पाश्चात्त्यीकरणमें उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंकी भूमिका

पौष कृष्ण ८ , कलियुग वर्ष ५११५


१. भारतीय बच्चोंमें अंतर्भूत हिंदु संस्कृति नष्ट कर हिंदु संस्कृतिका सर्वनाश होने हेतु सबसे भयानक षड्यंत्र रचकर उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंकी शिक्षाप्रणालीकी रूपरेखा निश्चित करनेवाले लार्ड मेकॉले !

लार्ड मेकॉलेद्वारा प्रस्तुत शिक्षाप्रणाली भारतीय हिंदु रक्तसे हिंदुत्वकी आत्मा तथा प्राण निकाल बाहर कर रही है । हिंदु संस्कृतिका सर्वनाश करने हेतु जितना षड्यंत्र उस समय चल रहा था, उसमें सबसे भयंकर षड्यंत्र उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंकी शिक्षाप्रणाली थी, ऐसा मुझे लगता है । अनेक वर्षपूर्व लार्ड मेकॉलेने बताया था कि मेरेद्वारा आविष्कृत रूपरेखानुसार भारतीय बच्चोंको जो शिक्षा दी जाएगी, उससे निश्चित ही उनमें अंतर्भूत हिं संस्कृति नष्ट होगी तथा हिं संस्कृति नष्ट होनेपर हमारे प्रशासनका विरोध करनेवाला कोई भी स्थानीय नहीं रहेगा । भारतीय बच्चे जब अपनी संस्कृति ही भूल जाएंगे, उसके पश्चात भारतमें कोई भी हमारा विरोध तथा प्रतिरोध नहीं करेगा ।

२. अब पाठशाला तथा महाविद्यालयोंसे हिं संस्कृति प्रत्यक्ष नष्ट हो रही है तथा लार्ड मेकॉलेकी भविष्यवाणी सफल होती हुई दिख रही है !

लार्ड मेकॉलेकी भविष्यवाणी अब पूरी तरहसे सफल होती दिख रही है । माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंमें जो शिक्षाप्रणाली प्रचलित है, उससे भारतीय संस्कृति प्रत्यक्ष नष्ट हो रही है । भारतीय अथवा हिं संस्कृति नष्ट करनेमें जितनी सफलता उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंको प्राप्त हुई है, उतनी मुगल प्रशासक अकबरको भी नहीं प्राप्त हुई थी ।

३. मेकॉलेप्रणीत शिक्षाप्रणालीके दुष्परिणाम

३ अ. सारे छात्र गोपनीय पद्धतिसे ईसाई बन रहे हैं ! : अकबरकी नीति कुछ हिंदुओंको ही मुसलमान बनानेमें सफल हो सकी थी; किंतु लॉर्ड मेकॉलेकी शिक्षाप्रणालीसे संपूर्ण हिं समाज ईसाई बननेको उद्युक्त हो गया है । मुंहसे भले ही कोई भी माने या न माने; किंतु उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंके सारे ही छात्र गोपनीयतासे ईसाई बन गए हैं ।

४. अनुचित तथा स्वैराचारी वर्तन करनेवाले उच्च माध्यमिक पाठशाला एवं  महाविद्यालयके छात्र-छात्राएं !

उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंसे बाहर निकलनेवाले छात्र सभ्यता एवं संस्कृतिहीन दिखते हैं । इससे उन्हें वहां चरित्रहीनताकी शिक्षा प्राप्त होती है, यह स्पष्ट है ।
४ अ. लडकियोंके साथ अनुचित वर्तन : उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंमें ब्रह्मचर्यकी शिक्षा नहीं दी जाती । परिणामस्वरूप निसर्गनियमोंके विरुद्ध अनैतिक संबंध रखनेवाले चरित्रहीन छात्र अपने साथ पढनेवाली लडकियोंके साथ अनुचित वर्तन करने लगते हैं ।
४ आ. मांसाहार करना : छात्रोंको मांसाहार एवं अंडोंसे घृणा नहीं लगती, तथा अधिकांश छात्र मांस एवं अंडे खाने लगते हैं ।
४ इ. पादत्राण पहनकर भोजन करना : पैरोंमें पादत्राण पहनकर भोजन करना अथवा कुछ खानेके पश्चात हाथ धोनेकी आवश्यकता न होना, हाथ रुमालसे पोंछना, यह तो उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंके छात्र उस वातावरणमें अपनेआप ही सीख जाते हैं ।
४ ई. लज्जास्पद एवं भद्दे परिहास (मजाक)करना तथा दुराचारी आचरण करना : छोटी छोटी बातोंमें टेढा-मेढा मुंह कर हावभाव करना, सहछात्रोंका अपमान करना, भद्दे परिहास(मजाक) करना, दुराराचारी आचरण करना, निर्लज्जतासे हंसी(मजाक) उडाना, अपने प्राध्यापकोंके साथ मारपीट करना, ये ही उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयके छात्रोंका स्थायीभाव हो गए हैं ।
४ उ. ६० प्रतिशत युवतियां विवाहके पूर्व ही शीलभ्रष्ट हो जाती हैं : उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंमें युवा लडके-लडकियां साथ-साथ पढते हैं । परिणामस्वरूप ६० प्रतिशत लडकियां विवाहपूर्व ही शीलभ्रष्ट हो जाती हैं । बच्चा होनेके डरसे विवाह नहीं करते तथा गर्भ-निरोघक साधनोंका उपयोग कर दुर्वर्तन करते हैं ।
४ ऊ. उच्च माध्यमिक पाठशाला तथा महाविद्यालयोंमें दी जानेवाली संपूर्ण शिक्षा हिंदु धर्म तथा हिं संस्कृतिके विरुद्ध है । अत: युवा-युवतियोंमें नास्तिकता तथा भोगपरायणतामें बढोतरी हो रही है ।
– परमपावन श्रीमन् महात्मा रामचंद्रवीर महाराज (मासिक पावन परिवार, अप्रैल २००९)

प.पू. बडे महाराजश्रीने वर्ष १९४५ में ‘विनाशके मार्ग’ पुस्तक लिखी थी । यहां उसका तेरहवां अध्याय दे रहे हैं । यह पुस्तक पढते समय, जिस कालावधिमें उन्होंने यह पुस्तक लिखी, वह ध्यानमें रखना आवश्यक है । आजसे चौंसठ वर्ष पूर्व पू. बडे महाराजश्रीने जो लिखा था, उसका महत्व आज और बढ गया है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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