आषाढ कृ. ८, कलियुग वर्ष ५११४
लडनेके लिए हिंदुओंको मानसिकरूपसे सिद्ध करनेकी आवश्यकता है ।
हिंदू सशस्त्र होनेपर भी यदि उसकी मानसिकता लडनेकी नहीं होगी, तो उस शस्त्रका कोई उपयोग नहीं होगा । लडनेके लिए हिंदुओंको मानसिकरूपसे सिद्ध करनेकी आवश्यकता है । शांति तथा सुरक्षा प्राप्त करनेके लिए मूल्य चुकाना ही पडता है । कौरवोंसे राज्य प्राप्त करनेके लिए पांडवोंको अभिमन्यु खोना पडा था । प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण भगवान सारथी थे; फिर भी अर्जुनको पुत्रशोक हुआ । ‘आपको कुछ पाना हो, तो कुछ खोना भी पडेगा’ ऐसा नियम भगवान श्रीकृष्णने बताया था, ऐसा प्रतिपादन बंगालमें हिंदुओंके न्यायके लिए लडनेवाले हिंदुत्वनिष्ठ नेता एवं हिंदु समहातीके अध्यक्ष श्री. तपन घोषने किया । आसाम तथा बंगालमें प्रतिदिन १०० स्थानोंपर हिंदू – मुसलमान दंगे हो रहे हैं; परंतु इस विषयकी जानकारी प्रसारमाध्यम देशभरमें नहीं पहुंचाते, जिससे देशभरके हिंदु इस विषयसे अनभिज्ञ हैं । वे यह भी बोले कि ‘वास्तविकता तो यह है कि, आसाम और बंगाल भी कश्मीरके मार्ग पर हैं ।’
साहसी, निःस्वार्थ एवं बुद्धिमान युवकोंको नेतृत्व सौपें !
१. ‘बाघकी सेनाका नेतृत्व हिरण कर रहा हो, तो उसे घबरानेकी आवश्यकता नहीं है; परंतु यदि हिरणकी सेनाका नेतृत्व बाघ कर रहा तो उन्हें घबराना चाहिए, ऐसा वक्तव्य जनरल व्ही.के. सिंगने हाल ही किया था ।
हिंदुओंपर हो रहे अत्याचारोंकी प्रतिध्वनि गूंजना, यह खरा संगठन !
१. कश्मीरके प्रसिद्ध नेता टीकालाल टपलूकी १३ सितंबर १९८९ को गोलियां मारकर हत्या की गई । उसकी प्रतिध्वनि यदि तत्काल देशभरमें गूंजी होती तो कश्मीरके हिंदू निर्वासित नहीं हुए होते ।
२. कश्मीरके एक हिंदूपर आक्रमण होनेपर उसकी प्रतिध्वनि यदि देशके सभी प्रदेशोंमें गूंजी होती तो, कश्मीरके हिंदू आज सुरक्षित होते । मुसलमानोंका संगठन ऐसा ही होता है । हिंदुओंका संगठन भी ऐसा ही होना चाहिए |