नई देहली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सुरक्षा को लेकर भारत सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब बीजिंग और वाशिंगटन की तरह देहली की सुरक्षा भी परमाणु मिसाइल से की जाएगी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर दो लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले मिसाइल को रडार पर तैनात किया गया है।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि मिसाइल की मारक क्षमता पांच हजार किलोमीटर होगी। उन्होंने बताया कि भारत के दूसरे बड़े शहरोंको भी मिसाइल सुरक्षा देने की तैयारी चल रही है। मिसाइल सुरक्षा कवच पाने वाला अगला शहर मुंबई होगा।
बता दें कि पूरी दुनिया में अब तक कुछ ही ऐसे शहर हैं जिनकी सुरक्षा में मिसाइल सुरक्षा कवच तैनात किये गए हैं। ये शहर हैं वाशिंगटन, बीजिंग, पैरिस, लंदन और तल अवीव।
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक भारत का मिसाइल कवच कार्यक्रम पिछले दो सालोंसे नीचे आ गया था। इसकी शुरूआत वर्ष २००६ में हुई थी और २००९-१२ तक में कई प्रयोग किये गए। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के लिए वर्ष २०१३ और २०१४ का खामोशी भरा रहा। जबकि अप्रैल २०१४ में एक प्रयोग असफल रहा था।
अधिकारी ने बताया कि पिछले वर्ष मई में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मिसाइल कवच कार्यक्रम को तुरंत तैयार करने का आदेश दिया गया था। इजराइली सहायता से विकसित किये गए लंबी दूरी के स्वोर्डफिश रडार ८०० किलोमीटर दूर से आ रहे मिसाइल को खोजने में सक्षम हैं। उन्होंने बताया कि यह पहला बड़ा कदम है जब भारत २०१६ तक मिसाइल इंटरसेप्टर यूनिट को ढूंढ़ने लगेगा।
अधिकारी ने बताया कि मिसालइ कवच प्रणाली अपने पहले चरण में एक साल में दर्जनों मिसाइल तैयार करेगी। भारत के मिसाइल रक्षा प्रणाली में लंबी और कम दूरी की मारक क्षमता वाले दोनों इंटरसेप्टर इस्तेमाल किये जाते हैं। उनके मुताबिक भारत कम दूरी वाले मिसाइल बनाने में काफी दक्ष है। अधिक दूरी वाले मिसाइल बनाने के लिए हमें और भी प्रयोग करने की आवश्यकता है।
अधिकारी ने बताया कि मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि भारत के पड़ोसियों में परमाणु हथियारोंकी संख्या बढ़ रही है। वहीं भारत की मिसाइल रक्षा प्रणाली में कमी है और वो हमारी सुरक्षा में भी चूक है। मिसाइल कवच कार्यक्रम भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। एक जानकार ने बताया कि भारत परमाणु हथियारोंके संबंध में पहले इस्तेमाल नहीं करने की नीति पर कायम है जबकि पाकिस्तान इसे नहीं मानता है।
स्त्रोत : जागरण