पौष कृष्ण ९ , कलियुग वर्ष ५११५
कोलकाता – श्री आनंदमयीदेवी आश्रमकी ओरसे आयोजित धर्मसभामें हिंदू जनजागृति समितिके श्री. प्रकाश मालोंडकरने ‘धर्मजागृति एवं धर्माचरणका महत्त्व,’ इस विषयपर विचार व्यक्त कर अपना सहयोग दिया । प्रतिवर्ष तीन दिन होनेवाले देवीके वार्षिक उत्सवमें अन्य विभिन्न कार्यक्रमोंके साथ धर्मसभाका भी आयोजन किया जाता है । इस वर्ष सभामें विषय प्रस्तुत करने हेतु हिंदू जनजागृति समितिको भी निमंत्रित किया गया था ।
उस अवसरपर श्री. प्रकाश मालोंडकरने संख्याके साथ राष्ट्रकी दयनीय अर्थव्यवस्था, निर्धनता, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, लव जिहाद, बलात्कार, भ्रूणहत्या, संत एवं देवताओंका अनादर आदि अनेक समस्याओंकी जानकारी दी । उन्होंने बताया, इन सभी समस्याओंके मूलमें अधर्म है । उसके लिए शारीरिक, मानसिक तथा बौदि्धक स्तरपर किए जानेवाले प्रत्येक प्रयासका महत्त्व केवल १० प्रतिशत ही है, किंतु ७० प्रतिशत महत्त्व अध्यात्मिक स्तरपर किए जानेवाले प्रयासोंके हैं । नामजपादि उपासनाके कारण ही अध्यात्मिक बल उत्पन्न हो सकता है । व्यक्ति एवं समाजमें परिवर्तन लानेके लिए धर्मजागृति, धर्मशिक्षण तथा धर्माचरण, इन तीन सूत्रोंपर कार्य करनेकी आवश्यकता है । यदि ऐसा किया गया, तो राष्ट्र एवं धर्मपर आनेवाली सभी समस्याओंका एकमात्र उत्तर अर्थात हिंदू राष्ट्रकी स्थापना सहज ही साध्य हो सकती है ।
विश्व हिंदु परिषदके ७५ वर्षके संत स्वामी देवानंद ब्रह्मचारीजी तथा महानाम संप्रदायके स्वामी बंधुगौरव ब्रह्मचारीने राष्ट्र एवं धर्म विषयक सूत्रोंपर मार्गदर्शन किया । इस सभामें लगभग १०० धर्मप्रेमी उपसि्थत थे । कोलकाताकी साधिका श्रीमती तनुश्री साहुने, धर्मसभामें समितिका सहभाग होना चाहिए, इस विचारसे प्रेरित होकर विशेष प्रयास किए थे ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात