेकर पत्र लिखे । मुसलमानोंके वे पक्षपाती हैं, यदि यह दाग उन्हें पोछना है, तो साध्वी प्रज्ञाको ब्ल्यू फिल्म दिखानेवाले अधिकारियोंको खोजकर उन्हें दण्डित करनेका पराक्रम करके दिखायें ।

कर्नल प्रसाद पुरोहित निर्दोष

कर्नल प्रसाद पुरोहित, सेनाके गुप्तचर विभागके अधिकारी ! गुप्तचर विभागके होनेके कारण उनका प्रवेश अनेको स्थानोमें था । सेनासे आर. डी. एक्स. चोरी करके समझोता एक्सप्रेसके विस्फोटमें प्रयोग किया, इस आरोपके अंतर्गत उन्हें बंदी बनाया गया है । हमारे भंडारका एक ग्राम आर.डी.एक्स. भी चोरी नहीं गया, सेना द्वारा यह स्पष्ट किया गया । समझोता एक्सप्रेसक उस डिब्बेका रासायनिक प्ररीक्षण किया गया जिसमे ऐसा निष्कर्ष निकला कि स्फोटमें आर.डी.एक्स. प्रयोग नहीं हुआ है । पुरोहितके निर्दोषत्वका ओर कौनसा साक्ष्य चाहिए ? अब भी वे बंदी हैं । साध्वी प्रज्ञा एवं कर्नल प्रसाद के विरुद्ध तिलभर भी साक्ष्य नहीं तथा उन्हें सहयोग करनेके आरोपमें बंदी बनाये गये अन्य निर्दोष हैं । इन हिंदू कथाकथित अपराधियोंका त्वरित मुक्त किया जाय ।

तथाकथीत हिंदू आरोपीओं की मुक्तता करो !

५ वर्ष हो गए, ये आरोपित वास्तवमें आतंकवादी हैं, यह न्यायालयसे सिद्ध करें । इतना घृणास्पद अपराध यदि इन्होंने किया है तो, सीधे मृत्यु दंण्ड दें;किन्तु अन्वेषण नहीं, आरोप पत्र नहीं, ऐसे कितने वर्ष उन्हें कारावासमे रखा जायेगा ? कश्मीरी आतंकवादियोंका अनुग्रह करनेवाले मानवाधिकारवाले एवं आवश्यकता नहीं वहां अपनी टांग अटकानेवाले प्रेस काऊन्सिलके मार्कडेय काटजू इनकी वाणीको इस विषयपर लकवा क्यों मार गया है ? मालेगांव स्फोटसे संबंधित पकडे गए मुसलमान २ वर्षोंमें निर्दोष कहकर छोड दिये गए, उस विषयमें शिकायत नहीं । वे वास्तवमें निर्दोष हो भी सकते हैं, क्योंकी  ए.टी.एस. अथवा एन.आय. ए.  को ‘‘ पीपलकी छाल बरगदपर ’’ लगाकर अन्वेषण करना होता है । ५ वर्षोंके उपरांत भी यही न्याय धर्मसे हिंदू रहनेवाले तथाकथित आरोपियोंपर क्यों लागू नहीं होता ? केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को चाहिए कि अन्वेषण की समय सीमा निर्धारित करें एवं आरोपियोंपर मुकद्दमा चलानेका आदेश दें अथवा फिरभी यदि साक्ष्य प्राप्त न हों तो सभी आरोंपियोंको मुक्त किया जाय । इनमें से यदि  कुछभी नहीं  हुआ तो मतोंका चाबुक कांग्रेसके शासनकी पीठपर मारनेकी बात हिंदू मतदारोंको भूलनी नहीं चाहिए । साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित एवं अन्य लोगोंके प्रति थोडी भी सहानुभूति यदि है, तो कांग्रेस शासनको सत्ताच्युत करना ही चाहिए ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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