पौष कृष्ण ४ , कलियुग वर्ष ५११५
आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परंपरा ही भारतके बलनस्रोत हैं । इसलिए भारतीयोंके मूलपर ही आघात कर उन्हें गुलाम बनाना संभव है, ऐसा षडयंत्रलापूर्ण हेतु रखकर भारतीय शिक्षा पद्धति एवं संस्कृति नष्ट करनेका षडयंत्र रचनेवाला मेकॉले !
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मेकॉलेने २.२.१८३५ को ब्रिटिश संसदमें भारतको गुलाम बनाने हेतु आगे दिया हुआ घृणास्पद एवं षडयंत्रसे भर्रा सुझाव दिया था ।
‘मैं भारतके कोने-कोनेमें घूमा; परंतु मुझे ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं मिला, जो भिखारी अथवा चोर हो । ऐसी अपार संपदा तथा इतना उच्च नैतिक आदर्श एवं इतने प्रतिभासंपन्न व्यक्तियोंसे युक्त देशको हम कभी जीत नहीं सकेंगे । यदि भारतको दास (गुलाम) बनाना है, तो इस देशका मेरुदंड अर्थात भारतीय आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परंपराको तोडना पडेगा; इसलिए मेरे मतके अनुसार हमें भारतीयोंकी शिक्षापद्धति एवं संस्कृतिको तहस-नहस करना होगा । जिस समय प्रत्येक भारतीयके मनमें निश्चित रूपसे यह बात घर कर जाएगी कि जो कुछ विलायती है, वह उसकी देशी वस्तुओंसे श्रेष्ठ एवं महान है, तभी वे हीन भावनासे ग्रस्त होकर अपना सम्मान, संस्कार, स्वदेश प्रेम एवं स्वाभिमान गंवा बैठेंगे एवं हमें जैसा चाहिए वैसा अर्थात पूर्णतः गुलाम बनेंगे !’
धर्मपरिवर्तनके संदर्भमें संत एवं विचारशील व्यक्तियोंके मत
अ. योगऋषि रामदेवबाबा
सामाजिक सेवाकार्यके नामपर किए जानेवाले धर्मपरिवर्तनके कार्यपर प्रतिबंध लगाना चाहिए ।
आ. अमृतानंदमयी माता
धर्म ऐसी वस्तु है जिसका चयन मनुष्यको स्वयंके लिए करना होता है । निर्णय अन्य व्यक्तियोंपर यह निर्णय थोपना अथवा आरोपित करना संभव नहीं है । षडयंत्रद्वारा बलपूर्वक किसी व्यक्तिका एक धर्मसे अन्य धर्ममें परिवर्तन करना अनुचित है ।
इ. श्री मुरारी बापू
बाईबिल स्वयं धर्मपरिवर्तनके पक्षमें नहीं है । जो ये कार्य कर रहे हैं, उन्हें दंड देना चाहिए ।
ई. साध्वी ऋतंभरा
देशमें सेवाके नामपर व्यवहार हो रहे हैं एवं धर्मपरिवर्तन किए जा रहे हैं । अतः हिंदुओ, ऐसा निश्चय करें कि यदि एक सक्षम हिंदू अन्य असक्षम हिंदूका ध्यान रखेगा, तो मिशनरियोंको अपना बोरिया-बिस्तर लपेटना पडेगा; क्योंकि उनका (धर्मपरिवर्तनका) आधार निर्धनता तथा दरिद्रता है, जिसका वे षडयंत्र रचकर एवं धूर्ततासे लाभ उठाते हैं ।
उ. जगद्गुरु आचार्य श्री रामदयालदासजी महाराज, अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय
भारतके निरागस, भोले-भाले सीधे-सादे तथा सज्जन लोगोंको एवं मातृशक्तियोंको (महिलाओंको) अपने शब्दोंके चक्रवुयूहमें फंसाकर चारों ओर धर्मपरिवर्तनका विष पिलाया जा रहा है । दहशतवादी तो एक ही बारमें अपना कार्य साध्य कर जाते हैं, परंतु प्रतिदिन ये जो आक्रमण हो रहे हैं, उनका ध्यान कौन रखेगा ?
ऊ. भारतके भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन्
जो लोग हिंदू संस्कृति एवं हिंदू जीवन पद्धतिको स्वीकार करते हैं, चाहे वे आस्तिक हों अथवा नास्तिक, संदेहवादी हों अथवा जडवादी, सभी हिंदू हैं । हिंदुधर्ममें बलपूर्वक अथवा भयभीत कराकर कार्य करानेकी पद्धति नहीं है । इसके विपरीत उसे समझाकर एवं अपना मत प्रस्तुत कर कार्य करनेपर विश्वास रखता है । हिंदुधर्मने अपनेसे भिन्न मतके अथवा संप्रदायोंके लोगोंपर अत्याचार करने हेतु कभी प्रोत्साहन नहीं दिया । अन्य धर्मकी अपेक्षा हिंदुधर्मका इतिहास पवित्र है ।
ए. डॉ. डेविड फ्रॉली
स्वतंत्रताके पश्चात एक ओर हिंदुधर्मविरोधी प्रचार एवं दूसरी ओर साम्यवाद, इस्लाम एवं ईसाई धर्मके प्रचारद्वारा भारतके टुकडे-टुकडे करनेका जो षडयंत्र रचा जा रहा है, उसके कारण इस देशकी समस्या (अडचन) अत्यधिक बढ गई है । ईसाई धर्मप्रचारकोंने भारतमें अपने धर्मके प्रचारके लिए न जाने कितने हिंदू परिवारोंमें मतभेद उत्पन्न किए हैं । उनकी पारिवारिक सुखशांति भंग की है, हिंदू समाजमें अंतर करनेका कार्य किया है । साथ ही जिन लोगोंका धर्मपरिवर्तन किया है, उनकी मूल पहचान ही नष्ट कर डाली है । इसकी कोई सीमा ही नहीं है । पाश्चिमी सभ्यतावाले देशोंमें किसी हिंदू धर्मप्रचारकने इसप्रकारका कार्य नहीं किया ।
(संदर्भ : मासिक ऋषिप्रसाद, अगस्त २०१३)
(भोले-भाले वनवासी हिंदुओंकी निर्धनता एवं स्वधर्मके विषयमें हिंदुओंकी अज्ञानताका लाभ उठाते हुए उन्हें विविध प्रलोभन दिखाकर विदेशसे आए पैसोंके आधारपर ईसाईयोंने पूरे भारतमें उनका जाल फैलाया है । इसके लिए केवल हिंदुओंकी निर्धनता ही नहीं, अपितु उन्हें निर्धन ही रहने हेतु विवश करनेवाले, हिंदुओंको स्वधर्मके ज्ञानसे वंचित रखनेवाले एवं विदेशसे आए पैसोंका लालच रहनेवाले भारतीय राजनेता भी उतनेही उत्तरदायी हैं । मिशनरियोंको प्रोत्साहन देनेवाले, हिंदुधर्म एवं प्रतिपल हिंदुओंका खस्सीकरण करनेवाले, सोनियासमान भारतको ईसाई बनानेका सपना देखनेवाली औरतके हाथमें सर्वोच्च सत्ता देनेवाले स्वार्थांध राजनीतिज्ञ मेकॉलेकी नीतिका ही अवलंब कर रहे हैं । जातिभेदके नामपर हिंदुओंमें अंतर कर उन्हें एकदूसरेके साथ उलझाए रखना, उनके मतका विभाजन करना एवं एकगुट मतके लिए धर्मान्धोंकी चापलूसी करनेमें ही अपना आयु ले व्यतीत करनेवाले लोगोंको अपना धर्म एवं अपने जीवनमें उसका महत्त्व कभी समझमें आया ही नहीं । इसलिए धर्मपरिवर्तनकी समस्याका समाधान करनेमें उन्हें रुचि भी नहीं है । इन अधर्मियोंको धर्मका महत्त्व कैसे समझमें आएगा ? इसीलिए हिंदुओ, जागृत होइए ! ईसाईयों एवं मुसलमानोंद्वारा धर्मपरिवर्तनके इन प्रयासोंको विफल करने हेतु संगठित होइए ! इसमें राजनेता अथवा पुलिस आपको कुछ सहायता करेंगे, ऐसी अपेक्षा न रखते हुए अपने बलपर यह षडयंत्र विफल करें ! धर्म एवं राष्ट्रप्रेमको जागृत करें तथा देश द्रोहियोंको समाप्त करें ! ध्यानमें रखें कि धर्मपरिवर्तनकी समस्यापर ‘हिंदु राष्ट्र’ की स्थापना ही एकमात्र एवं अंतिम पर्याय है ! – संकलक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात