पौष कृष्ण ८, कलियुग वर्ष ५११५
|
इस सत्यको ध्यानमें रखना महत्त्वपूर्ण है कि वर्तमानमें अंग्रेजी भाषा पढनेवाले भारतीयोंके शरीर भारतीय तथा मन पाश्चात्त्य (पाश्चात्त्य विचारोंके आधिपत्यवाला) हो गया है, इसमें भारतकी बढती जनसंख्याकी अपेक्षा अधिक तीव्र गतिसे वृद्धि हो रही है । यह सब केवल भारतीयोंके मनकी कोमलता तथा अन्योंको सहज स्वीकार करनेकी वृत्तिके कारण ही हो रहा है । इसकी तुलनामें जपान तथा चीनके देशोंमें नागरिकोंके मन अधिक दक्ष तथा कठोर हैं । उन्होंने अंग्रेजी भाषा बोलनेवाले विज्ञाननिष्ठ विचार सारणीवाले विश्वको उनकी आज्ञा अपनी गहराईतक गए सांस्कृतिक रचनापर अभीतक चलने नहीं दी है ।
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, १४.१०.२०१०)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात